Friday, July 16, 2010

पीठ में खंजर घोंपना तो पाक की फितरत

लो, कर लो बात। भारत-पाक विदेश मंत्री स्तर की बात बनी कम, बिगड़ ज्यादा गई। जगजाहिर हो गया, दोनों देशों की बातचीत महज रस्म अदायगी। तभी तो गुरुवार को दोनों विदेश मंत्री वार्ता की मेज पर बैठे। पर शुक्रवार को रिश्तों पर दोनों तरफ से जुबान की कैंची चली। पाक के विदेश मंत्री एसएम कुरैशी और अपने एसएम कृष्णा पद ही नहीं, नाम में भी एक राशि के। पर शांति वार्ता ऐसी हुई, दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख न सुहाए। सो शुक्रवार को कृष्णा दिल्ली रवाना हुए। तो कुरैशी ने पाक की नीयत जाहिर कर दी। बौखलाहट कुरैशी के चेहरे से साफ झलकी। जब भारत के साथ-साथ कृष्णा पर फब्ती कसी। भारत को बातचीत में चुनिंदा बताया। तो कृष्णा को अपरिपक्व बताने की कोशिश की। कहा- मैंने पूरी बातचीत में किसी से निर्देश नहीं लिया। पर भारत के विदेश मंत्री को बार-बार नई दिल्ली से निर्देश लेना पड़ रहा था। पर कृष्णा जैसे ही दिल्ली उतरे, कुरैशी की कलई खुल गई। कृष्णा ने एक बार भी फोन से बात नहीं की। पर कुरैशी ने झूठ क्यों बोला? अगर आपने कुरैशी की लाइव प्रेस कांफ्रेंस देखी हो, तो बौखलाहट साफ देखी होगी। कुरैशी ने भारत को चुनिंदा मुद्दे पर बात करने वाला बताया। पर यह नहीं बताया, किस मुद्दे को लेकर रार ठनी। सच तो यह, भारत ने आतंकवाद पर जोर दिया। पाकिस्तान हुक्मरानों से हिसाब-किताब मांगा। तो कुरैशी ने कश्मीर राग छेड़ दिया। पर भारत की रणनीति तय थी। पी. चिदंबरम ने 26 जून को जो डोजियर सौंपा, उस पर बीते तीन हफ्ते में पाक ने क्या कदम उठाया? पर कदम उठाया हो, तो कुरैशी जवाब देते। पर भारत की आतंकवाद पर जिद ने कुरैशी को कुलबुला दिया। कुरैशी की खीझ तो गुरुवार को ही दिख गई, जब उन ने भारत के गृह सचिव जीके पिल्लई के बयान की तुलना आतंकवादी हाफिज सईद से कर दी। पिल्लई ने आखिर वही कहा था, जो एनआईए को पूछताछ में डेविड हेडली ने बताया। अमेरिकी एजेंसी एफबीआई के साथ अपनी एनआईए ने शिकागो में हेडली से पूछताछ की। तो हेडली ने मुंबई हमलों की साजिश की शुरुआत से अंत तक आईएसआई की भूमिका का खुलासा किया था। यानी आतंकवाद पर पाक चौतरफा घिरा, तो मुद्दे से फोकस हटाने को फिर पुराना राग छेड़ दिया। अब आप कुरैशी की पूरी प्रेस कांफ्रेंस का लब्बोलुवाब देखें। तो कुरैशी ने कश्मीर, सियाचीन, सरक्रीक का मुद्दा उठाया। भारत के अधिकार वाले कश्मीर में हुए निष्पक्ष चुनावों पर सवाल उठाए। हुर्रियत जैसे संगठनों के बिना चुनाव को निष्पक्ष नहीं मानता पाक। पर सबसे अहम जो पाक ने अबके यह मान लिया, कश्मीर में उपद्रव के पीछे उसी का हाथ। कुरैशी ने बेझिझक कह दिया- कश्मीर एक विवादित क्षेत्र। अगर वहां हिंसा हो रही, तो पाक मूकदर्शक