Wednesday, August 11, 2010

तेरी-मेरी त्रासदी नहीं, त्रासदी की तेरी-मेरी

तो आइए, अपनी राजनीतिक व्यवस्था के लिए दो मिनट मौन रखें। भोपाल गैस त्रासदी पर 26 साल बाद संसद में बहस हो और राजनेता ऐसी संवेदना दिखाएं। तो इससे बेहतर यही, राजनीतिक व्यवस्था को श्रद्धांजलि दे दो। कम से कम दिल को सुकून मिलेगा, जिसे श्रद्धांजलि दे चुके, उसे क्या कोसना। लोकसभा में बुधवार को दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी भी राजनीतिक त्रासदी की शिकार हो गई। भोपाल गैस त्रासदी में 15-16 हजार मौतें हुईं। पर लोकसभा से ऐसा संदेश नहीं आया, जो मानवीय संवेदना दिखाता हो। अलबत्ता पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे की कमीज उतारने में लगे रहे। तो बाकी दोनों नंगों को देख हंसी-ठिठोली में। जब सात जून को भोपाल की महात्रासदी पर फैसला आया। दोषियों को महज दो-दो साल की सजा मिली। पीडि़तों के जख्म फिर हरे हो गए। व्यवस्था पर सवाल उठने लगे। तो सभी राजनीतिक दल विधवा विलाप करने लगे। गैस कांड की जांच कर चुके तबके सीबीआई ज्वाइंट डायरेक्टर बी.आर. लाल ने मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन के प्रत्यर्पण रोकने को विदेश मंत्रालय के दखल का खुलासा किया। अपने विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने इंसाफ का दफन होना बताया। कानून में बदलाव से लेकर फास्ट ट्रेक कोर्ट की पैरवी की। आनन-फानन में मनमोहन केबिनेट ने पुनर्वास के लिए जीओएम बना दी। मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने पांच मेंबरी कमेटी गठित कर दी। कोर्ट के फैसले से भले पीडि़तों को न्याय नहीं मिला। पर इतना जरूर हुआ, 26 साल बाद राजनेताओं की इंद्रियां जाग उठीं। फिर खुलासे दर खुलासे होते गए। भोपाल के तत्कालीन डीएम मोती सिंह ने नौ जून को पूरी कलई खोल दी। जब बताया- कैसे वारेन एंडरसन को गिरप्तार कर गेस्ट हाउस में रखा गया। फिर चीफ सैक्रेट्री ब्रह्म स्वरूप ने मोती सिंह और एसपी स्वराज पुरी को बुलाकर एंडरसन को रिहा करने की हिदायत दी। फिर एंडरसन मोती की कार में एयरपोर्ट पहुंचा। सीएम अर्जुन सिंह के विमान से दिल्ली पहुंचाया गया। फिर वहां से एंडरसन हमेशा के लिए अमेरिका फरार हो गया। पर खुलासों के बाद कांग्रेस चौतरफा घिर गई। तो चिदंबरम की रहनुमाई वाली जीओएम ने फुर्ती दिखाई। फटाफट मीटिंगें हुईं और मुआवजे की सिफारिश हो गई। पर पूरे दो महीने अर्जुन सिंह खामोश रहे। बुधवार को राज्यसभा में चुप्पी तोड़ी। तो वही किया, जो कांग्रेसी मैनेजमेंट का हिस्सा। अर्जुन की दिली ख्वाहिश अब राजभवन से रिटायरमेंट की। सो राजीव गांधी को क्लीन चिट थमा दी। हमेशा की तरह कांग्रेसी गुनाह का ठीकरा दिवंगत नरसिंह राव के सिर फूटा। राव तब राजीव केबिनेट में गृहमंत्री थे। सो बुधवार को अर्जुन बोले- एंडरसन की रिहाई के लिए राजीव गांधी ने कुछ नहीं कहा। त्रासदी के बाद मैंने इस्तीफे की पेशकश की थी, पर राजीव ने नामंजूर कर दिया। मेरे अधिकारियों के पास केंद्रीय गृह मंत्रालय से फोन आते थे। हू-ब-हू यही बात 18 जून को पूर्व विदेश सचिव एस.