Wednesday, March 23, 2011

तो शे‘रबाजी में गीदड़ ही दिखा लोकतंत्र!

तेईस मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया। भगत सिंह को फांसी 24 मार्च को दी जानी थी। पर उनके इंकलाब का खौफ अंग्रेजों पर इतना था। एक दिन पहले ही चुपके से फांसी पर चढ़ा दिए। अंग्रेजों को आभास हो गया था, गर तय समय पर फांसी हुई। तो लोगों की भीड़ अंग्रेजी हुकूमत के लिए खतरा बन जाएगी। बुधवार को अपनी संसद ने 80वें शहादत दिवस पर भगत, राजगुरु, सुखदेव को श्रद्धांजलि दी। पीठासीन अधिकारियों ने शहीदों से प्रेरणा लेने की नसीहत दी। पर आजकल स्वाधीनता सेनानी सिर्फ जयंती और पुण्य तिथि के दिन ही याद किए जाते। प्रेरणा तो लोग अब राडियाओं, राजाओं, कलमाडिय़ों से लेते। हर कोई जल्द से जल्द टाटा, बिड़ला, अंबानी बनने का ख्वाब देखता। संसद ने बुधवार को शहीद त्रिमूर्ति का स्मरण किया। तो भूल गए, भगत सिंह ने फांसी से पहले क्या कहा था। उन ने कहा था- ‘अंग्रेजों के बाद जो हम पर राज करेंगे। वह भी देश को लूटेंगे। सो मैं फिर पैदा होऊंगा।’ सचमुच युवा अवस्था में ही भगत सिंह ने देश की बुढ़ाती व्यवस्था का चेहरा भांप लिया था। आज व्यवस्था में करीब-करीब हर कोई तभी तक ईमानदार, जब तक बेईमानी का मौका नहीं मिलता। पर अफसोस, कोई अपने घर में भगत सिंह नहीं चाहता। सो अपनी व्यवस्था महज ड्रामा बनकर रह गई। जब चाहे जो अपनी ढपली बजा जाता। अब बुधवार को वोट के बदले नोट कांड पर अपने प्रकांड नेताओं ने खूब भाषणबाजी की। पर कोई निचोड़ नहीं निकला, अलबत्ता मनमोहन ने अपनी बात दोहरा दी- निचुड़े हुए नींबू को और मत निचोड़ो। देश में बहुतेरे मुद्दे, जिनकी चिंता करने की जरूरत। विपक्ष पश्चिम एशिया के देशों में चल रहे संघर्ष पर चर्चा करे, न कि विकीलिक्स के खुलासे पर। यानी विकीलिक्स की पुष्टि को पीएम ने फिर धता बता दिया। बहस के बीच में संसदीय कार्यमंत्री पी.के. बंसल ने तो विकीलिक्स को साइबर आतंकवाद से जोड़ दिया। राज्यसभा में होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम ने वोट के बदले नोट कांड के वक्त हुए स्टिंग ऑपरेशन की जांच पर विशेष जोर दिया। चिदंबरम बोले- स्टिंग ऑपरेशन की योजना एक राजनीतिक दल (बीजेपी) ने बनाई थी। जो अपने सांसदों के लिए खरीददार की तलाश में था, ताकि स्टिंग को अंजाम दिया जा सके। यानी अब भी वोट के बदले नोट कांड से परदा उठाने की कोई बात नहीं। अलबत्ता पीएम हों या चिदंबरम, पूरे प्रकरण को ही गलत बता रहे। पर सवाल- जब लेफ्ट ने समर्थन खींच लिया था। तब 22 जुलाई के विश्वास मत से पहले 14 जुलाई को ही सीपीआई के महासचिव ए.बी. वर्धन ने खुलासा किया- मनमोहन एक-एक सांसद को खरीदने में जुटे। सांसद घोड़े बन चुके। मंडी में एक-एक घोड़े की कीमत 25-25 करोड़ रुपए लग रही। सचमुच एक-एक वोट की जुगाड़ में मनमोहन सरकार जुटी हुई थी। जेल में बंद सांसदों की तो जुलाई 2008 में समझो मौज आ गई। अब भले मनमोहन-चिदंबरम जुलाई 2008 के विश्वास मत को बहुमत बताएं। पर सनद रहे, सो याद दिलाते जाएं। मनमोहन सरकार के ही मंत्री रामविलास पासवान ने 18 जुलाई 2008 को कहा था- 272 का जादुई आंकड़ा दोनों में से किसी के पास नहीं, यही ईमानदारी की बात। अब कोई पूछे- फिर विश्वास मत में बहुमत का आंकड़ा कैसे जुटा? जिन विपक्षी सांसदों ने पलटूराम की उपाधि धारण की, क्या यों ही? गुरुदास दासगुप्त ने तो साफ कहा- संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व घटना, जब विश्वास मत के दौरान विपक्ष के कई सांसद गैर-हाजिर रहे। शरद यादव ने भी कहा- अखबार ने क्या लिखा, उस पर नहीं जाऊंगा। पर जिस तरह से 19 सांसदों ने पाला बदला था, मैंने अपनी आंखों से देखा। मेरी पार्टी के भी दो सांसद थे। जिनमें एक धन के लालच में, तो दूसरा टिकट के लालच में पलटी मार गया। सो बहुमत के लिए नोट का खेल हुआ, इसे कोई दिल से इनकार नहीं कर सकता। सो बहस के दौरान सुषमा स्वराज ने मनमोहन पर खूब तीर चलाए। बोलीं- पीएम अपनी भलमनसाहत का सहारा लेकर दूसरों पर ठीकरा फोड़ते हैं। देश में महंगाई, तो शरद पवार, कॉमनवेल्थ घोटाला, तो कलमाड़ी, टू-जी घोटाला, तो राजा जिम्मेदार। और जहां कुछ नहीं पता, वहां गठबंधन की मजबूरी। सो अब पीएम के बहानों से जनता तंग आ चुकी। अब लोग पूछ रहे- पीएम पद पर बने रहने की क्या मजबूरी है? सुषमा ने शायराना अंदाज में पीएम के जमीर को ललकारा। बोलीं- न इधर-उधर की तू बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा? हमें रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है। पर पीएम ने बुधवार को भी नया पेंतरा ढूंढ लिया। विपक्ष ने संसदीय जांच रपट के आधार पर झूठा बताया, तो पीएम ने बुधवार को इसका ठीकरा पूर्व स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के सिर फोड़ दिया। बोले- जांच कमेटी की रिपोर्ट के बाद 16 दिसंबर 2008 को सदन में सोमनाथ ने जो बात कही, मैंने वही कहा। पर पीएम ने चतुराई दिखाई। सुषमा ने पीएम पर तीर चलाए थे। तो पीएम ने सीधे आडवाणी की दुखती रग पर हाथ रख दिया। बोले- आडवाणी को विश्वास था कि पीएम बनना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। सो उन ने मुझे इस बात के लिए कभी माफ नहीं किया कि मैं पीएम हूं। आखिर में सुषमा की शायरी पर पीएम ने भी शे‘र मारा- माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक तो देख, मेरा इंतजार तो देख। पर शे‘र-ओ-शायरी के बीच समूची बहस का निचोड़ क्या निकला। मुद्दे वहीं रह गए। यानी शे‘रबाजी में लोकतंत्र को गीदड़ बना दिया।
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23/03/2011