Thursday, May 20, 2010

तो राजनीति के आगे नहीं जोर किसी का

नक्सलवाद हो या बाबरी विध्वंस या झारखंड का झंझट। हर रोज नए पहलू जुड़ते जा रहे। गुरुवार को नक्सलवाद पर शुरुआत नरेंद्र मोदी से हुई। मोदी अलीगढ़ की मंगलायतन यूनिवर्सिटी में थे। छात्रों से सवाल-जवाब हुए। एक सवाल आया- राह से भटके नौजवानों के लिए क्या मैसेज। तो मोदी ने गांधीवादी जवाब दिया। हिंसा से दुनिया में कहीं भी सफलता नहीं मिली। सो हिंसा का मार्ग छोड़ नौजवान भारतीय संविधान के दायरे में बातचीत से समस्या का हल ढूंढें। यानी मोदी ने कहा तो नक्सलियों के लिए। पर अपने विजुअल मीडिया के एक तबके ने बात घुमा दी। मोदी के हवाले से खबर चलने लगी- नक्सलियों से बातचीत कर सरकार समस्या सुलझाए। अब मोदी की जुबान से नक्सलियों के लिए ऐसी नरमी, वह भी बीजेपी के रुख के बिलकुल उलट हो। तो बीजेपी में बावेला मचना ही था। सो बीजेपी के मैनेजरों ने फुर्ती दिखाई। फौरन गुजरात सरकार के प्रवक्ता का बयान जारी हो गया। बीजेपी ने अपने मंच से भी सफाई दी। तो मोदी जिस यूनिवर्सिटी के प्रोग्राम में गए थे, उसने भी विज्ञप्ति जारी कर दी। सो बीजेपी ने मोदी सरकार के बयान से साबित करने की कोशिश की, नक्सलवाद पर कोई मतभेद नहीं। अलबत्ता हिंसा पर उतारू नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब देने की हिमायती। अब यह मान भी लें, मोदी के बयान को मीडिया ने बात का बतंगड़ बना दिया। तो जरा सफाई पर नजरें इनायत करिए। मोदी ने नक्सलियों से हिंसा छोडऩे की अपील तो की। पर दूसरी तरफ कठोर कार्रवाई की पैरवी। क्या ये दोनों काम साथ-साथ चल सकते? क्या ऐसे में बातचीत हो सकती? यों अपने मीडिया के एक तबके ने कुछ शरारत तो की। पर मोदी की बातचीत की पैरवी क्या सिर्फ नक्सलियों पर लागू, सरकार पर नहीं? यों बीजेपी ने अपने मतभेद छुपाने को शब्दों को इधर से उधर कर दिया। जैसे सोमवार के नक्सली हमले के बाद चिदंबरम ने अपनी लाचारी जताई। कांग्रेस ने एतराज जताया, तो चिदंबरम ने भी अपने बयान की व्याख्या बदल दी। चिदंबरम ने पहले कांग्रेस में ही मतभेद का इशारा किया था। पर बाद में राज्यों से जोड़ते हुए कह दिया- राज्य मांग करे, तो ही हवाई सहायता पर विचार। यों पहले चिदंबरम ने कहा था- पांच राज्य हवाई हमले की पैरवी कर रहे। पर सीसीएस में सबकी राय एक नहीं। अब गुरुवार को नई बात सामने आई। बुद्धदेव, नीतिश, शिबू, शिवराज, रमन ने हवाई हमले की मांग से इनकार कर दिया। सो अब सवाल, क्या खुद चिदंबरम हवाई हमले के हिमायती? तीन साल में नक्सलवाद के सफाये का एलान कहीं इसी सोच का हिस्सा तो नहीं था? अब जो भी हो, कांग्रेस ने तो चिदंबरम की नकेल कस दी। सो चिदंबरम नक्सलवाद पर काम के नहीं, नाम के मंत्री। असली नीति तो दस जनपथ से तय हो रही। यों रमन सिंह ने जब नक्सलियों को आतंकवादी बताया। तो सीधा सवाल पूछा था- वायुसेना का इस्तेमाल अब नहीं, तो कब होगा। पर अब रमन का रुख बदला। तो सिर्फ नरेंद्र मोदी की वजह से। मोदी ने बातचीत की पैरवी क्या की, अब रमन सिंह भी कह रहे- बातचीत को हम भी तैयार। पर नक्सली हिंसा तो छोड़ें। अब बातचीत के लिए राष्ट्रीय सहमति जैसी दिख रही, तो स्पष्ट नीति का एलान क्यों नहीं। आखिर नक्सलवाद पर समूची राजनीति हौचपौच क्यों दिख रही? ऐसे में कैसे निपटेंगे नक्सलवाद से। अब तो यही लग रहा, नक्सलवाद पर नेता राजनीति-राजनीति खेलेंगे। अपनी व्यवस्था का यही शगल बन चुका। दंगे का इतिहास देख लो। तो अब तक कितने मामलों में न्याय हुआ। गुरुवार को बाबरी विध्वंस का एक मामला फिर आया। लखनऊ-इलाहाबाद हाईकोर्ट की बैंच ने सीबीआई की रिवीजन पिटीशन खारिज कर दी। बाबरी से जुड़े मामले रायबरेली और लखनऊ में चल रहे। जब यह मामला सीबीआई को गया था। तो 197 और 198 के तहत दो एफआईआर दर्ज हुईं। लखनऊ में स्पेशल कोर्ट बनाया गया। सीबीआई ने दोनों एफआईआर पर एक ही चार्जशीट दाखिल की। चार्जशीट में चूक हुई, 198 का जिक्र छूट गया। तो तब बीजेपी के वकीलों ने 198 के मुकदमे को विशेष कोर्ट के दायरे से बाहर बताया। सो मामला रायबरेली भेजा गया। यानी एक केस लखनऊ में, तो एक केस रायबरेली कोर्ट भेजने का आदेश। पर मुश्किल, एक ही चार्जशीट दो अदालतों में कैसे जाए। सो सीबीआई हाईकोर्ट गई। पर गुरुवार को भी राहत नहीं मिली। अब खुद बीजेपी वाले कह रहे, इस केस का कुछ होना-जाना नहीं। वाकई 17 साल बाद भी कोई ठोस मुकदमा नहीं चल पाया। वैसे भी राजनीति के आगे किसी का जोर नहीं। अब झारखंड की सियासत ही देखिए। शिबू सोरेन फिर पलट गए। कुर्सी छोडऩे से इनकार कर दिया। यों तीस जून के बाद तो गुरुजी को जाना ही होगा। पर बीजेपी को खूब पानी पिला रहे। फिर भी बीजेपी कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पा रही। शिबू स्पीकर की कुर्सी अपने कोटे में लेने पर अड़ गए। पर बीजेपी की दलील, पहले से बीजेपी का स्पीकर। सो दूसरा चुनाव कराने के बजाए झामुमो कुछ और मलाईदार विभाग ले ले। अब सत्ता की बंदरबांट में ठप झारखंड का दोषी कौन? सो नक्सलवाद हो या बाबरी विध्वंस या फिर झारखंड। राजनीति और राजनेताओं के आगे किसी का जोर नहीं।
---------
20/05/2010