Friday, January 15, 2010

कैलेंडर, फोटू और व्यथा राज्यमंत्री की

संतोष कुमार
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           नए साल में कैलेंडरों की धूम न हो। तो नया साल नया सा नहीं लगता। पर बात किंगफिशर के कैलेंडर की नहीं। जिसकी शूटिंग पर करोड़ों खर्च होते। बंटते महज सौ-एक कॉपी। वैसे भी आम आदमी के घर किंगफिशर के कैलेंडर सज भी नहीं सकते। लोगों को मिल जाए, तो शायद घर की शोभा बढ़ाने के बजाए जलाना पसंद करेंगे। यों कैलेंडर तो सिर्फ तारीख देखने के मकसद से। पर अपने विजय माल्या पता नहीं क्या-क्या दिखाना पसंद करते। यों 'रंगीन'  कैलेंडर का रंग अब राजनीति पर भी। फर्क सिर्फ इतना, विजय माल्या का अपना अंदाज। तो राजनीति में खुद को चमकाना और चापलूसी ही मकसद। अब आप खुद ही देख लीजिए। लोकसभा चुनाव में राहुल-सोनिया गांधी कांग्रेस का बीड़ा उठाए देश भर में घूम रहे थे। तो प्रियंका ने अमेठी-रायबरेली की कमान संभाली। सो अपना चौबीसों घंटों वाले भोंपू का एक कैमरा वहीं पहुंच गया। अब प्रियंका रोज-रोज नई बात तो कहेंगी नहीं। सो कभी साडिय़ों के रंग, तो कभी साडिय़ों का इंदिरा स्टाइल। बोलने-चलने का भी इंदिरा अंदाज कैमरों में खूब कैद हुआ। चैनलों पर खूब विशेष प्रोग्राम भी चले। सो एक कांग्रेसी भक्त ने बारह फोटू छांटे और नए साल का कैलेंडर बना दिया। यानी मेहनत, न दौड़-धूप, बैठे-ठाले दरबार में नंबर बढ़ाने की स्ट्रेटजी। अब नंबर कितना बढ़ा, यह तो बाद की बात। पर एक कैलेंडर ऐसा भी, जिससे सीनियर पर जूनियर खफा हो गया। यों डीएवीपी के जरिए सालाना सरकारी कैलेंडर बनता। बीते साल के अंत में ही सूचना प्रसारण मंत्री उसका विमोचन करते। अबके भी ऐसा हुआ। सरकारी कैलेंडर में मनरेगा के साथ-साथ स्वास्थ्य मिशन, शहरीकरण जैसी यूपीए की तमाम फ्लैगशिप योजनाएं फोटू सहित। यानी परंपरा के मुताबिक सरकारी कैलेंडर में सरकारी उपलब्धियों का खूब बखान। एक कैलेंडर संसद के पीठासीन अधिकारी के दफ्तर से सालाना जारी होता। एक साल राज्यसभा सचिवालय, तो दूसरे साल लोकसभा सचिवालय की ओर से। पर अबके सीपी जोशी ने अपने मंत्रालय का अलग कैलेंडर जारी कर दिया। यों पिछले साल के सरकारी कैलेंडर में बारहों महीने नरेगा को ही समर्पित थे। तो फोटुओं में मजदूरों का काम। यानी साइट फोटू ही छाए हुए थे। पर उस कैलेंडर में अपने सीपी जोशी की भूमिका नहीं थी। अलबत्ता जोशी वाला मंत्रालय तब आरजेडी के रघुवंश बाबू के जिम्मे था। सो कांग्रेस ने सिर्फ योजनाओं को जगह देने की सोची होगी। ताकि मंत्री का फोटू देख क्रेडिट लालू की पार्टी न ले जाए। पर अबके कांग्रेसी सीपी जोशी मंत्री। तो सब कुछ अपने 'हाथ'  में। सो मंत्रालय का कैलेंडर छपा। तो सोनिया-मनमोहन के साथ जोशी भी छा गए। पर असली चूक कैलेंडर के सितंबर महीने वाले पन्ने में हुई। जोशी ने राष्टï्रपति के साथ अपना और दो सहयोगी राज्यमंत्रियों के फोटू डलवाए। पर जोशी के साथ तीन राज्यमंत्री। सो तीसरे मंत्री शिशिर अधिकारी का गुस्सा सातवें आसमान पर। वैसे भी अधिकारी ममता दीदी के सिपहसालार। सो आव देखा न ताव, सीपी जोशी पर भड़क उठे। कैलेंडर में मंत्रियों की फोटू पर आपत्ति जताई। दलील दी, मंत्री के बजाए विकास योजना को कैलेंडर में जगह दी जानी चाहिए थी। अब सुनते हैं, विवाद आगे न बढ़े। सो भले जनवरी बीतने को। पर दूसरा कैलेंडर छपवाने की तैयारी। अब जरा सोचिए, कैलेंडर में शिशिर अधिकारी का भी फोटू होता। तो विकास योजना वाली दलील देते? पर फोटू नहीं, तो एतराज जताने के लिए जनता से ज्यादा बड़ी ढाल और क्या। अब देखना होगा कि नए कैलेंडर में विकास होगा या फोटू। पर अधिकारी की नाराजगी सिर्फ कैलेंडर नहीं। कैलेंडर तो तात्कालिक कारण बना। मौलिक कारण तो राज्य मंत्रियों के दिल में हमेशा रहता। केबिनेट मंत्री अपने जूनियर राज्य मंत्रियों को काम नहीं देते। सो एनडीए राज हो या मनमोहन की पहली-दूसरी पारी। राज्यमंत्री कुढ़ते ही रहे। पिछले टर्म में मनमोहन ने तो बाकायदा केबिनेट मंत्रियों को चि_ïी भी लिखी थी। पर नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा। कुछ दिन पहले शिशिर अधिकारी और कुछ राज्य मंत्रियों ने प्रणव मुखर्जी से दुखड़ा भी रोया था। पर केबिनेट मंत्री शायद रसूख दिखाने के आदी हो चुके। एक जमाना था, जब 1980 के दशक में बंसीलाल रेलमंत्री थे। तो माधवराव सिंधिया एमओएस थे। उन ने साफ हिदायत दे रखी थी। मेरे पास आने वाली फाइलें सिंधिया की नजरों से होकर आएं। पर क्या आज के वक्त में कोई केबिनेट मंत्री ऐसी दरियादिली दिखाएगा? शिवराज पाटिल के गृह मंत्री रहते उनके जूनियर सिर्फ बयान मंत्री रह गए थे। मनमोहन की दूसरी पारी में श्रीकांत जेना राज्यमंत्री बनने को तैयार नहीं थे। वजह, जेना यूएफ सरकार में केबिनेट मंत्री रह चुके। एनडीए राज में हुकुम देव नारायण यादव कृषि राज्यमंत्री थे। पर कुछ समय कृषि मंत्री रहे नीतिश कुमार ने कुछ काम नहीं दिया। तो खफा होकर अपने सरकारी निवास 19 कुश्क रोड पर फावड़ा-कुदाल लेकर काम पर जुट गए। साथ में मीडिया भी बुला लिया। इजहार-ए-दर्द का यादवी नमूना और क्या होगा। कृषि राज्यमंत्री को मंत्रालय में काम नहीं। तो निवास पर ही खेती करने लगे।
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15/01/2010