नहीं रह सकता। अगर भारत वहां सेना भेजेगा, तो असर पाक पर भी होगा। यानी विदेश मंत्री स्तर की बातचीत का इतना फायदा तो हुआ, पाक ने कश्मीर में उपद्रव को शह देना कबूला। अब विदेश मंत्री स्तर की पहली बातचीत में पाक का यह रवैया क्या जतला रहा? पर कृष्णा ने भले आतंकवाद को मुख्य मुद्दा बना पाक को घेरा। मुंबई हमले के दोषियों पर कार्रवाई की मांग दोहरा दुखती रग छेड़ दी। पर कृष्णा ने कूटनीतिक चूक भी कर दी। जब गुरुवार को साझा प्रेस कांफ्रेंस में कुरैशी ने भारत के गृह सचिव की तुलना आतंकी हाफिज सईद से कर दी। तो अपने कृष्णा चुपचाप रहे। अगर तभी अपना एतराज जताया होता। तो अपनी विदेश नीति की धमक दिखती। पर कृष्णा तो ऐसे निकल लिए, जैसे कुछ सुना ही न हो। अगर तभी कृष्णा ने एतराज किया होता, तो शायद कुरैशी शुक्रवार को बड़ी हिमाकत न करते। यही नहीं, कृष्णा न तो पाक में बोले, न शुक्रवार को स्वदेश लौटने पर। कुरैशी के बयान से राजनीतिक पारा चढ़ गया। तो एयरपोर्ट पर ही कृष्णा ने जवाब दिया। कुरैशी के आरोपों पर पलटवार करने के बजाए महज सफाई देते दिखे। उन ने पिल्लई के बयान की तुलना पर एतराज जताया। पर कह गए- कुरैशी की तरह बयानबाजी कर प्वाइंट स्कोर नहीं करना चाहते। यों कृष्णा की बात सही। पर यह कैसी कूटनीति, जो पाक चोरी भी करे और फिर हमीं से सीनाजोरी करे। सो बीजेपी ने तो पाक से वार्ता बंद करने की मांग की। पर कांग्रेस ने खारिज कर दिया। सचमुच मुंबई हमले के बाद भारत ने पाक के खिलाफ जो कूटनीतिक सफलता हासिल की, अबके गंवा दी। पाक से वार्ता की पेशकश पहले भारत ने ही की। तो इन्हीं कुरैशी ने मजाक उड़ाया था। भारत को घुटनाटेकू बताया था। फिर भी 11 मई को अपने कृष्णा ने कुरैशी से फोन पर बात की। वार्ता के लिए 15 जुलाई मुकर्रर की थी। पर पहले 26 जून को चिदंबरम गए। जिन ने भी आतंकवाद पर फोकस किया। अब कृष्णा ने भी। पर मुंबई हमले के बाद से अब तक कार्रवाई के नाम पर पाक कितने पेंतरे बदल चुका, क्या मनमोहन सरकार को इल्म नहीं। फिर भी बातचीत का स्तर अपग्रेड होता गया। पर शुक्रवार को बदले में क्या मिला। अब दिसंबर में कुरैशी को दिल्ली आने का न्योता दिया गया। यों सरकार का एक खेमा भी बातचीत रोकने की पैरवी कर रहा। पर अंकल सैम को दिखाने के लिए बातचीत होगी। दोनों के दिल में क्या, यह तो रिस-रिस कर बाहर आ रहा। तो क्या सचमुच दोनों देशों की बातचीत से विश्वास का माहौल बन रहा? विदेश सचिव स्तर की वार्ता हो या विदेश मंत्री स्तर की, सिर्फ कड़वाहट पैदा कर रही। पाक अपनी हरकत से बाज नहीं आ सकता। जब वाजपेयी लाहौर बस लेकर गए, तो बदले में कारगिल मिला। अबके कृष्णा दिल मिलाने गए, तो कुरैशी ने जुबानी छुरा घोंप दिया।
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16/07/2010