Friday, January 7, 2011

सवाल सीएजी पर या कांग्रेस खुद ही सवाल?

तो कपिल सिब्बल ने अपनी ‘काबिलियत’ दिखा ही दी। ए. राजा के इस्तीफे के बाद संचार मंत्रालय संभाला। सो पेशे से वकील सिब्बल ने चार्ज लेने के साठ दिन के भीतर ही ‘चार्जशीट’ पेश कर दी। सिब्बल को मंत्रालय संभाले अभी 53 दिन ही हुए। पर टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की ऐसी परतें उधेड़ीं। मानो, कोई घोटाला ही नहीं हुआ। सीएजी रपट और विपक्ष की खटिया खड़ी करते सिब्बल ऐसे मुस्करा-मुस्करा कर चुस्की ले रहे थे। मानो, अदालती फैसले से पहले ही केस जीत गए हों। सिब्बल तय एजंडे के साथ पूरे महकमे को लेकर पॉवर प्रजेंटेशन देने पहुंचे। तो सारा फोकस घोटाले के आंकड़े पर ही रखा। सीएजी की रपट में अधिकतम एक नील 76 खरब यानी 1.76 लाख करोड़ का नुकसान बताया गया। पर अपनी 53 दिन की मेहनत में सिब्बल ने न सिर्फ सीएजी के आंकड़ों को झुठलाया। अलबत्ता सीएजी की क्षमता पर भी सवाल उठा दिए। तकनीकी मामलों के आकलन में सीएजी को अनाड़ी बता आंकड़ों की झड़ी लगा दी। अपने सुप्रीम कोर्ट ने तो जांच का दायरा 2001 तक बढ़ाया। पर सिब्बल ने टेलीकॉम पॉलिसी की शुरुआत यानी 1994 से अब तक की जांच कर निष्कर्ष भी दे दिया। सुप्रीम कोर्ट अपनी टिप्पणी में कई बार कह चुका- इस घोटाले में जितना दिख रहा, मामला उससे कहीं आगे है। पर सिब्बल को स्पेक्ट्रम घोटाले में जितना कहा जा रहा, उससे कई गुना कम नजर आ रहा। सो सुप्रीम कोर्ट सही या सिब्बल, यह तो वक्त ही बताएगा। पर सिब्बल ने तो सारा ठीकरा सीएजी और विपक्ष के सिर फोड़, फास्ट ट्रैक कोर्ट के अंदाज में फौरन मामला रफा-दफा कर दिया। सिब्बल ने शुरुआत ही विपक्ष पर हमले से की। जेपीसी पर जाना-पहचाना राग दोहराया। बोले- विपक्ष ने संसद में बोलने का मौका नहीं दिया। सो हम जनता को अपनी बात कहने आए। उन ने सीएजी के अनुमान के तरीके पर सवाल उठाए। घोटाले के आंकड़े 1.76 लाख करोड़ को पूरी तरह गलत बताया। बोले- अगर सीएजी के इस मापदंड को मान लें। तो यह आंकड़ा 1.76 लाख करोड़ ही नहीं, 2.6 लाख करोड़ पहुंच जाएगा। सो सिब्बल ने सीएजी की समझ का मखौल उड़ाते हुए जमकर वकालत झाड़ी। बोले- ए. राजा की ओर से बांटे गए 122 स्पेक्ट्रम के लाइसेंस 4.4 मैगाहार्ट्ज के थे। पर सीएजी ने 6.2 मैगाहार्ट्ज से आकलन किया। यानी 37,154 करोड़ यहीं फालतू जोड़ा। फिर सीएजी ने 2010 के मार्केट रेट के आधार पर जनवरी 2008 में बांटे गए टू-जी स्पेक्ट्रम का आकलन कर दिया। सो 56,000 करोड़ यहीं कम हो गए। इतना ही नहीं, थ्री-जी स्पेक्ट्रम की कीमत को ध्यान में रख भी आकलन हुआ। सो 17,755 करोड़ और कम हुए। फिर टू-जी का लाइसेंस 20 साल के लिए दिया जाना था। लेकिन