Thursday, October 28, 2010

असली जंग सुषमा-जेतली की, मोदी तो सिर्फ बहाना

दिवाली के मौके पर बीजेपी में होली का हुड़दंग मच गया। सुषमा-मोदी मनभेद से बीजेपी बदनाम हुई। तो नितिन गडकरी दौड़ते-भागते आडवाणी को शरणागत हुए। गडकरी को समझ नहीं आया, कैसे इस मसले को सुलझाएं। नरेंद्र मोदी तो सुषमा के बयान पर पहले ही नाराजगी जता चुके। इस बीच खबर चल गई, गडकरी ने सुषमा को हिदायत दी कि किसी की भावना को ठेस पहुंचाने वाला बयान न दें। सो गडकरी की हालत न इधर की रही, न उधर की। न मोदी की शिकायत को नजरअंदाज कर सकते, न सुषमा से कुछ कह सकते। यानी जूनियर नेता को अध्यक्ष बनाने का नतीजा दिख गया। जब जनसंघ के जमाने में पहली बार 1960 में संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बछराज अध्यक्ष बनाए गए। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने भी जूनियर को अध्यक्ष नहीं कबूला। उन ने तो विजयवाड़ा अधिवेशन का खुला बहिष्कार किया था। अबके भले गडकरी के खिलाफ कोई बॉयकाट नहीं हुआ। पर गडकरी अध्यक्ष की कुर्सी पर होते हुए भी सीनियर नेताओं के सामने बौने ही बने हुए। दूसरी पीढ़ी के नेताओं सुषमा, जेतली, मोदी, वेंकैया, अनंत के बीच कोई होड़ न मचे, सो गडकरी को कमान सौंपी गई। पर अब सीनियरों की कलह को गडकरी कैसे थामें। सो आडवाणी के घर मीटिंग हुई। पर तब तक सुषमा की नाराजगी भी बढ़ चुकी थी। सुबह से ही खबर चल रही थी, गडकरी ने सुषमा को हिदायत दी। यों मीटिंग के बाद गडकरी कुछ नहीं बोले। पर पटना में मौजूद सुषमा हत्थे से उखड़ गईं। पहले तो गडकरी से हुई इस तरह की किसी बात का खंडन किया। फिर मोदी से मतभेद को नकारा। पर उसके बाद सुषमा ने जो आरोप लगाए, बीजेपी में वर्चस्व की लड़ाई का आगाज हो गया। उन ने कहा- जो मैंने कही नहीं, मेरे मुंह में डालकर छापी गई। पर दिल्ली में बैठा कोई शरारत कर रहा है। वह मेरे और नरेंद्र भाई के बीच मतभेद पैदा कर अपना स्वार्थ साधना चाहता है। या कॉमनवेल्थ घोटाले से ध्यान बंटाने के लिए साजिश भी हो सकती है। पर उन ने इससे इनकार नहीं किया कि इस साजिश में पार्टी का कोई शामिल। यानी सुषमा ने खुल्लमखुल्ला आरोप लगाया- दिल्ली में बैठा कोई नेता उनके खिलाफ मीडिया में खबरें प्लांट कर रहा। सनद रहे, सो याद दिला दें। जब उमा भारती की राजनीतिक हैसियत बढऩे लगी थी, तब मीडिया में खूब खबरें चलीं। फिर उमा ने अरुण जेतली, प्रमोद महाजन सरीखे नेताओं पर खबरें प्लांट करने का आरोप लगाया था। उमा की नाराजगी इस कदर बढ़ गई कि उन ने आडवाणी की रहनुमाई वाली मीटिंग से वॉकआउट किया। छह साल पहले भले वह तारीख दस नवंबर थी। पर दिन धनतेरस का था। फिर भी बीजेपी ने महिला नेत्री को पार्टी से निकाल दिया। अब दिवाली से पहले