Monday, March 14, 2011

जापान तो उठ जाएगा, पर अपने नेता कितना गिरेंगे?

कहते हैं- मुसीबत अकेले नहीं आती। चाहे कुदरत के कहर से जूझ रहा जापान हो या अपनों के कारनामों से बदनाम हो रही यूपीए सरकार। पहले भूकंप, फिर सुनामी, ज्वालामुखी और अब परमाणु रिएक्टरों में हो रहे विस्फोट से रिसाव तक। पैंसठ साल बाद जापान एक बार फिर विनाश के कगार पर खड़ा। फर्क सिर्फ इतना, छह और नौ अगस्त 1945 की तबाही मानव निर्मित थी। पर अबके प्राकृतिक आपदा। सो मुश्किल घड़ी में मदद को दुनिया के हाथ आगे बढऩे लगे। सोमवार को अपने पीएम मनमोहन सिंह ने भी संसद में बयान देकर दुख जताया। दिल खोलकर मदद की पेशकश कर दी। पर जापान की मुसीबत ने भारत की भी चिंता बढ़ा दी। सो मनमोहन ने देश के परमाणु ठिकानों की सुरक्षा की समीक्षा के निर्देश दिए। ताकि सुनामी और भूकंप जैसी प्राकृतिक विपदाओं के प्रभाव को आसानी से झेला जा सके। यानी जापान के जलजले ने एटमी डील के पैरोकार मनमोहन की चिंता बढ़ा दी। यों जापान की तबाही का फिलहाल अनुमान लगाना नामुमकिन। सो बात यूपीए सरकार की मुसीबत की। सोमवार को संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल को लेकर संसद में बलवा हुआ। दोनों सदनों की कार्यवाही विपक्ष ने तयशुदा रणनीति के तहत नहीं चलने दी। चंडीगढ़ बूथ आवंटन में घपले का आरोप लगा बंसल के इस्तीफे की मांग की। चंडीगढ़ के कृष्णा मार्केट में आगजनी के शिकार लोगों को दुकानें मिलनी थीं। पर बूथ माफिया सक्रिय हो गए। सो मजिस्ट्रेट जांच शुरू हुई। चंडीगढ़ के पूर्व अतिरिक्त उपायुक्त कैप्टेन पी.एस. शेरगिल ने अपनी रपट में आरोप लगाया- बूथ माफिया को पवन कुमार बंसल का संरक्षण हासिल था। सो रपट का खुलासा होने के बाद सोमवार को बीजेपी ने चंडीगढ़ में बंसल के घर का घेराव किया। तो संसद में कार्यवाही नहीं चलने दी। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने लोकसभा में, तो राज्यसभा में राजीव प्रताप रूड़ी ने मोर्चा संभाला। फिर बंसल ने पूरी तैयारी के साथ जवाब दिया। जांच रपट पर सवाल खड़े किए। बोले- मैं किसी भी जांच को तैयार। विपक्ष के नेता ही अपने सांसदों की एक कमेटी बना लें। अगर मैं रत्ती भर भी गलत पाया गया, तो कभी संसद की ओर मुंह नहीं करूंगा। भावुकता से भरे बंसल ने सारे आरोपों को बीजेपी की साजिश करार दिया। उन ने सुषमा स्वराज और नवजोत सिंह सिद्धू को चंडीगढ़ से चुनाव लडऩे की चुनौती भी दे दी। पर सुषमा ने बंसल की चुनौती को हवा में उड़ाया या चुनौती से भागने की कोशिश की, यह तो वही जानें। पर ऐसा जतलाया, मानो बंसल चुनौती के काबिल नहीं। बोलीं- बंसल को हराने के लिए सुषमा को जाने की जरूरत नहीं। सुषमा का नाम लेकर कोई स्थानीय नेता भी खड़ा हो जाए, तो बंसल को हरा देगा। अब कौन सच्चा, कौन झूठा, यह जांच की बात। पर बीजेपी ने सीबीआई जांच की मांग की। तो बंसल ने सोलह आने सही कहा। एक तरफ सीबीआई पर भरोसा नहीं, दूसरी तरफ उसी से जांच की मांग का क्या मतलब? सचमुच बीजेपी को अपने गिरेबां में झांकने की जरूरत। सोमवार को संसद में सीबीआई जांच और इस्तीफे की मांग की। पर बैंगलुरु में बीजेपी के ही सीएम बी. एस. येदुरप्पा ने अपने खिलाफ लगे आरोपों पर इस्तीफा तो दूर, सीबीआई जांच से भी इनकार कर दिया। बोले- मुझे सीबीआई पर भरोसा नहीं। अब इसे बीजेपी का अंतद्र्वंद्व ना कहें, तो क्या कहें? थॉमस मसले पर बीजेपी का अंतर्विरोध जगजाहिर हो चुका। सो सोमवार को दोनों सदनों में एक जैसी रणनीति का दिखावा किया। पर क्या अंदरूनी कलह ढांपने के लिए संसद को ढाल बनाना सही? यों संसद की फिक्र किसे। सोमवार को हंगामा बंसल के मुद्दे पर हुआ। कांग्रेस-बीजेपी की भिड़ंत बीजेपी-सपा में बदल गई। कांग्रेसी तो मजे लेने लगे। पर सोमवार को सदन में जो हुआ, सचमुच लोकतंत्र को शर्मसार करने वाला। बंसल अपनी सफाई के साथ-साथ सुषमा-सिद्धू को चुनौती देकर बैठ गए। पर सुषमा जवाब देने खड़ी हुईं, तो स्पीकर मीरा कुमार ने अनुमति न देकर सपा के अखिलेष यादव का नाम पुकार लिया। यों सुषमा की दलील सही। जब मंत्री ने नाम लेकर चुनौती दी। तो जवाब देने का उनका हक। वैसे भी विपक्ष का नेता बोलने को खड़ा हो। तो परंपरा यही, स्पीकर अनुमति दे देता। पर मीरा कुमार ने ऐसा नहीं किया। सो सुषमा के इशारे पर उत्तेजित बीजेपी सांसद वैल में आ गए। पर बीजेपी के हंगामे से अबके सपा वाले नाराज हो गए। यूपी की माया सरकार ने पिछले दिनों सपाइयों पर डंडे बरसाए। जेल में ठूंस दिया। सो सपाई पहले से ही बौखलाए। सदन में सपा के नीरज और धर्मेंद्र ने खुलेआम कह दिया- अब जब भी सुषमा-आडवानी बोलेंगे। हम बोलने नहीं देंगे। पर बीजेपी की जिद के बाद स्पीकर ने सुषमा को मौका दिया। तो मुलायम सिंह जैसे वरिष्ठ नेता दनदनाते हुए वैल में सुषमा के सामने खड़े हो गए। हंगामा खूब बरपा। नौबत गाली-गलौज, हाथापाई तक आ गई। सदन स्थगित होने के बाद मां-बहन की गाली-गलौज तो हुई ही। सपा के नीरज शेखर और बीजेपी के अनंत कुमार के बीच बाहर निकल कर देख लेने की चुनौतीबाजी भी हो गई। सो अब सवाल- संसद में बैठे अपने माननीय नेता कितना गिरेंगे? जापान इस कुदरती कहर के बाद भी न सिर्फ उठेगा, बल्कि और मजबूत होकर खड़ा होगा। जापान हिरोशिमा-नागासाकी विस्फोट के बाद ऐसा करके दिखा चुका। पर अपनी गिरी हुई राजनीति कब उठेगी?
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14/03/2011