Thursday, October 14, 2010

‘मैडल’ के लिए अब आयोजकों में भिड़ंत

कर्नाटक में गवर्नर ‘हंस’राज ‘मोती’ चुगकर भी चूक गए। बुनकेरे सिद्धलिंगप्पा येदुरप्पा ने आखिर बहुमत सिद्ध कर ही दिया। कांग्रेस-जेडीएस ने विधानसभा में विश्वास मत टलवाने की खूब कोशिश की। हाईकोर्ट के फैसले तक फैसला न सुनाने की स्पीकर से गुहार लगाई। पर स्पीकर ने सदन का फैसला सुना दिया। तो येदुरप्पा के पक्ष में 106 वोट पड़े, विपक्ष सौ वोट पर ही सिमट गया। अब सबकी निगाह सोमवार के हाईकोर्ट के फैसले पर। अगर हाईकोर्ट ने पांच निर्दलीय एमएलए को वोटिंग की अनुमति दे दी। तो भी बीजेपी बहुमत का दावा कर रही। पर कांग्रेस-जेडीएस की हालत अब खिसियानी बिल्ली जैसी। कानून मंत्री वीरप्पा मोइली और कुमारस्वामी के बयान का एक ही मतलब, दस दिन इंतजार करिए, सरकार गिर जाएगी। यानी चुनी हुई सरकार को कांग्रेस-जेडीएस चलने नहीं देना चाह रहीं। सो कर्नाटक में खरीद-फरोख्त का बाजार अपने उफान पर। अब गवर्नर हंसराज की भूमिका पर बीजेपी ही नहीं, जेडीएस भी सवाल उठा रही। बीजेपी विश्वास मत जीत गई, तो अब कुमारस्वामी ने गवर्नर पर किसी अज्ञात के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया। हारे हुए विपक्ष की कसक यही, गवर्नर ने दुबारा मौका क्यों दिया। पर क्या बहुमत की सरकार को बर्खास्त करना लोकतांत्रिक कदम होता? सचमुच अपने देश में नेताओं को लोकतंत्र की फिक्र ही कहां। कर्नाटक हो या कॉमनवेल्थ, लोकतंत्र पर जेबतंत्र भारी। कर्नाटक और कॉमनवेल्थ के मुख्य आयोजन का परदा गुरुवार को गिर गया। पर सोमवार से फिर नई बहस छिड़ेगी। कॉमनवेल्थ गेम्स का धूमधड़ाके के साथ समापन हो गया। तो अब श्रेय लेने की गलाकाट होड़ मच गई। सफल आयोजन के लिए दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित टीवी चैनलों पर खूब चेहरे चमका रहीं। पर याद करिए, गेम्स से ठीक पहले शीला कैसे मीडिया को काटने दौड़ती थीं। अब सबकुछ ढंग से निपट गया। कॉमनवेल्थ गेम्स फैडरेशन के मुखिया माइक फेनेल ने जमकर तारीफ कर दी। तो रणनीति बनाकर शीला मैदान में उतरीं। खेलगांव को संवारने का जिम्मा आखिरी वक्त में पीएम ने दिल्ली सरकार को सौंपा था। सो अब शीला सारा श्रेय अकेले बटोरने में ऐसे जुट गईं, मानो, बाकी प्रशासनिक अमला घास काट रहा था। सिर्फ शीला और शीला की टीम खेलगांव के हर कमरे में झाड़ू लगा रही थीं। सो दिल्ली के उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना को शीला की रणनीति फौरन समझ आ गई। उन ने पीएम को चिट्ठी लिखकर शीला की शिकायत कर दी। चिट्ठी में शीला के बयानों पर एतराज जताया। तैयारी में जुटे बाकी लोगों को किनारे करने की साजिश पर नकेल कसने की अपील की। अभी तो सिर्फ शीला और तेजेंद्र खन्ना मैदान में आए। सुरेश कलमाड़ी, जयपाल रेड्डी, एमएस गिल और केबिनेट सेक्रेट्री केएम चंद्रशेखर का कूदना बाकी। यों खेल के बीच में ही कलमाड़ी कह चुके- अब तो ओलंपिक की मेजबानी का दावा करे भारत। पर तैयारियों की असली पोल तो धीरे-धीरे खुलेगी। कहां, कितना घपला हुआ, यह भी सामने आएगा, भले बड़ी मछलियों पर कार्रवाई न हो। पर अहम सवाल, कॉमनवेल्थ गेम्स से क्या सबक ले रहे नेता? कॉमनवेल्थ गेम्स में आखिरी दिन पीएम मनमोहन हाकी का फाइनल देखने गए। पर हाकी में भारत हार गया। यों पीएम की पत्नी गुरशरण कौर सायना नेहवाल का बैडमिंटन देखने गईं, तो गोल्ड मिला। भारत-पाक के हाकी मैच में सोनिया-राहुल गए थे, तो टीम जीती। अब जो भी हो, आखिर में भारत ने पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल कर लिया। कुल 101 मैडल भारत के खाते में आए। मैडल जीतने वालों में खास तौर से ऐसे खिलाड़ी और एथलीट, जिन्हें सरकारी सहूलियतें नाम मात्र की मिलीं। सचमुच सहूलियतें मिलें, तो अपना भारत मैडलों के कई ऐसे सैकड़े लगा सकता। सो आयोजकों के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स का समापन जश्न का नहीं, अलबत्ता सबक लेने का वक्त। अगर खिलाडिय़ों को समुचित प्रोत्साहन मिले, तो ओलंपिक में भी परचम लहराए। कॉमनवेल्थ में हम ऊपर से दूसरे पायदान पर आ गए। अफसोस, ओलंपिक में हमारी गिनती नीचे से शुरू होती। अपने देश के सभी खेल फैडरेशनों में नेताओं का कब्जा। सो खेल में राजनीति घुस चुकी। यानी जहां-जहां पांव पड़े संतन के....। तभी तो पिछले साल गणतंत्र दिवस के मौके पर अभिनव-विजेंदर को पद्म पुरस्कार मिल गए। पर ओलंपिक में विजेंदर की तरह ही कुश्ती में कांस्य जीतने वाले सुशील कुमार को इसी मनमोहन सरकार ने ठेंगा दिखा दिया। अब देखिए, कैसे सुशील कॉमनवेल्थ से पहले वल्र्ड चैंपियन बने। कॉमनवेल्थ में कुश्ती का गोल्ड मैडल जीता। इतना ही नहीं, कॉमनवेल्थ में सबसे लोकप्रिय एथलीट होने का भी खिताब मिला। पर चमक-दमक की दुनिया से दूर रहने वाले सुशील को पिछली बार पद्म श्री के लायक भी नहीं समझा गया। यों अबके सरकार भूल सुधार करेगी, यही उम्मीद। पर सुशील के साथ हुई नाइंसाफी खेल में घुसी राजनीति की अनौखी मिसाल। फिर भी कॉमनवेल्थ गेम्स में आए मेहमानों की विदाई से पहले क्रेडिट लेने की जैसी होड़ मची। नेता सुधरेंगे, इसकी गुंजाइश नहीं दिखती। खिलाडिय़ों के मैडल का महाकुंभ तो निपट गया। अब मैडल के लिए आयोजकों में भिड़ंत हो रही। ताकि सिर्फ सफलता का ढोल बजे। और भ्रष्टाचार की सारी कहानी उस शोर में दब जाए। -----------
14/10/2010