बीजेपी में एक और वरिष्ठ महिला नेत्री को खबरें प्लांटेशन की शिकायत। यों सुषमा का अपना कद और अलग सोच। सो उमा जैसे हश्र की बात कोई सोच भी नहीं सकता। पर महिलाओं के प्रति बीजेपी की सोच का एक और नमूना। जब-जब महिला नेत्री आगे बढ़ी, बीजेपी के पुरुष नेताओं ने टंगड़ी मारने में देर नहीं की। अपने राजस्थान में वसुंधरा राजे वसुंधरा राजे ने अपना मुकाम खड़ा किया। तो किस तरह कुर्सी छोडऩे के लिए मजबूर किया गया, दोहराने की जरूरत नहीं। अब जबसे सुषमा स्वराज ने विपक्ष के नेता पद की जिम्मेदारी संभाली। मनमोहन की दूसरी पारी में विपक्ष ने नाको चने चबवा दिए। सो बीजेपी में दूसरे पीएम इन वेटिंग की होड़ शुरू हो गई। राज्यसभा में अरुण जेतली ने नेता विपक्ष की कुर्सी संभाली। सो सुषमा-जेतली की नजर अब पीएम की कुर्सी पर गड़ गई। अंदरखाने पार्टी के भीतर अपनी-अपनी लॉबी बनाने की कोशिश होने लगी। दोनों नेता राज्यों में अपना प्रभाव जमाने में जुट गए। पर इस खेल में सुषमा थोड़ी पिछड़ गईं। पेशे से वकील होने के नाते जेतली अधिक तेज-तर्रार निकले। अभी भी बीजेपी में जेतली कैंप का जबर्दस्त दबदबा। पर जेतली की सबसे बड़ी कमी, जनता के बीच सुषमा जैसी अपील नहीं। बीजेपी का इतिहास इसी बात का साक्षी। आडवाणी तेज-तर्रार होते हुए भी कभी पीएम नहीं बन पाए। उदारवादी और जनता के दिलों पर राज करने वाले वाजपेयी बाजी मार गए। यों सत्ता अभी बीजेपी के लिए दूर की कौड़ी। पर लट्ठमलट्ठा शुरू हो गई। अगर सत्ता का मौका मिला, तो राजनीतिक कौशल, महिला और जनता की पसंद होने के नाते सुषमा भी वाजपेयी की तरह गठबंधन में सर्वस्वीकार्य हो सकतीं। सो अभी से ही गुरु घंटालों ने खेल खराब करना शुरू कर दिया। सुषमा ने पटना में ऐसा कुछ नहीं कहा, जो मोदी को बुरा लगे। बीजेपी हमेशा से गैलेक्सी ऑफ लीडर की बात करती। सुषमा ने भी यही कहा था- हर जगह जादूगर अलग-अलग। यानी गुजरात में मोदी, तो बिहार में सुशील-नीतिश। सो मोदी को किसी ने उकसाया या खुद की महत्वाकांक्षा ने जोर मारा, यह मालूम नहीं। पर पीएम इन वेटिंग की कुर्सी की दौड़ शुरू मानिए। नरेंद्र मोदी तो गठबंधन में कभी स्वीकार्य होंगे, आसार नहीं दिखते। सो असली जंग सुषमा बनाम जेतली, नरेंद्र मोदी तो सिर्फ बहाना बन गए। यों सुषमा-मोदी में मतभेद से भी इनकार नहीं। जब पटना कार्यकारिणी में मोदी के इश्तिहारों ने बंटाधार किया। तब भी सुषमा ने नाराजगी जताई थी। यों अरुण जेतली और मोदी की खूब छनती। सो ताजा मतभेद जेतली-सुषमा के बीच होड़ का ही नतीजा। पितृ पुरुष की भूमिका में आ चुके आडवाणी का दिल मोदी के लिए धडक़ता। तो दिमाग से जेतली-सुषमा के बीच बराबर का संतुलन बनाए रखा।
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28/10/2010