Friday, November 19, 2010

तो दूसरी पारी में कांग्रेस बढ़ी, नैतिकता सिकुड़ी!

तो जेपीसी पर संसद का दंगल नहीं थमा। टू-जी ने सरकार का ऐसा वन-टू का फोर किया, पीएम की जुबां नहीं खुल रही। कांग्रेसी अब बेबाक कह रहे, सिर्फ कोर्ट में जवाब देंगे। सचमुच सुप्रीम कोर्ट ने दिन में तारे न दिखाए होते। तो विपक्ष के तेवर कांग्रेस कबका पस्त कर चुकी होती। पर कोर्ट का डंडा ऐसा चला, कांग्रेस की सांस उखड़ रही। तो विपक्ष को मानो संजीवनी मिल गई। सो विपक्ष ने खम ठोक दिया- जेपीसी नहीं, तो संसद की कार्यवाही भी नहीं। पर सत्तापक्ष से प्रणव मुखर्जी भी पीछे नहीं रहे। एलान कर दिया- जेपीसी मंजूर नहीं। विपक्ष पहले पीएसी की रपट का इंतजार करे। प्रणव दा ने विपक्ष से एक बार फिर संसद चलने देने की अपील की। सोमवार से पहले एक और कोशिश करेंगे। फिर भी बात न बनी, तो शीत सत्र को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ाने का विकल्प भी खुला। सो सरकार के साथ-साथ विपक्ष भी पसोपेश में, आखिर बाकी मुद्दों का क्या होगा। पर फिलहाल जैसी रार ठनी, गतिरोध खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे। भ्रष्टाचार की बयार ऐसी चल रही, कोई बच नहीं पा रहा। विपक्ष संसद में हावी, पर कर्नाटक में बीजेपी का कुकर्म परेशान कर रहा। यों शुक्रवार को सीएम येदुरप्पा के परिजनों ने सरकारी जमीन वापस लौटा दी। पर बीजेपी अभी भी कार्रवाई से बच रही। येदुरप्पा दिल्ली तलब किए गए। पर न्यायिक जांच की आड़ में कुर्सी बचाने की कोशिश हो रही। अब आप खुद ही देख लो। जमीन डिनोटीफाई कर अपनों को रेवड़ी बांटने के मामले की जांच का एलान हुआ। पर पिछले दस साल तक के मामले जांच के दायरे में होंगे। यानी सरकारी जमीन को कौडिय़ों के भाव लुटाने के मामले में बीजेपी ही नहीं, कांग्रेस-जेडीएस भी शामिल। पर सवाल, क्या बीजेपी को नैतिकता नहीं दिख रही? यों शुक्रवार को एसएस आहलूवालिया ने एलान कर दिया- हमारा सीएम दोषी पाया गया, तो निकाल बाहर करेंगे। पर बीजेपी भूल रही, अशोक चव्हाण अभी दोषी पाए नहीं गए थे। नैतिकता तो सचमुच सिर्फ कहने की बात। सत्ता के लिए सब कुछ करेगा का फार्मूला ही सबके लिए। राजनीति में तो नैतिकता अब कहने भर की भी नहीं रही। सिर्फ और सिर्फ सत्ता के लिए किसी को शिबू सोरेन से हाथ मिलाने में हिचक नहीं। तो कोई रेड्डी बंधुओं के नखरे सहने को तैयार। कभी राजीव हत्याकांड पर बने जैन कमीशन की रिपोर्ट में डीएमके पर उंगली उठी। तो कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चा की सरकार गिराने में देर नहीं की। फिर डीएमके ने सत्ता के शिखर तक पहुंची बीजेपी का दामन थाम मलाई काटी। फिर 2004 में वही डीएमके कांग्रेस के साथ खड़ी हो गई। यूपीए-टू में मनमोहन और कांग्रेस थोड़ी मजबूत हुई। तो मनमोहन ने ए. राजा और टीआर बालू को मंत्रालय में न लेने का विचार रखा। पर मनमोहन की नहीं चली। मनमोहन तो सिर्फ कांग्रेस की ओर से पीएम पद पर मनोनीत व्यक्ति। असल में नेता तो सोनिया गांधी। सो सत्ता के लिए सोनिया गांधी ने तब जो समझौता किया, आज उसके काले छींटे मनमोहन पर पड़ रहे। सो टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के कर्ताधर्ता ए. राजा के मामले में पीएम मनमोहन से बड़ी जवाबदेही सोनिया गांधी की। पर सरकार के मुखिया होने के नाते विपक्ष और न्यायपालिका की तोप मनमोहन की ओर घूमी हुई। सो सवालों के लपेटे में कांग्रेस का राज दरबार न आ जाए, इसलिए कांग्रेस का शीर्ष ब्रिगेड मनमोहन के बचाव में उतर आया। जनार्दन द्विवेदी ने तो पहले ही एलान कर दिया- पीएम के साथ थे, हैं और रहेंगे। अब शुक्रवार को राहुल गांधी ने भी बचाव किया। तो बोले- पीएम पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी में शर्म की कोई बात नहीं और ना ही पीएम के लिए कोई असहज स्थिति। अब अगर राहुल की बात छोड़ दें। तो राजनीति में शर्म नाम की कोई चीज ही नहीं। अगर शर्म की बात होती, तो ए. राजा की जगह संचार मंत्रालय संभालने वाले कपिल सिब्बल यह नहीं कहते, दुनिया में हर जगह भ्रष्टाचार है। उन ने पीएमओ की कलई खोलने वाले सुब्रहमण्यम स्वामी की हैसियत पर भी सवाल उठा दिए। पर सवाल, क्या किसी हैसियत वाले आदमी को ही पीएम से सवाल पूछने का हक? अब शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में पीएम के जवाब पर सबकी निगाह होगी। पर फर्क देखिए, शुक्रवार को जहां राहुल ने कोर्ट की टिप्पणी से शर्मिंदगी को अलग कर दिया। वहां मां सोनिया गांधी राजनेता कम, दार्शनिक अंदाज में प्रवचन देतीं दिखीं। इंदिरा गांधी की जयंती पर तीन मूर्ति भवन में समारोह हुआ। तो उन ने जो कहा, उसका लब्बोलुवाब देखिए। आर्थिक तरक्की के बीच नैतिकता का पतन हुआ। लालच और भ्रष्टाचार बढ़ा और नैतिकता सिकुड़ी। देश में करोड़पति बढ़े, तो गरीबी भी बढ़ी। करोड़ों लोग दो जून की रोटी नहीं जुटा पा रहे। विकास ही सब कुछ नहीं। हम कैसा समाज चाहते हैं, यह सोचना होगा। आजादी के सिद्धांतों से खिलवाड़ हुआ। यानी कुल मिलाकर सोनिया ने तरक्की का सेहरा मनमोहन के सिर बांधने की कोशिश की। भ्रष्टाचार का सेहरा राजा के सिर। पर सवाल, पिछले छह-सात साल से कांग्रेस की ही सरकार। फिर गरीबी-अमीरी का फासला क्यों बढ़ा। नैतिकता के पतन पर नकेल क्यों नहीं कसी? देश में महंगाई हुई, तो विकास की चादर में ढक दिया। अब भ्रष्टाचार को भी विकास की चादर में ढांपने की कोशिश। तो ऐसे प्रवचन को अपना नमन।
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19/11/2010