एक साल देरी हुई, सो 19 साल के लिए ही मिला। यानी 53,000 करोड़ यहीं कम हो गए। कुछ इसी तरह गुणा-भाग करते हुए सिब्बल ने आखिर में कह दिया- टू-जी स्पेक्ट्रम में देश के राजस्व का नुकसान निल रहा। पर सीएजी ने इस मामले में खुद के साथ अन्याय किया, विपक्ष ने आम आदमी के साथ। लगे हाथ सिब्बल 1994 और अब की फोन दरों का जिक्र करना नहीं भूले। बोले- 1994 में 32 रुपए मिनट, तो 1998-99 में 16 रुपए, 2004 में तीन रुपए और अब 30 पैसे प्रति मिनट की दर से फोन हो रहे। टेरिफ में इस कटौती से उपभोक्ताओं को सालाना मिलने वाला फायदा 1,50,000 करोड़ से भी अधिक। सो हमारी नीतियों का सबसे अधिक फायदा आम आदमी को हो रहा। यानी कुल मिलाकर कपिल सिब्बल ने विपक्ष को घेरने और सीएजी को अक्षम साबित करने में सारी काबिलियत लगा दी। एनडीए काल में संचार मंत्री रहे रामविलास पासवान, प्रमोद महाजन, अरुण शौरी की ओर से बांटे गए लाइसेंस का हवाला दिया। एनडीए की ओर से बनाई पहले आओ, पहले पाओ की नीति पर पूर्व राष्ट्रपति के. आर. नारायणन, पूर्व पीएम चंद्रशेखर और बाल ठाकरे के विरोध का जिक्र किया। सिब्बल ने 1999 में बदली गई टेलीकॉम पॉलिसी के लिए वाजपेयी को कटघरे में खड़ा किया। फिर बोले- स्पेक्ट्रम आवंटन में हमने एनडीए की ही नीति का अनुसरण किया। तो 1.76 लाख करोड़ के राजस्व नुकसान की बात कही जा रही, जो जनता के बीच भ्रम फैलाने का प्रयास। अब सवाल- जब सिब्बल एनडीए की नीति को कटघरे में खड़ा कर रहे। तो यूपीए ने क्यों जारी रखी? क्या मंत्री के पास कोई अपनी समझ नहीं? आखिर यह कैसी दलील, जब एक तरफ सिब्बल सीएजी की क्षमता पर सवाल उठा रहे। तो दूसरी तरफ सीएजी की ओर से उठाई कुछ गड़बड़ी की बात कबूल भी कर रहे। खुद सीबीआई भ्रष्टाचार पर मचे इस हंगामे से पहले 22,000 करोड़ के नुकसान का आकलन कर चुकी। पर सिब्बल ने सीएजी की रपट कितनी पढ़ी, आप खुद अंदाजा लगाओ। रपट में घोटाले के आकलन के तीन मापदंड। सबसे कम 58,000 करोड़ का। फिर 66,000 करोड़ और आखिरी आंकड़ा 1.76 लाख करोड़ का। यानी घोटाला 58,000 करोड़ से 1.76 लाख करोड़ के बीच का ही। पर भ्रष्टाचार के मुद्दे ने कांग्रेस की चूलें हिला रखीं। सो अपनी ही एजेंसी पर सवाल उठाने लगी सरकार। वैसे भी कांग्रेस की फितरत, अगर कोई संवैधानिक संस्था या नौकरशाह ‘जो तुमको हो पसंद, वही बात न करे’ तो ऐसे ही सवाल उठाती। जो सुर में सुर मिलाते, नवीन चावला और पी.जे. थॉमस की तरह आंखों के नूर बने रहते। तभी तो इनकम टेक्स ट्रिब्यूनल का फैसला मंजूर नहीं, सीएजी की रपट भी नहीं। सो कहीं सवाल खड़ा करते-करते कांग्रेस एक दिन देश के लिए ही सवाल न बन जाए।
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07/01/2011