Thursday, February 4, 2010

बटला पर कितनी बार 'टकला' होगी कांग्रेस?

 संतोष कुमार
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         बटला हाउस की सियासी गूंज फिर सड़कों पर। अब कोई पूछे, चचा-भतीजा ठाकरे क्या कम थे। जो कांग्रेस के दिग्गी राजा ने बटला राग अलाप दिया। अभी भाषाई सियासत की आग बुझी भी नहीं। मजहबी सियासत को हवा मिल गई। बटला हाउस मुठभेड़ के वक्त फरार शहजाद पुलिस के शिकंजे में आया। तो दिग्विजय सिंह आजमगढ़ पहुंच गए। मुठभेड़ में मारे गए आतंकी सैफ के घर सहानुभूति जता आए। मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग फिर कर दी। सो विपक्ष को हमला करने का मौका मिल गया। शिवसेना की वजह से बीजेपी बचाव की मुद्रा में थी। पर दिग्गी राजा के शिगूफे ने मुद्दा थमा दिया। सो रविशंकर प्रसाद ने दिग्गी राजा को फौरन बीमार राजनीतिक मानसिकता का शिकार बता दिया। मुठभेड़ पर अब तक हुई सियासत का कच्चा चि_ïा भी खोला। कांग्रेस से पूछा, एक तरफ ऑपरेशन बटला हाउस में शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को अशोक चक्र। तो दूसरी तरफ बार-बार जांच की मांग और आतंकियों के घर जाना किस बात का परिचायक। बीजेपी ने कांग्रेस से एक और सवाल पूछा। आतंकियों के परिवार से सहानुभूति। तो आतंक के शिकार लोगों की फिक्र क्यों नहीं। क्या कभी कोई कांग्रेसी आतंक के शिकार लोगों के घर गया? यों सवाल सोलह आने सही। पर राजनेताओं से कैसी उम्मीद। यूपीए-वन में सरकार आतंकवादियों के आश्रितों की खातिर विशेष पैकेज लाने की सोच रही थी। मानवाधिकार के नाम पर ऐसी पहल हुई। ताकि आतंकियों के बेसहारा परिवार को पेंशन मिल सके। पर विवाद की संभावना से सरकार पीछे हट गई। अब बटला हाउस मुठभेड़ का सियासतनामा देखो। तो दिल्ली बम धमाकों की जांच करते हुए पुलिस को बटला हाउस की भनक मिली। जहां कुछ आतंकी अगली साजिश रच रहे थे। सो 18 सितंबर 2008 को पुलिस ने धावा बोला। दो आतंकी मौके पर मार गिराए गए। बाकी दो-तीन फरार हो गए। ऑपरेशन में दिल्ली पुलिस के जांबाज आफीसर मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए। पर शर्मा की चिता की आग ठंडी भी नहीं पड़ी थी। सियासत करने वाले बटला हाउस पहुंच गए। तब अमर-मुलायम कांग्रेस के करीब थे। सो अमर ने हल्ला बोला। एक तरफ अमर सिंह ने मोहन चंद शर्मा के परिवार को प्रोत्साहन के तौर पर चैक भी दिया। दूसरी तरफ मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग की। सो खफा परिजनों ने अमर का चैक लौटा दिया। पर बात यहीं खत्म नहीं हुई। तब भी दिग्विजय सिंह ने न्यायिक जांच की मांग का मोर्चा खोला। मामला सोनिया से लेकर पीएम मनमोहन के दरबार तक पहुंचा। कांग्रेस के अल्पसंख्यक मोर्चा के चीफ इमरान किदवई पूरे दल-बल के साथ पीएम से मिले। पर पीएम ने बैरंग लौटा बटला हाउस मुठभेड़ की जांच की मांग खारिज कर दी। आखिर मनमोहन के पास कोई चारा नहीं था। सितंबर में इस्पेक्टर शर्मा शहीद हुए। जनवरी 2009 में अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। वैसे भी दिल्ली पुलिस कोई शीला सरकार के मातहत नहीं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के ही अधीन। सो न्यायिक जांच होती, तो भी कटघरे में कांग्रेस ही खड़ी होती। अब दिग्गी राजा ने फिर सुर्रा छोड़ा। तो सपा से आउट अमर सिंह कहां चुप रहने वाले। उन ने एक नया सुर्रा छोड़ दिया। कह रहे, सोनिया जांच को तैयार थीं। मनमोहन राजी नहीं हुए। अब अमर के सुर्रे का मतलब आप समझ लें। अमर अपने लिए कोई ठौर ढूंढ रहे। सो कभी सोनिया के मुरीद, तो कभी मायावती के। पर बात सिर्फ दिग्गी राजा की। सो गुरुवार को जब चौतरफा घिर गए। खुद कांग्रेस ने दिग्गी से किनारा कर लिया। तो दिग्गी भी पलटी मार गए। अब कह रहे, मुठभेड़ को फर्जी नहीं कहा। सिर्फ पूछा- 'मारे गए लड़के के सिर पर गोली कैसे?' पर दिग्गी राजा किससे पूछ रहे? केंद्र में कांग्रेस की सरकार। दिल्ली में भी कांग्रेस की सरकार। दिग्गी कोई ऐरे-गैरे छुटभैये नेता भी नहीं। कांग्रेस के जनरल सैक्रेट्री। वह भी यूपी जैसे बड़े सूबे के इंचार्ज। तो क्या डेढ़ेक साल में भी अपनी सरकार से जवाब नहीं ले पाए। पर दिग्गी राजा की यह कैसी पलटी। मानवाधिकार आयोग ने जांच में मुठभेड़ को सही पाया। हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट ने अलग जांच की याचिका ठुकरा दी। पर दिग्गी कह रहे, मानवाधिकार आयोग कोई जांच एजेंसी नहीं। यों दिग्गी का समुदाय विशेष के प्रति प्रेम का दिखावा जगजाहिर। हिंदू आतंकवाद शब्द दिग्गी राजा की ही देन। फिर भी आजमगढ़ में घुसने पर उलेमा काउंसिल का विरोध था। सो बटला हाउस सियासत का पारा चढ़ा दिया। अब कांग्रेस से कोई क्या उम्मीद करे। कभी तुष्टिïकरण के नाम पर मजहब की सियासत। तो महाराष्टï्र में मराठी की सियासत में भी कांग्रेस कम जिम्मेदार नहीं। चचा और भतीजे के बीच आगे बढऩे की होड़। अब भतीजा राज अलग महाराष्टï्र देश की धमकी दे रहा। शिवसेना ने इटालियन मम्मी कह राहुल गांधी पर हमला बोला। तो राज ठाकरे ने राहुल को रोम पुत्र कहा। राहुल शुक्रवार को मुंबई जाएंगे। तो शिवसेनिक काला झंडा दिखाने की तैयारी में। पर कांग्रेस की सरकार अभी भी सिर्फ गीदड़-भभकी दे रही। सो दो साल पहले राज ठाकरे ने गुंडई की। तो भी कांग्रेस सवालों के घेरे में थी। अब भी जुबान चलाने के सिवा कुछ नहीं कर रही। वही पुराना राग, एडवोकेट जनरल से राय-कानूनी सलाह-मशविरा आदि-आदि। सो भाषाई सियासत हो या बटला कांड, कांग्रेस हर बार टकला यानी बेनकाब हुई।
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04/02/2010