Friday, February 5, 2010

घरेलू ही नहीं, कूटनीति में भी फिसड्डी सरकार

 संतोष कुमार
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          इंतिहा हो गई इंतजार की। पर अपने पीएम अभी भी यही कह रहे, थोड़ा और इंतजार करिए। कांग्रेस की वर्किंग कमेटी महंगाई पर सीएम मीटिंग से ठीक पहले हुई। तो मनमोहन ने कुछ हफ्तों में सरकारी कदम के असर की सफाई दी। शरद पवार ने दस दिन में महंगाई कम होने का दावा किया था। अपने पीएम पिछले साल अगस्त की वर्किंग कमेटी में भी कुछ ऐसी ही दलील दे चुके। पर महंगाई का कुछ नहीं बिगड़ा। अलबत्ता महंगाई 'पुराण'  बन गई। मौके-बेमौके नेतागण बांच रहे। अब शनिवार को सीएम मीटिंग में बेपर्दा हों। कांग्रेस ने शुक्रवार को ही वर्किंग कमेटी कर अपनी गंभीरता का ढोंग रचाया। अब आशंकाएं तो यहां तक जताई जा रहीं। यूपीए के अर्थशास्त्रीगण कृषि में विदेशी निवेश यानी एफडीआई का रास्ता खोलने की जुगत में। सो महंगाई को जानबूझकर बेलगाम होने दिया गया। ताकि मांग-आपूर्ति, भंडारण और लचर सिस्टम पर सवाल उठे। फिर बेहतर कोल्ड स्टोरेज, मांग-आपूर्ति में संतुलन और डिस्ट्रीब्यूशन की पूरी शृंखला को दुरुस्त करने के बहाने एफडीआई की पैरवी हो। इसलिए दलील दी जा रही, कृषि क्षेत्र का उचित प्रबंधन न होने से 40 फीसदी अनाज बेकार हो रहा। कहीं ट्रांसपोर्टेशन की दिक्कत। तो कहीं स्टोरेज की। सो बेहतरी के नाम पर निवेश फार्मूला सोच रही सरकार। अब सचमुच ऐसा हुआ। तो सोचिए, कांग्रेस का 'हाथ'  किसके साथ? पर शुक्रवार को कांग्रेस ने सिर्फ महंगाई पर ढोंग नहीं किया। सुरक्षा अमले से घिरे राहुल गांधी ने मुंबई जाकर शिवसेना को चुनौती दी। एटीएम से पैसे निकाले। लोकल ट्रेन का टिकट लाइन में लग खरीदा। फिर चाक-चौबंद सुरक्षा के बीच 'आम मुसाफिरों'  की माफिक सफर किया। अब महाराष्टï्र का गृह राज्यमंत्री जूता उठाने को बैठा हो। तो ऐसी यात्रा कोई भी कर ले। राहुल की सुरक्षा में समूची सरकार और प्रशासन सड़कों पर उतरा था। सीएम अशोक चव्हाण राहुल की अगवानी में इतने तन, मन, धन से लगे रहे। सीडब्ल्यूसी की बैठक में आना भी मुनासिब न समझा। यों राहत की बात, शिवसेनिक दड़बे में ही बांध दिए गए। राहुल सकुशल मुंबई का दौरा पूरा कर पुडिचेरी चले गए। पर अपना एक छोटा सा सवाल विलासराव देशमुख, अशोक चव्हाण, आरआर पाटिल और बड़े नेता सोनिया-मनमोहन से। जब 2008 में राज ठाकरे मुंबई की सड़कों पर तांडव कर रहे थे। क्या तब महाराष्टï्र में कोई सीएम था या नहीं? पुलिस थी या नहीं? क्या सिर्फ सरकार और पुलिस सिर्फ वीआईपी के लिए होती? अगर नहीं, तो ऐसा सुरक्षा बंदोबस्त तब उत्तर भारतीयों के लिए क्यों नहीं किया गया? माना, शिवसेना को उसके गढ़ में चुनौती देकर राहुल ने