ना, ना करते मंत्रियों ने नई जिम्मेदारी संभाल ही ली। कल तक वीरभद्र सिंह नए मंत्रालय का पता पूछ रहे थे। गिल की आंखें गीली थीं। पर गुरुवार को सूरज खिला, तो मुरझाए चेहरे वाले मंत्री खिलखिलाते मंत्रालय पहुंच गए। भला कौन लाल बत्ती का रुतबा छोडऩा चाहेगा? रही बात महकमे की, तो कौन मंत्री काम करने के लिए बैठता? हां, इस बात का अफसोस हो सकता कि मलाई काटने वाला मंत्रालय नहीं मिला। वरना जो मंत्री या नेता देश व समाज की सेवा करना चाहे, तो किसी विभाग में रहकर कर सकता। पर जैसी राजा की सोच, वैसी दरबारियों की भी। सो जब महंगाई पर मनमोहन हताशा भरी टिप्पणी कर रहे। तो मंत्रियों से कैसी उम्मीद। सो सुषमा स्वराज ने चुटकी ली- अगर पीएम ज्योतिषी नहीं, तो कम से कम अर्थशास्त्री ही बन जाते। महंगाई ने आम आदमी का जीना मुहाल कर रखा। पर सरकार सिर्फ मुंहजोरी कर रही। यही हाल भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी। जब तक सुप्रीम कोर्ट ने फटकार नहीं लगाई, मनमोहन को काला धन याद नहीं आया। तो गुरुवार को नए-नवेले केबिनेट की पहली मीटिंग में ही पीएम ने देश का मन मोहने की कोशिश की। काले धन पर केबिनेट मीटिंग में चिंता जताई। पर जरा चिंता के कारण देखिए। मीडिया में लगातार खबरें आ रहीं, इस बात से मनमोहन परेशान। सो प्रणव दा ने प्रेस कांफ्रेंस कर जल्द सफाई देने का भरोसा दिया। पर पीएम ने साफ कर दिया- विदेशी बैंकों के खातों से जुड़ी जानकारी वाले नाम का खुलासा सरकार नहीं करेगी। सरकार समझौते से बंधी हुई। अगर सार्वजनिक कर दिया, तो भविष्य में ऐसी जानकारी नहीं मिल पाएगी। यानी कोर्ट की फटकार से ही सही, कुछ ब्लैकमनी वापस ले आएगी सरकार। पर विदेशों में काला धन छुपाने वालों का काला चेहरा आम जनता कभी नहीं देख पाएगी। यानी राजनीतिक दलों की बल्ले-बल्ले। कुछ पैसा सरकारी खजाने में जाएगा, तो कुछ चुनावी चंदे में। अब नवनियुक्त पहली केबिनेट मीटिंग में काले धन पर कहानी गढ़ दी। पर वोटरों को रिझाने का नया नुस्खा अपना लिया। अब हर साल 25 जनवरी राष्ट्रीय मतदाता दिवस के तौर पर मनेगा। जिसका स्लोगन होगा- वोटर होने पर गर्व, वोट के लिए तैयार। भले देश के वोटरों को चुनाव के बाद सिर्फ झुनझुना मिले। पर अब हर साल झुनझुना बजाने का दिन भी मुकर्रर हो गया। काश, महंगाई-भ्रष्टाचार से निजात दिलाने की भी कोई तारीख मुकर्रर होती। तो देश का वोटर वोट देने के बाद कभी रोने को मजबूर न होता। यों मतदाता दिवस का मकसद वोटरों में जागरूकता पैदा करना। देश के मतदाता 2004 और 2009 के चुनाव में अपनी जागरूकता का परिचय दे चुके। पर क्या सियासत करने वालों का हथकंडा बदला? महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद, किसानों की आत्महत्या, ब्लैकमनी पर तो वोट बैंक की राजनीति होती ही थी। अब तिरंगा भी वोट बैंक का हथियार बन गया। तिरंगे की ओट में शुरू हुई बीजेपी की राष्ट्रीय एकता यात्रा गुरुवार को दिल्ली पहुंच गई। तो बीजेपी के युवाओं ने देशभक्ति की हुंकार भरने में अपना गला बैठा लिया। पर बीजेपी के इस तिरंगा प्रेम पर अफसोस तब हुआ। जब मंच के ठीक सामने पहली पंक्ति में दो तिरंगे झंडे एक वर्कर के जूते के नीचे दबे दिखे। जोश में तिरंगे की कोई सुध नहीं। सो बीजेपी मीडिया सेल के एक वर्कर से कहना पड़ा। तब जाकर जूते के नीचे से तिरंगा हटा। अब बीजेपी की इस तिरंगा यात्रा का क्या मकसद? नाम एकता यात्रा, पर काम भावना भडक़ा कर अपना वोट बैंक साधना। सो मौका देख जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला भी मैदान में कूद चुके। उमर को अलगावादियों को साधना। सो बीजेपी की यात्रा को श्रीनगर के लालचौक पहुंचने से पहले ही रोकने की कोशिश करेंगे। बीजेपी दिल से यही चाहती। अगर बीजेपी सचमुच लाल चौक पर झंडा फहराना चाहती। तो इतनी बड़ी यात्रा के तामझाम की जरूरत नहीं थी। शायद बीजेपी वाले भूल चुके होंगे। तीन साल पहले ही बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और जम्मू-कश्मीर के सह प्रभारी सरदार आर.पी. सिंह ने भी लाल चौक पर झंडा फहराया था। आर.पी. सिंह ने राजबाग से लाल चौक तक 1200 मुस्लिम कार्यकर्ताओं के साथ भारत माता की जयकार करते हुए 26 जनवरी 2008 को झंडा फहराया। पर तब ऐसा तामझाम नहीं। सो मकसद तो साफ दिख रहा। अब राजनीति के ऐसे दौर में मतदाता दिवस मनाकर क्या कर लेंगे नेता? जब सुप्रीम कोर्ट चाबुक चलाता, तो भ्रष्टाचार और काले धन पर सरकार की नींद खुल जाती। भ्रष्टाचार का मुद्दा संसद का शीतकालीन सत्र लील चुका। सो 21 फरवरी से शुरू हो रहे बजट सत्र के पहले मनमोहन ने लोगों को ऐसे संदेश देना शुरू किया। मानो, ब्लैकमनी वापस लाने की पहल अपनी मर्जी से कर रहे। आखिर जनता कब तक एक बार वोट डाल पांच साल की सजा भुगतती रहेगी? नए-नवेले ग्रामीण विकास मंत्री विलासराव देशमुख पर सुप्रीम कोर्ट ने दस लाख का जुर्माना लगाया था। एक किसान की खुदकुशी के मामले में बतौर सीएम देशमुख ने अपराधी को बचाने की कोशिश की थी। अब वही गांव-किसान का विकास करेंगे। सो गुरुवार को जब अपने मनमोहन ने देश भर में मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी सेवा लाँच की। तो जेहन में एक सवाल आया- क्या सरकार पोर्टेबिलिटी सेवा 19 रुपए में नहीं मिल सकती? अगर जनता की उम्मीद पर सरकार खरी न उतरे। तो पांच साल के भीतर सरकार बदलने का भी हक हो।
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20/01/2011
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20/01/2011