Tuesday, February 1, 2011

उपदेशक तो बहुतेरे, कोई अनुकरणीय क्यों नहीं?

एक सुविचार है- उपदेश देने से बेहतर है उदाहरण बनना। पर मौजूदा हालात में अब ऐसे विचार सिर्फ सुनने-सुनाने को ही रह गए। समाज सुविधाभोगी बन रहा। सो जब तक खुद पर कुछ न बीते, जन चेतना जागृत नहीं होती। वरना महंगाई, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद की इस अंधाधुंध दौड़ में अपनी जनता शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर डाले न बैठती। चौक-चौराहे, गली-नुक्कड़ लोग व्यवस्था को कोसने में अब पानी भी नहीं पीते। पर व्यवस्था को बदबूदार बनाने वाले नेताओं को सबक सिखाने का जज्बा सो चुका। मिस्र के आंदोलन ने साबित कर दिया, गर जनता ठान ले, तो व्यवस्था को बपौती मानने वाले भागते फिरेंगे। सचमुच अब हुस्नी मुबारक के मुबारक भरे दिन खत्म होने को। मंगलवार को सेना ने एलान कर दिया- आंदोलनकारियों पर बल प्रयोग नहीं होगा। करीब दस लाख लोगों ने काहिरा में एतिहासिक मार्च कर मुबारक को शुक्रवार तक का अल्टीमेटम दे दिया। पर भारत में दाल की कीमत तीस से सौ रुपए हो जाए, आटा आठ से बाईस रुपए हो जाए, चीनी सोलह से छत्तीस हो जाए, दूध तेरह से तीस हो जाए, पेट्रोल तीस से साठ हो जाए, प्याज दस से अस्सी रुपए हो जाए, फिर भी हम-आप सिर्फ आंसू बहाते रहते। काश, सत्ता में बैठे लोगों को आंसू बहाने के लिए जनता मजबूर करने लगे। तो व्यवस्था को बपौती समझने वालों का नशा काफूर हो जाए। आंदोलन की मानसिकता अगर जल्द नहीं जागी। तो सरकार एक तरफ महंगाई पर उपदेश देगी, दूसरी तरफ बढ़ाएगी। कॉमनवेल्थ गेम्स पर पीएम ने शुंगलू कमेटी बनाई थी। पर तीन महीने में रपट नहीं आनी थी, सो कमेटी को एक्सटेंशन मिल गया। यों अंतरिम रिपोर्ट दी, तो पीएम ने केबिनेट सैक्रेट्री को भेज दी। पर मांग ऐसे की, मानो, पीएम नहीं, विपक्ष के नेता हों। पीएम ने कहा- दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो। पर कोई पूछे- कार्रवाई कौन करेगा? गेम्स के फौरन बाद कलमाड़ी को आयोजन समिति से क्यों नहीं हटाया गया? क्या अजय माकन के खेल मंत्री बनने का इंतजार हो रहा था? स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकार जेपीसी न बनाने की जिद पर अड़ी। सो अब हंगामे का संकट बजट सत्र पर भी मंडरा रहा। यों मान लिया, कॉमनवेल्थ या स्पेक्ट्रम मामले में जांच चल रही। पर सीवीसी थॉमस के मामले में सरकार या कांग्रेस नजीर पेश क्यों नहीं कर रही? अब तो आईने की तरह साफ हो गया- चार्जशीटेड थॉमस जानबूझ कर सीवीसी बनाए गए। सरकार के इस कबूलनामे के बाद सुषमा स्वराज ने हलफनामा देने का फैसला वापस ले लिया। पर थॉमस ने कोर्ट में नया हलफनामा देकर खुद को निर्दोष और ईमानदार बताया। मीडिया पर छवि बिगाडऩे का आरोप मढ़ा। खुद को राजनीतिक लड़ाई का शिकार बता रहे। यानी अब थॉमस विवाद का पटाक्षेप सुप्रीम कोर्ट ही करेगा। पर तमाम झंझावातों से जूझ रही सरकार और कांग्रेस की हालत कैसी, मंगलवार को सोनिया गांधी ने फिर इजहार किया। चौधरी रणवीर सिंह की स्मृति में डाक टिकट जारी होने का समारोह था। पर सोनिया ने मौजूदा हालात पर चिंता जता सच कबूल लिया। उन ने माना, लोकतंत्र के नाम पर लूटतंत्र चल रहा। सोनिया बोलीं- सत्ता और धन ही सब-कुछ नहीं। सत्ता का सुख ही सब-कुछ नहीं। फिर उस सुख की भी एक सीमा है। एक सीमा तक ही उसका उपयोग हो सकता। उसके बाद यह सिर्फ लोभ और लालच है, एक भ्रम है, जिसके पीछे दुनिया भाग रही। यानी ‘सोनिया सार’ से स्पष्ट हो गया, मनमोहन सरकार कैसा काम कर रही। सोनिया ने चौधरी रणवीर सिंह को अनुकरणीय बताया। बोलीं- उन ने 64 साल की उम्र में राजनीति से रिटायरमेंट ले लिया था। ऐसे आदर्शों का आज महत्व बढ़ जाता है, क्योंकि सत्ता और लालसा के लिए अंधी दौड़ मची है। अब चौंसठ पार के किन नेताओं पर इशारा, सबको मालूम। मनमोहन की एक्सपर्ट कमेटी ने सोनिया की एनएसी के फूड सीक्योरिटी बिल को नामंजूर कर दिया। पीएम से लेकर तमाम बड़े मंत्री चौंसठ पार के। यानी सोनिया ने अगले चुनाव तक सीनियरों के रिटायरमेंट का इशारा कर दिया। सोनिया ने आजादी के वक्त की सोच और आज की सोच में फर्क को भी कबूला। यानी कांग्रेस अब आजादी के वक्त जैसी सोच वाली पार्टी नहीं रही। सोनिया ने सार्वजनिक जीवन का अर्थ भी समझाया। बोलीं- सार्वजनिक जीवन का अर्थ यह है कि हम आम आदमी के दुख और दर्द को समझें, उसे दूर करने के लिए संघर्ष करें। पर खुद सोनिया सरकार की सुपर बॉस। कांग्रेस वर्किंग कमेटी महंगाई पर नकेल को कई दफा प्रस्ताव पास कर चुकी। भ्रष्टाचार से निपटने का संकल्पी अधिवेशन हो चुका। पर कितना असरकारक रहा ‘सोनिया सार’? मंगलवार को बरेली में आईटीबीपी के 416 पद की भर्ती के लिए सात लाख लोग पहुंचे। बरेली में अराजकता की स्थिति बन गई। क्या यही है मनमोहन सरकार की विकास दर? टमाटर-प्याज के बाद खाने के तेल के दाम बढ़ गए। मिस्र की घटना से पेट्रोल के दाम फिर बढ़ें, तो हैरानी नहीं। सो सवाल- उपदेश देना तो आसान, पर कोई उदाहरण क्यों नहीं बनता? राजनीति में अब ऐसा कोई व्यक्तित्व क्यों नहीं, जिसका अनुकरण किया जा सके। उपदेश तो जनता पिछले छह साल से सुन रही। क्या देश अब थॉमसों, पवारों, कलमाडिय़ों, राजाओं का अनुकरण करे?
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01/02/2011