माकूल जवाब दिया। पर क्या इस दौरे से शिवसेना-राज ठाकरे की ओछी सियासत बंद हो जाएगी? आखिर इस दौरे का क्या संदेश गया? यही ना, अगर शासन और प्रशासन ईमानदारी दिखाए। तो मुंबई में उत्तर भारतीय बेखौफ रह सकते हैं। अगर कांग्रेस वाकई ईमानदार। तो चचा-भतीजा ठाकरे पर कड़ी कार्रवाई का साहस दिखाए। वरना राहुल का दौरा भी महंगाई जैसा ही महज ढोंग माना जाएगा। पर शिवसेना कहां मुंह बंद रखने वाली। राहुल ने एटीएम से पैसा निकाला। तो उद्धव ठाकरे बोले- 'दिल्ली के नेता मुंबई को एटीएम यानी ऑल टाइम मनी समझते। यही मानसिकता हमें बदलनी है।' अब उद्धव ने छोटी बात से अपने वोटरों को बड़ा संदेश दे दिया। यानी अनजाने में ही सही, शिवसेना को छोटी बात से बड़ा फायदा मिल गया। सो जरूरत जुबानी जंग की नहीं। अलबत्ता कुछ करने की है, ताकि चचा-भतीजा ठाकरे पर नकेल कसी जा सके। पर अपनी सरकार जैसे घरेलू मोर्चे पर असहाय दिख रही। अब कूटनीतिक मोर्चे पर भी नाकामी का सेहरा बंध गया। कहां 26/11 के हमले के बाद भारत ने पाक को दुनिया के कटघरे में खड़ा किया। मनमोहन ने दो-टूक कह दिया। जब तक पाक दोषियों पर कार्रवाई नहीं, बातचीत नहीं। पर जुलाई 2009 में ही शर्म अल शेख जाकर पाक पीएम गिलानी संग साझा बयान कर आए। अमेरिकी दबाव में पहली बार बलूचिस्तान साझा बयान में आ गया। पर देश में बवाल मचा। बीजेपी ने सरकार को बेपर्दा किया। तो कांग्रेस घबरा गई। घबराहट में तबके विदेश सचिव और मौजूदा एनएसए ने ड्राफ्टिंग एरर कहा। तो विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने साझा बयान को बंदिश नहीं माना। पर चूक तो थी, सो संसद के दोनों सदनों में मनमोहन को सफाई देनी पड़ी। फिर वही वायदा, जब तक पाक 26/11 के दोषियों पर कार्रवाई नहीं करता। सार्थक बातचीत नहीं होगी। पर ओबामा के दबाव में अब खुद भारत ने आगे बढ़ पाक के सामने बातचीत की पेशकश कर दी। इसी महीने की दो तारीखें भी सुझाईं। तो जैसे गिलानी ने शर्म अल शेख को अपनी जीत बताया था। अब भारत की पेशकश को दुनिया का दबाव बता रहे। भारत से बातचीत का विषय और एजंडा पहले साफ करने की शर्त रख दी। इसे कहते हैं, चोरी और सीनाजोरी। याद है, 22 जनवरी को ही गिलानी ने क्या कहा था। पाक 26/11 नहीं दोहराने की गारंटी नहीं दे सकता। अब पाक पीएम ऐसा बयान दे। फिर भी भारत अपनी ओर से बातचीत की पेशकश करे। तो क्या कहेंगे आप। विपक्ष को तो मनमोहन की नीयत पर संदेह। अब बजट सत्र में बीजेपी पीएम से नया वादा मांगेगी। अरुण जेतली बोले- 'संसद में हमें पीएम से स्पष्टï वायदा चाहिए कि कश्मीर पर 1994 के प्रस्ताव से नहीं हटेंगे। और ना ही सीमा के बारे में भारत की पुरानी स्थिति को छोड़ेंगे।'
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