Wednesday, March 16, 2011

बेभाव की पड़ती, तो बिलबिला उठते नेता

कुर्सी छिन गई, पर थॉमस की ठसक नहीं जा रही। अब थॉमस ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिख सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गैरकानूनी बताया। बाकायदा अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति रैफरेंस की सलाह दी। थॉमस की दलील- संविधान की व्याख्या करने वाले मुद्दे पर फैसले के लिए पांच जजों की बैंच का होना जरूरी। पर सीवीसी मसले में तीन जजों की बैंच ने फैसला दिया। सो यह फैसला निष्प्रभावी माना जाए। पर थॉमस ऐसी दलील तीन जजों की बैंच के सामने भी दे चुके। फिर भी रार ठाने बैठे हुए। शायद उन ने भी अब ठान लिया- बदनाम हो ही गए, तो अब शर्म का परदा क्यों। सो पूरी ताकत लगा सुप्रीम कोर्ट को ही गलत ठहराने की मुहिम में जुट गए। अपनी व्यवस्था को चलाने वाले नेताओं-नौकरशाहों का अब यही शगल बन गया। सो जब कोई मामला खुद के खिलाफ आ जाता, तो नाक-भौं सिकोडऩे लगते। चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर लेफ्ट और अन्य क्षेत्रीय पार्टियां। मन की हो, तो वाह, नहीं तो आह। तभी तो दिल्ली के लोकायुक्त ने सीएम शीला के करीबी मंत्री राजकुमार चौहान को हटाने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दी। चौहान ने एक व्यापारी को टेक्स से बचाने के लिए वैट कमिश्नर को धमकाया था। सो लोकायुक्त ने जांच में आरोप को सच पाया। चौहान अपनी सफाई में मजबूत दलील नहीं पेश कर पाए। पर सिफारिश को पखवाड़ा भर होने वाला। फिर भी शीला दीक्षित ने राजकुमार चौहान का राज नहीं छीना। अब बुधवार को दिल का गुबार जुबां पर आ ही गया। मैडम शीला फरमा रहीं- लोकायुक्त के अधिकारों की समीक्षा होनी चाहिए। पर कांग्रेस और शीला को यह भी बताना चाहिए- जब कर्नाटक में बीजेपी के मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त ने टिप्पणी की, तो मोर्चा क्यों खोला। येदुरप्पा ने तो आरोपी मंत्री को हटाने में कोई देर नहीं की। पर दिल्ली की कांग्रेसी सीएम शीला को दर्द क्यों हो रहा? लोकायुक्त के अधिकार कर्नाटक में सही, तो दिल्ली में गलत कैसे? सीएजी की रिपोर्ट जब मुफीद नहीं लगी, तो कांग्रेस ने खूब सवाल उठाए। खुद शीला लो-फ्लोर बस की खरीब के मामले में सीएजी की रिपोर्ट को कूड़ेदान में फेंकने वाली टिप्पणी कर चुकीं। कपिल सिब्बल ने तो टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले को ही झुठला दिया। अब उसी घोटाले के महाराजा ए. राजा के खिलाफ 31 मार्च तक सीबीआई चार्जशीट दाखिल करने जा रही। सरकार की जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय मंगलवार को ही सुप्रीम कोर्ट को बता चुका- इस घोटाले में छह देशों में हवाला के जरिए पैसे का लेन-देन हुआ। सो सिब्बल-शीला के दावों की हवा तो उनकी ही जांच एजेंसियां निकाल रहीं। अब तो जेपीसी के कांग्रेसी अध्यक्ष पी.सी. चाको भी रंग दिखाने लगे। यों जेपीसी की अभी पहली मीटिंग भी नहीं हुई। पर चाको ने मुरली मनोहर जोशी की रहनुमाई वाली पीएसी की जांच के दायरे पर सवाल उठा दिया। पर जेपीसी बनने से पहले इन्हीं चाको की कांग्रेस पीएसी की मुरीद थी। खुद मनमोहन पीएसी के सामने पेशी की पेशकश कर चुके। अब जेपीसी बन गई, तो कांग्रेस को पीएसी का दायरा बढ़ता दिख रहा। सो चाको बतौर जेपीसी अध्यक्ष कांग्रेसी रंग दिखाएंगे या सचमुच संसद का मान रखेंगे, यह आने वाला वक्त बताएगा। पर स्पेक्ट्रम घोटाले में बुधवार को एक नया मोड़ आ गया। जब ए. राजा के बेहद करीबी रहे सादिक बाशा की रहस्यमयी मौत हो गई। परिवार वालों और चेन्नई पुलिस ने सुसाइड बताया। पर परिस्थितियां ऐसीं, हत्या की साजिश से सीधे-सीधे इनकार भी नहीं किया जा सकता। सादिक बाशा की कंपनी में राजा की बीवी डायरेक्टर थीं। बाशा को राजा का फंड मैनेज करने वाला कहा जाता था। सीबीआई अब तक चार बार पूछताछ कर चुकी थी। कहा जा रहा था- राजा का कोई बेहद करीबी सीबीआई का एप्रूवर बनने वाला। यानी बाशा सरकारी गवाह बन जाता, तो राजदारों की पोल खुल जाती। सीबीआई ने बाशा को फिर पूछताछ के लिए समन किया था। पर उससे पहले ही कथित आत्महत्या ने सबको चोंका दिया। खुद सीबीआई इसे आश्चर्यजनक मौत करार दे रही। तो टू-जी घोटाले का पर्दाफाश करने वाले सुब्रहमण्यम स्वामी की दलील- बाशा की मौत से जांच प्रभावित होगी। बीजेपी ने तो सीधे-सीधे हत्या की आशंका जता दी। पर कांग्रेस की जयंती नटराजन ने सीधी टिप्पणी के बजाए बीजेपी पर चुटकी ली। बोलीं- बीजेपी कुछ अधिक जागरूक है। सो हत्या का निष्कर्ष निकाल लिया। बीजेपी को हर बात में षडयंत्र ही नजर आता। पर हम रिपोर्ट का इंतजार करेंगे। अब जयंती के जवाब का मतलब समझना मुश्किल नहीं। पर सत्तापक्ष हो या विपक्ष, किसी की हेकड़ी कम नहीं। बुधवार को गुजरात के मुद्दे पर राज्यसभा में रार ठन गई। वायब्रेंट गुजरात में हजारों करोड़ों के निवेश पर एमओयू दस्तखत हुए। गुजरात कांग्रेस की ओर से शिकायती चिट्ठी आई। तो संघीय ढांचे को अनदेखा कर आयकर विभाग के अधिकारी अनुराग शर्मा ने नोटिस भेज दिया। सो अरुण जेतली ने सरकार से जवाब मांगा। केंद्र-राज्य की इस लड़ाई में आसंदी पर बैठे सभापति हामिद अंसारी भी घेरे में आ गए। पर गुजरात के मुद्दे ने बीजेपी के अंदरूनी मतभेद को एक बार फिर सतह पर ला दिया। लोकसभा में यह मुद्दा एक सैकिंड के लिए भी नहीं उठा।
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16/03/2011