Tuesday, March 15, 2011

तो क्या सरकार वाया वाशिंगटन चल रही?

ममता बनर्जी ने रेल बजट में राज्य सरकारों के लिए लुभावनी स्कीम जारी की। तो लगा, अब राज्य सरकारें रेलवे की व्यवस्था को दुरुस्त रखने में जोर देंगी। रेल बजट में ममता ने एलान किया था- रेल परिचालन में जिस राज्य का ट्रेक रिकार्ड उम्दा रहेगा, उसे बजट से इतर दो जोड़ी ट्रेन और सीएम की मर्जी के दो प्रोजैक्ट दिए जाएंगे। पर बजट लागू होने से पहले ही ममता स्कीम का बंटाधार हो गया। यूपी जाट आंदोलन की आग से सुलग उठा। पखवाड़े भर से जाट रेलवे ट्रेक पर बैठे हुए। लगातार ट्रेनें रद्द हो रहीं। कुछ ट्रेनों को लंबे रूट से चलाया जा रहा। मंगलवार को जाट आंदोलनकारी दिल्ली तक पहुंच गए। सो संसद में भी मामला गूंजा। अपने रामदास अग्रवाल ने राज्यसभा में जोर-शोर से मसला उठाया। केंद्र सरकार पर ढिलाई बरतने का आरोप मढ़ा। पूछा- क्या केंद्र सरकार खून-खराबा चाहती है? अब कोई और सवाल उठाता, तो हम भी नहीं पूछते। पर सवाल रामदास अग्रवाल ने उठाया। सो गुर्जर आंदोलन के वक्त भाई रामदास की रामधुन भी याद दिलाते जाएं। जब राजस्थान में पहली बार गुर्जर अपने हक की लड़ाई के लिए रेलवे ट्रेक पर बैठे। तो बीजेपी की सरकार थी। गुर्जरों पर गोलियां चलाई गईं। तो सबसे पहले बीजेपी के साहिब सिंह वर्मा ने आलोचना की। अपनी बेबाकी के लिए पहचाने जाने वाले उन्हीं दिवंगत वर्मा की मंगलवार को ही जयंती भी। पर बात रामदास की। उस वक्त राजस्थान की सीएम ने गुर्जरों को धमकी देते हुए कहा था- एनफ इज एनफ। सो अपना मानना यही, शीशे के घरों में रहने वालों को दूसरे घर पर पत्थर नहीं फैंकना चाहिए। आंदोलन कांग्रेस राज में हो या बीजेपी के राज में या फिर माया-मुलायम के राज में। ऐसे आंदोलनों को जायज नहीं ठहराया जा सकता। आठ करोड़ लोग अपने निजी हक के लिए 125 करोड़ लोगों को परेशान नहीं कर सकते। आम मुसाफिर आंदोलन की मार झेल रहा। परदेस में काम करने वाले लोग आंदोलन की वजह से होली के त्योहार पर भी अपने घर नहीं जा पा रहे। हर बार आंदोलन के लिए सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता। पर सवाल- फिर उसी सरकार से अपने हित की मांग क्यों करते? दूसरों की आजादी में खलल डालने वाले आंदोलन को आंदोलन नहीं कहा जा सकता। जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसक रास्तों से देश को आजादी दिला सकते। जापान जैसा देश एटमी विनाश के बाद उठ कर विकसित देश बन सकता। तो अपने देश में आंदोलन की रूपरेखा जापानियों जैसी क्यों नहीं? पर अपने नेताओं को वोट बैंक की राजनीति अधिक मुफीद लगती। सो आंदोलन के वक्त विपक्ष में बैठने वाला अपने दिन भूल जाता। राजनीतिक सौहाद्र्र कफन ओढक़र बैठ जाता। सो सामाजिक सौहाद्र्र का माहौल कैसे बने? चुनावी घमासान में नेताओं की जुबान बिना ब्रेक के चलती। सो वोट बटोरने के लिए आरक्षण का सुर्रा छोड़ देते। पर सत्ता में आने पर वही सुर्रा अपने लिए मुसीबत बन जाता। अब जाट आंदोलन तेज हो गया। तो मंगलवार को सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक और गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने जाट नेताओं को बातचीत का न्योता दिया। अपनी सरकार के कान में पता नहीं कौन सी बीमारी। जो बिना आंदोलन के आवाज गूंजती ही नहीं। पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा फोन करें, तो एक की जगह दो-दो आवाज सुनाई देने लगतीं। अब अमेरिका से जुड़े नए खुलासे को ही देखो। विकीलिक्स ने खुलासा किया- अमेरिकी हित को देखते हुए यूपीए-वन में मणिशंकर अय्यर को पेट्रोलियम मंत्रालय से हटा मुरली देवड़ा को कमान दी गई। वजह बताई गई- मणिशंकर ईरान-भारत गैस पाइपलाइन के हिमायती थे। जो अमेरिका को पसंद नहीं। सो मणिशंकर को मंत्रालय से हटाया गया। पर अब मणिशंकर कह रहे- पेट्रोलियम मंत्रालय तो मुझे अस्थायी तौर पर दिया गया था। पर तबके अमेरिकी राजदूत डेविड मलफोर्ड ने अपने आका को दस्तावेज भेजे। जिसमें खास तौर से उल्लेख किया गया कि पेट्रोलियम मंत्रालय में बदलाव अमेरिका-भारत के संबंधों के मद्देनजर हुआ। अब ऐसी सरकार को क्या कहेंगे? कभी कॉरपोरेट लॉबिस्ट केबिनेट मंत्री और विभाग तय करते, तो कभी अंकल सैम की खातिर विभाग बांटे जाते। सो मंगलवार को संसद के दोनों सदनों में विकीलिक्स के खुलासे पर विपक्ष ने मोर्चा खोला। अपने जसवंत सिंह ने मनमोहन सरकार की विदेश नीति को चिंताजनक बताया। तो पूर्व विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने सरकार की विदेश नीति का समर्थन करते हुए दलील दी- इसी नीति के चलते विकास दर बढ़ रही। तो क्या भारत की सरकार अब वाशिंगटन से चलेगी? परमाणुवीय जनदायित्व बिल को लेकर मानसून सत्र में कितना हंगामा बरपा था। अमेरिकी जिद के आगे मनमोहन ने विपक्ष को अनसुना सा कर दिया था। बाद में कुछ बातें मानीं, पर आज भी किसी एटमी अनहोनी की स्थिति में मुआवजे की कीमत देखिए। तो अमेरिका और भारत में 23 गुने का फर्क। तब बीजेपी के यशवंत सिन्हा ने बढिय़ा जुमला दिया था- क्या अमेरिकियों का खून खून और भारतीयों का खून पानी? सचमुच अपनी विदेश नीति लचर दिख रही। अमेरिकी शह पर पड़ोसी पाक पैंतरेबाजी करता रहता। तो दूसरा पड़ोसी चीन अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आता। नेपाल में माओवाद पसर चुका। तो श्रीलंका से भी संबंध बेहतर नहीं।
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15/03/2011