के. रसगोत्रा ने कही थी। रसगोत्रा ने राजीव को पूरे मामले में पाक-साफ बता नरसिंह राव को एंडरसन पर मेहरबान बताया था। एंडरसन को सेफ पैसेज देने के लिए राव को जिम्मेदार ठहराया। यानी अर्जुन ने तीर वहीं चलाया, जहां कांग्रेसी द्रोणों ने इशारा किया। पर राजीव केबिनेट में सूचना प्रसारण मंत्री रहे वसंत साठे ने भी जून में ही खुलासा किया। कहा- एंडरसन को भगाए जाने की जानकारी केंद्र-राज्य दोनों को थी। अब अगर अर्जुन की बात सच मानें, तो भी सवाल राजीव के नेतृत्व पर उठेगा। क्या पीएम को यह तक मालूम नहीं था, गृहमंत्री क्या कर रहा? क्या अर्जुन के कृष्ण राजीव नहीं, सचमुच राव ही थे? अब त्रासदी पर इतने खुलासे हो गए। फिर भी लोकसभा में बहस का कोई स्तर नहीं दिखा। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने मोर्चा संभाला। तो बहस की गंभीरता सोहराबुद्दीन तक पहुंच गई। भोपाल की त्रासदी में भी बीजेपी ने गुजरात की राजनीति घुसेड़ दी। सो लेफ्ट-सपा-बसपा सबने बीजेपी पर भी हमला बोला। महंगाई पर बनी एकजुटता भोपाल त्रासदी तक आते-आते बिखर गई। समूची बहस यहीं आकर सिमट गई, एनडीए ने क्या किया, यूपीए ने क्या किया। बीजेपी ने कांग्रेस को कटघरे में उतारा। तो कांग्रेस ने बीजेपी के दिन याद कराए। मानवीय संवेदना से जुड़ी बहस में पक्ष-विपक्ष इतिहास खंगालते रहे। जहां सभी हमाम में नंगे। कांग्रेस के मनीष तिवारी बोले- छह साल एनडीए सरकार रही, रिव्यू पिटीशन क्यों नहीं डाला? कांग्रेस-बीजेपी ने एक-दूसरे से सही कहा- मैं ही नहीं, तुम भी चोर। तो बाकी दलों ने कहा- ये दोनों चोर। पर आखिर तक साफ नहीं हुआ, एंडरसन का क्या होगा। पी. चिदंबरम ने बहस का जवाब दिया। तो दुख जताया और बोले- आठवीं लोकसभा के वक्त हुए हादसे की चर्चा पंद्रहवीं लोकसभा में हो रही। पर अब ऐसा न हो, ऐसी पहल हो। पीडि़तों को संदेश दिया जाए, हम गंभीर हैं। पर जुबानी जमा-खर्च से गंभीरता नहीं दिखती। छब्बीस साल से पीडि़त बाट जोह रहे। पर बीजेपी हो या कांग्रेस, किसी ने सुध नहीं ली। अब जख्म कैंसर बन चुका। तो इलाज के लिए ‘हाथ’ उठ रहे। पर यही ‘हाथ’ 26 साल पहले एंडरसन की हथकड़ी खोलने के बजाए गिरेबां तक पहुंचे होते, तो आज यह नौबत नहीं आती। पर आज भी अपने नेता 1984 की तरह ही संवेदनहीन दिख रहे। दंगे, आतंकवाद, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष का इतिहास एक जैसा ही। सो एक-दूसरे का इतिहास कुरेदते रहते। वही किस्सा भोपाल की त्रासदी पर भी लोकसभा में दोहरा दिया। जब पीडि़तों का दर्द बांटने के बजाए नेता त्रासदी की तेरी-मेरी ही करते रहे।
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11/08/2010