Friday, April 16, 2010

तो आईपीएल का मतलब इंडियन पार्लियामेंट्री लीग

तो आईपीएल आखिर इंडियन पार्लियामेंट्री लीग हो गया। शुक्रवार को दोनों सदनों की पिच पर जोरदार मैच हुआ। सो संसद की कार्यवाही थम गई। पर कांग्रेस फिलहाल इस विवाद में कूदने से परहेज कर रही। सो शशि थरूर को दो-टूक कह दिया, अपना बचाव खुद करिए। विपक्षी एकजुटता ने फिर खम ठोका। तो लोकसभा में थरूर के बयान से ठीक पहले सोनिया गांधी से प्रणव-एंटनी मिले। फिर प्रणव ने बंसल-सामी को रणनीति समझा दी। सो हंगामे के बीच थरूर का बयान हुआ। सदन में थरूर की आवाज दब गई। सो थरूर ने बाहर मीडिया के सामने पूरा बयान पढ़ा। अब जरा थरूर की सफाई की बानगी देखिए। बतौर मंत्री या सांसद किसी को फायदा नहीं पहुंचाया। आईपीएल की नीलामी प्रक्रिया को प्रभावित नहीं किया। तीस साल के कैरियर में अभी तक कोई दाग नहीं। सुनंदा से संबंध को गलत तरीके से जोड़ा गया। हिस्सेदारों के बारे में जानकारी नहीं थी। सिर्फ संरक्षक के नाते सलाह दी। केरल में क्रिकेट जैसे महत्वपूर्ण खेल को बढ़ावा मिले। सो फ्रेंचाइजी लेने वालों की नहीं, अलबत्ता केरल की मदद की। यानी यूएन का महासचिव बनने का सपना देखने वाले थरूर क्षेत्रीयता की राजनीति पर उतर आए। अपने बचाव में केरल की जनता को भडक़ाने की कोशिश। अब थरूर की ठाकरेवादी राजनीति का असर क्या होगा, यह बाद की बात। पर उन ने जो सफाई पेश की, खुद ही उलझ गए। अब कोई पूछे, थरूर को रोंदेव्यू के हिस्सेदारों के बारे में पता नहीं था। तो संरक्षक कैसे बन गए? विदेश राज्यमंत्री पद पर बैठा व्यक्ति क्या सिर्फ केरल के नाम पर किसी का भी संरक्षक बनने को तैयार हो जाएगा? मानो, कल को डी. कंपनी का गुर्गा कोई फर्म बनाकर ऐसा करे। तो क्या थरूर उसके लिए भी राजी होंगे? पर कहते हैं ना, चोर की दाढ़ी में तिनका। थरूर को बाकायदा मालूम था, सुनंदा पुष्कर को भी शेयर मिलेगा। वैसे कहावत है, प्यार, जंग और राजनीति में सब जायज। अब भले सुनंदा सिर्फ थरूर की दोस्त। पर ऐसी दोस्ती, जिसके शादी में बदलने की अटकलें। सो किसी ऊंचे ओहदे पर बैठे राजनेता से कोई कैसी उम्मीद रखेगा? क्या अपने नेता या फिल्म कलाकार कभी बेमतलब चैरिटी करते? आखिर थरूर ने ललित मोदी या बीसीसीआई से जुड़े किसी भी व्यक्ति से कोच्चि टीम के लिए मदद क्यों मांगी? अगर मान भी लें, थरूर ने संरक्षकी के लिए इकन्नी न ली। पर फ्रेंचाइजी में इतनी दिलचस्पी क्यों ली? अगर थरूर वाकई बेदाग, तो उनकी ईमानदारी के साथ कांग्रेस खड़ी क्यों नहीं हो रही? अपनी ही पार्टी को क्यों नहीं समझा पा रहे थरूर? अब जिस थरूर की सफाई को मंत्री पद तक पहुंचाने वाली कांग्रेस गले से नीचे नहीं उतार पा रही। जुबान सिलकर बैठ गई। उस थरूर पर देश की जनता क्यों भरोसा करे। थरूर ने बयान दे दिया, तो क्या दूध का दूध और पानी का पानी हो गया? अगर थरूर सचमुच बेदाग, तो पद का मोह क्यों? आरोप लगा है, तो इस्तीफा देकर जांच का एलान क्यों नहीं करते? ताकि आम जनता का भरोसा कायम हो। याद है, पिछली लोकसभा में कांग्रेसी माणिकराव गावित गृह राज्यमंत्री थे। एक फर्जी व्यक्ति ने गावित की आवाज में यूपी की एक जेल में फोन किया। जेलर को हिदायतें दीं। तब जी-न्यूज पर यह खुलासा हुआ। तो गावित ने जांच तक संसद आने और मंत्रालय जाने से इनकार कर दिया। खुद सुषमा स्वराज ने कहा था- मैं गावित को जानती हूं। यह उनकी आवाज नहीं हो सकती। सरकार तय समय सीमा में जांच कराए। आखिर वही हुआ, हफ्ते भर में साबित हो गया, वह गावित की आवाज नहीं थी। पर शायद जमीन की राजनीति करने वाले गावित जैसा जज्बा एसी कमरों और पांच सितारा की राजनीति करने वाले थरूर में नहीं। कई सवाल तो थरूर की सफाई से ही उठ गए। सो विपक्षी महाजोट फिर तैयार हो गया। अब विपक्ष थरूर से नहीं, सरकार के मुखिया मनमोहन से जवाब चाहता। कांग्रेस ने भी गेंद मनमोहन के पाले में डाल दी। याद है ना, पिछली बार जब थरूर ने नेहरू की विदेश नीति पर सवाल उठाए थे। तो समूची कांग्रेस पिल पड़ी थी। पर तब मनमोहन ने दलील दी, यूएन चुनाव लड़ चुके थरूर को हटाने से दुनिया में गलत संदेश जाएगा। सो थरूर बच गए। अबके फिर विवाद, तो सोनिया-प्रणव-एंटनी ने तय किया। अब थरूर से उनके संरक्षक ही निपटें। पर मुश्किल एक हो, तो मनमोहन निपटें। यहां तो हर साख पे परेशानी। अब ममता बनर्जी ने संसद सत्र के बॉयकाट का मन बना लिया। बंगाल में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे ऑपरेशन को राज्य प्रायोजित आतंकवाद बता रहीं। ममता के सिपहसालार सुदीप बंदोपाध्याय का दावा, वित्तमंत्री-गृह मंत्री से शिकायत कर चुके। अब तक कुछ नहीं हुआ। सो संसद सत्र में हिस्सा नहीं लेंगे। अब विपक्ष इस मुद्दे को शायद बाद में उठाए। फिलहाल थरूर पर सरकार को थरथराने की रणनीति। सो थरूर की किस्मत पीएम तय करेंगे। पर थरूर नपें या न नपें, जंग छेडऩे वाले ललित मोदी का नपना तय हो गया। सो बीजेपी भी कह रही, बीसीसीआई चाहे जो कार्रवाई करे। पर किससे बात छुपी हुई, राजस्थान चुनाव के वक्त बीजेपी का वित्तीय मामला ललित मोदी के ही जिम्मे था।
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16/04/2010