संतोष कुमार
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काम के, न काज के, दुश्मन अनाज के। साउथ ब्लॉक में मनमोहन सर की क्लास लगी। तो राज्य मंत्रियों का यही दर्द उमड़ पड़ा। जब घर में बड़ा भाई छोटे को खिलौना देना तो दूर, छूने भी न दे। तो छोटा रोता-भागता मां के पास जाता। शाम को थका-हारा पिता घर आए। तो बड़े भाई की जमकर शिकायत होती। पर पिता की नजर में तो दोनों बच्चे एक जैसे प्यार के हकदार। सो बेचारे पिता की मुश्किल लाजिमी। मनमोहन के सरकारी परिवार की कहानी भी यही। सो जब मंगलवार को मनमोहन ने सुध ली। तो कुछ ने भावना का खुलकर इजहार किया। तो कुछ राजनीतिक कारीगरी दिखा गए। मनमोहन मंत्रिमंडल में कुल 78 मेंबर। केबिनेट में मनमोहन को मिला 33 बड़े भैया। सात इंडिपेंडेंट चार्ज वाले मझोले। बाकी 38 छोटे भाई लोग। सो मनमोहन की क्लास में 33 छोटे भाई पहुंचे। तो दर्जन भर ने खुलकर दुखड़ा रोया। ममतावादी को शिकायत कांग्रेसियों से। तो कांग्रेसी केएच मुनिअप्पा को ममता से। शिशिर अधिकारी का दर्द तो शनिवार को यहीं बता चुके। पर अब अधिकारी को मौका मिला। तो अपने सीपी जोशी को कैसे छोड़ते। अगर राज्यमंत्रियों में कोई संतुष्टï था। तो सिर्फ करुणानिधिवादी एसएस पलानिमणिक्कम। जो अपने प्रणव दा के मातहत वित्त राज्यमंत्री। पर डीएमके से विभागों की डील में रेवेन्यू मिला हुआ। वैसे भी करुणानिधि समर्थन की एवज में सत्ता का लिखित समझौता करने वाले। सो अपने सचिन पायलट गठबंधन की मजबूरी बखूबी समझ रहे। वैसे भी ए. राजा डीएमके के कोटे से। सो शिकायत करना, मतलब सरकार को मुश्किल में डालना। सो सचिन ने चुप रहना बेहतर समझा। यानी जिन राज्यमंत्रियों के सीनियर पावरफुल। उनने शिकायत के बजाए सुझाव का फार्मूला अपनाया। अब अंदाज भले कुछ भी हो। पर शिकायतों का लब्बोलुवाब एक जैसा। केबिनेट मंत्री फाइल नहीं आने देते। मीटिंग तक में नहीं बुलाया जाता। कार्यक्रम की सूचना नहीं मिलती। नीतिगत मामलों में राय नहीं ली जाती। सो जब सीनियर मंत्री ही भाव नहीं देते। तो सैक्रेट्री कहां तवज्जो देने वाले। कुछ राज्य मंत्रियों ने तो यहां तक कहा। जब सैक्रेट्री से फाइल मांगी, तो जवाब मिला- 'केबिनेट मंत्री ने मना कर रखा है।' पर कोई फाइल नहीं, तो काम क्या। तो उसका जवाब भी सैक्रेट्री के जरिए ही जूनियर मंत्रियों को मिल रहा। केबिनेट मंत्री जूनियरों को कह रहे। तुम उद्घाटन करो, फीता काटो, मौज करो, बाकी हम देख लेंगे। पर मनमोहन के सामने शिकायतों की लिस्ट यहीं तक नहीं रुकी। अलबत्ता राज्यमंत्रियों ने जो इजहार किया। वह तथ्य चौंकाने वाले। राज्यमंत्रियों को अपने विभाग का बजट भी मालूम नहीं। यों सरकारी वेबसाइट पर सब उपलब्ध। फिर भी राज्यमंत्री को नहीं पता। तो फिर राज्यमंत्रियों की दिलचस्पी का अंदाजा भी आप लगा लें। पर पीएम ने सबकी सुन ली। आखिर में पीएमओ से दो लाइन की रिलीज जारी हुई। तो कहा- 'पीएम ने राज्य मंत्रियों की क्षमता के बेहतर इस्तेमाल के तौर-तरीकों पर चर्चा की। राज्य मंत्रियों को पीएम ने शासन में प्रभावी भूमिका निभाने का अनुरोध भी किया।' पर राज्यमंत्रियों का यह दर्द कोई नया नहीं। वाजपेयी सरकार के वक्त कृषि राज्यमंत्री हुकुमदेव नारायण यादव का अपने सरकारी निवास में ही खेती करने का किस्सा आपको बता चुके। पर मनमोहन राज की कहानी के क्या कहने। पिछले टर्म में भी राज्यमंत्री इसी कदर रुसवा थे। तो मनमोहन ने कांतीलाल भूरिया से फिशरी विभाग लेकर लालूवादी तस्लीमुद्दीन को दिया था। फिर भी दर्द बढ़ता ही गया। तो मनमोहन ने नौ जून 2006 को एक चि_ïी सभी काबिना मंत्रियों को लिखी। अब उस चि_ïी का मजमून भी देख लो- 'आप सभी जानते हैं कि हमारे पास पूरे समय के लिए राज्यमंत्री हैं, जो विभिन्न विभागों के केबिनेट मंत्रियों के मातहत जुड़े हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से मैं बहुत से मामलों में यह देख रहा हूं कि राज्यमंत्रियों को दफ्तर के कामकाज के संदर्भ में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां नहीं दी जा रहीं। जिससे हम सुशासन के लिए नीति निर्धारण में उन मंत्रियों के अनुभवों और क्षमताओं से वंचित रह जाते हैं। इन सब पृष्ठïभूमि के तहत मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इस पर विचार करते हुए राज्यमंत्रियों को ज्यादा से ज्यादा जिम्मेदारियां दें। ताकि हम एक तरफ सरकार की कार्य प्रणाली को मजबूत कर सकें और दूसरी तरफ अपने नेतृत्व में उन मंत्रियों की क्षमता और अनुभवों को विकसित करने में सहयोग करें। आप इस बात को मानेंगे कि इससे न सिर्फ हमारी सरकार की छवि सुधरेगी, बल्कि हमारी सरकार के कामकाज की धारणा के बारे में भी सुधार होगा।' अब पीएमओ की ताजा रिलीज और नौ जून 2006 की उस चि_ïी की तुलना करें। कोई फर्क नजर आया? पर पीएम ने अबके फिर राज्य मंत्रियों को भरोसा दिलाया। केबिनेट की अगली मीटिंग में सीनियरों से बात करूंगा। केबिनेट सैक्रेट्री को नोट तैयार करने की हिदायत दी। पर होगा क्या। यही ना, मनमोहन तारीख बदल वही चि_ïी फिर भिजवा देंगे। या जुबानी बात करेंगे। पर केबिनेट मंत्री अपना वजन क्यों घटाएंगे? यों सिर्फ सीनियरों का ही दोष नहीं। राज्यमंत्री मुस्तैद हों। तो काम करने से कोई कब तक रोक सकेगा। पर लाल बत्ती मिल जाए। तो कामकाज में रुचि कहां रह जाती। सो काबिना मंत्री जूनियर की अरुचि का फायदा क्यों न उठाएं।
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19/01/2010
Tuesday, January 19, 2010
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