Monday, June 7, 2010

'राम' की छाया पड़ते ही बीजेपी में बवंडर

तो बीजेपी के सुराज की शुरुआत राम जेठमलानी के साथ हुई। कभी बीजेपी अटल बिहारी की पार्टी थी, अब गगनविहारी नेताओं का कब्जा हो चुका। सो वाजपेयी के अस्वस्थ होने का खूब फायदा उठा रहे। चाल, चरित्र, चेहरे की बलि तो बीजेपी पहले ही चढ़ा चुकी। अब विचारधारा और विजन की भी आहुति दे दी। जैसे कोई लालची बेटा अपने बाप की बीमारी का फायदा उठा सारी दौलत हथियाकर बैठ जाता। कुछ यही हाल अटल बिहारी की बनाई बीजेपी का हो गया। सो मुंबई में बीजेपी के सीएम कॉन्क्लेव का एजंडा तो सुराज था। पर सुराज के सबसे बड़े पैरोकार आडवाणी नहीं पहुंचे। क्यों नहीं पहुंचे, वजह बीजेपी प्रवक्ता को भी मालूम नहीं। अरुण जेतली भी नहीं गए, यशवंत सिन्हा मुंबई एयरपोर्ट जाकर लौट आए। पर वजह बीजेपी ने बताई, जेतली के किसी रिश्तेदार का निधन हो गया। तो सिन्हा कुल्लू-मनाली में छुट्टियां मना रहे थे। रविशंकर की मानें, तो राजनाथ को बुलाया ही नहीं गया था। पर नाराजगी की असली वजह भी सुनते जाइए। राज्यसभा चुनाव में टिकट बंटवारे ने बीजेपी को वापस वहीं ला खड़ा किया, जहां से गडकरी ने कमान संभाली थी। गडकरी ने भी शुरुआत में सपनों का बुर्ज खलीफा खड़ा कर दिया। पर भूल गए, समंदर के बीच बुर्ज को टिकाए रखना आसान नहीं। जेठमलानी को टिकट दिया, तो अरुण जेतली, वसुंधरा राजे, यशवंत सरीखे नेता नाराज। राजनाथ-यशवंत को तो झारखंड के टिकट में पूछा तक नहीं। बीजेपी ने अबके हर राज्य में एक बाहरी उम्मीदवार थोपने का मन बनाया। पर इतना बवंडर मचेगा, उम्मीद नहीं थी। जेठमलानी तो विशुद्ध बाहरी उम्मीदवार। पर सोमवार को अपनों के टिकट पर भी सवाल उठ गए। संघ पृष्ठभूमि से बीजेपी में आए शेषाद्रि चारी ने लेटर बम फोड़ दिया। जैसे लोकसभा चुनाव के बाद अपने जसवंत-यशवंत और शौरी ने फोड़ा था। शेषाद्रि चारी ने तरुण विजय को उत्तराखंड से टिकट दिए जाने पर एतराज जताया। गडकरी को लिखी चिट्ठी में कहा- 'अब यह साफ हो गया है कि जबसे चुनाव में पार्टी हारी है, केंद्रीय नेतृत्व विचारधारा और विजन से भटकता जा रहा है।' तरुण विजय की ओर इशारा करते हुए शेषाद्रि चारी ने लिखा- उत्तराखंड से ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया गया, जिनकी ईमानदारी पर सवाल उठे हैं। चारी ने बाद में बेखौफ कहा- 'ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया जाना, जिसके बारे में पार्टी का जांच कमीशन वित्तीय गड़बड़ी का दोषी मान पद से हटने को मजबूर कर चुका हो, पार्टी के लिए उचित नहीं।' अब शेषाद्रि चारी गडकरी से मिलेंगे, तो जमीनी वर्करों की उपेक्षा का सवाल फिर उठाएंगे। पर नाराजगी सिर्फ उत्तराखंड में नहीं। मध्य प्रदेश से पत्रकार चंदन मित्रा को टिकट दिया जाना कई नेताओं को नहीं पच रहा। पर मजबूरी यह है कि राज्य इकाई ने पिछली बार ही एक बाहरी के लिए केंद्र को वादा कर दिया था। सो थावरचंद गहलोत अपनी नाराजगी का इजहार दूसरे तरीके से करेंगे। पटना वर्किंग कमेटी में गडकरी से पूछा जाएगा, क्या यही है दस फीसदी वोट बढ़ाने का मंत्र? आखिर बीजेपी ने किसी दलित को टिकट क्यों नहीं दिया? अब सोचो, दलित की बात उठेगी, तो फिर महिला का भी सवाल उठेगा। बीजेपी ने एक नहीं, तीन-तीन महिलाओं नजमा-हेमा-स्मृति को दिया वादा तोड़ दिया। अब बीजेपी में जेठमलानी के खिलाफ विरोध को देख कांग्रेस ने भी संतोष बागड़ोदिया को निर्दलीय मैदान में उतार दिया। यानी अब राजस्थान में घोड़ों की मंडी सजेगी। कितने विधायकों की पौ-बारह हुई, यह तो सत्रह जून को ही मालूम पड़ेगा। पर राम जेठमलानी के आने से बीजेपी का कितना भला होगा। बीजेपी को 86 साल के जेठमलानी में भविष्य दिख रहा। जेठमलानी गुजरात दंगे के मामले में मोदी सरकार की ओर से पैरवी कर रहे। सो मोदी ने वीटो लगाकर टिकट दिलाया। क्या वकालत की फीस अब राज्यसभा की टिकट? अगर बीजेपी का यह मापदंड, तो फिर बीजेपी को कांग्रेस पर दोषारोपण हा हक नहीं। जेठमलानी की छवि आया राम-गया राम से कम नहीं। पर आडवाणी के हमेशा खास रहे। अब इसे दोनों का सिंध प्रांत से होना मानो, या कुछ और। पर वाजपेयी सरकार में मंत्री बने, तो आडवाणी की वजह से। तब भी जुडिशियरी के खिलाफ बोल बखेड़ा किया, तो जाना पड़ा। अफजल की फांसी पर बीजेपी के उलट स्टैंड। पिछले साल दस अगस्त को वड़ोदरा में उन ने कसाब के लिए भी वही राय दी थी। उन ने कहा था- 'कसाब को फांसी नहीं, जेल में सडऩे देना चाहिए।' इंदिरा के हत्यारे की पैरवी कर चुके। हर्षद मेहता, केतन पारिख का बचाव कर चुके। जेसिका लाल के मर्डरर मनु शर्मा का केस लड़ चुके। अब ललित मोदी का लड़ेंगे। सो बीजेपी कह रही- अब जेठमलानी पार्टी की भाषा बोलेंगे। सो इतिहास देख भविष्य का इंतजार करिए। बात अधिक पुरानी नहीं। जब जसवंत बीजेपी से निकाले गए, तो दस सितंबर को जयपुर में जेठमलानी ने बीजेपी में ठोस नेतृत्व का अभाव बताया था। जसवंत की बर्खास्तगी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ बताया था। पर जेठमलानी को टिकट दिए जाने की असली वजह तब समझ आई, जब 16 अप्रैल 2009 को दिया जेठमलानी का एक इंटरव्यू पढ़ा। तब जेठमलानी ने कहा था- 'मेरे बेटे महेश को नॉर्थ-सेंट्रल मुंबई से टिकट देने की खबर सबसे पहले मुझे कमला ने बताई थी। कमला मेरी राखी सिस्टर।' अब आप गांव-गांव में बोली जाने वाली कहावत दोहराओ, बीजेपी को अपने हाल पर छोड़ दो।
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07/06/2010