इंडिया गेट से
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तेलंगाना: सांप-छछूंदर वाली
हालत में कांग्रेस और सरकार
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संतोष कुमार
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तो तेलंगाना मुद्दे ने सरकार का तेल निकाल दिया। मंगलवार को ऑल पार्टी मीटिंग भी हो गई। पर आग बुझने का नाम नहीं ले रही। अलबत्ता तेलंगाना पर कांग्रेस और सरकार तिल-तिल फंसती जा रही। के. चंद्रशेखर राव की अनशन की हड़बड़ी में सरकार ने एलान तो कर दिया। पर दूरगामी प्रभाव नहीं भांप पाई। सो दबाव में फैसला लेकर अब नतीजा भुगत रही। जो आम राय का रोड मैप पहले तैयार होना चाहिए था। सरकार अब तैयार कर रही। पर जैसे हालात, सहमति की डोर कहीं दिखती नहीं। वैसे भी आम सहमति संभव नहीं। जब अलग-अलग वैचारिक ग्रुप ताकत दिखा रहे। तेलंगाना के मसले पर अलग-अलग दलों के बीच ही मतभेद नहीं। एक ही दल के भीतर भी कड़े मतभेद। कांग्रेस, तेलुगुदेशम, लेफ्ट फ्रंट और चिरंजीवी की प्रजा राज्यम। चारों में अंदर ही दो-फाड़। तेलंगाना रीजन से आने वाले नेता अलग राज्य की लड़ाई लड़ रहे। तो दूसरा पक्ष अखंड आंध्र की। सबके अपने-अपने निजी हित और स्वार्थ। सो आम सहमति के नाम पर तो न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। आम सहमति नहीं बनने वाली। फिर भी पी. चिदंबरम कवायद कर रहे। तो नतीजा वही होगा, जो मंगलवार को हुआ। मीटिंग शुरू हुई। तो चिदंबरम के चेहरे पर तेरह बजे थे। तेलंगाना पर खुफिया रपट चिदंबरम ने ही दस जनपथ पहुंचाई। फौरन किचन केबिनेट में विचार हुआ। तो सोनिया गांधी के सलाहकारों ने भी कोई खासी मशक्कत नहीं की। अलबत्ता नौ दिसंबर की रात को ही हड़बड़ी में केबिनेट बुलाकर अलग तेलंगाना की प्रक्रिया शुरू करने का एलान हो गया। एलान चूंकि चिदंबरम ने किया। रपट भी चिदंबरम ने दी। सो अब सारा ठीकरा चिदंबरम के सिर। कांग्रेस तो एक ही राग अलाप रही। तेलंगाना का मुद्दा सरकार के पाले में। सो अपनी बात सरकारी मंच पर कहेंगे। यानी कोल्हू में गर्दन फंसी। तो खुद कांग्रेस और सरकार का तेल निकल गया। सो मीटिंग में चिदंबरम ने संसदीय ज्ञान खूब बघारा। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी का अहसास कराया। तो विधानसभा चुनाव के वक्त सभी दलों की तेलंगाना पर भूमिका भी याद दिलाई। वाकई तब चिरंजीवी हो या चंद्रबाबू, लेफ्ट हो या राइट। सब तेलंगाना के पक्ष में थे। कांग्रेस ने भी मैनीफेस्टो में वादा दोहराया था। अब सिर्फ बीजेपी में अलग तेलंगाना पर एक राय। बाकी सब आपस में ही बंटे हुए। सो चिदंबरम ने आंध्र में भड़की हिंसा पर चिंता जताई। राज्य में अमन-चैन बहाल हो, इसकी जिम्मेदारी सभी दलों पर डाल दी। कहा- 'अगर हम मामला नहीं सुलझा पाए, तो माओवादी खुश होंगे।' फिर भी मीटिंग में तेलुगुदेशम के दो एम.पी. थे। तो एक तेलंगाना के पक्ष में, दूसरा विरोध में। कांग्रेसी नुमाइंदों का भी यही हाल। लेफ्ट फ्रंट में सीपीआई तेलंगाना के पक्ष में, तो सीपीएम विरोध में। एआईएमआईएम के ओबैसी न तीन में, न तेरह में। सो राष्टï्रपति राज की मांग की। प्रजा राज्यम ने एक हाई पॉवर कमेटी का सुझाव दिया। जो सभी ग्रुप से बात करे। पर बीजेपी के बंडारू दत्तात्रेय ने पहले कांग्रेस और सरकार से रुखनामा मांगा। फिर बजट सत्र में ही बिल लाने की मांग की। पर चिदंबरम को मीटिंग का कोई नतीजा नहीं दिखा। तो ऐसी बातचीत जारी रखने का सुर्रा छोड़ दिया। बोले- 'मुझे लगता है, कोई भी समूह आगे बातचीत के खिलाफ नहीं है।' पर बीजेपी ने फौरन आपत्ति जताई। तो सबसे अहम किरदार के. चंद्रशेखर राव ने मीटिंग में मुंह न खोला। केसीआर भांप चुके, बोतल से निकला जिन अब 'विश' पूरी करके जाएगा। भले आज नहीं तो कल। यानी तेलंगाना के लिए केसीआर किरदार। तो अखंड आंध्र के नाम पर जगन मोहन का खेल चल रहा। वाईएसआर के जमाने वाली समूची उद्योग लॉबी जगन मोहन के साथ। सो जगन मोहन सीएम नहीं, तो कांग्रेस नहीं के खेल में जुटे हुए। यानी कुल मिलाकर चिदंबरम बाबू फंस गए। मुंबई हमले के बाद मनमोहन ने होम मिनिस्टर बनाया। तो चिदंबरम ने बाबूगिरी पर नकेल कस दी। शासन तंत्र को मुस्तैद कर दिया। पर तेलंगाना चिदंबरम के लिए पहला राजनीतिक टेस्ट। सो जल्दबाजी का फैसला गले की फांस बन गया। चिदंबरम ने ही तेलंगाना का एलान किया। फिर पखवाड़े भर बाद आम सहमति की दलील दी थी। सो चिदंबरम की हालत सांप-छछूंदर वाली हो गई। बड़े-बुजुर्ग तो सांप-छछूंदर पर मौजूं कहानी सुनाते। सांप को शाप मिला हुआ। अगर सांप छछूंदर को निगल जाए, तो भी मरेगा। अगर छोड़ दे, तो छछूंदर के काटने से भी सांप मरेगा। सो पेशे से वकील चिदंबरम राजनीति के कटघरे में फंस गए। चार घंटे मीटिंग चली। पर नतीजे में निकली कुल जमा चार शब्दों की अपील- 'राज्य में शांति, सौहार्द और कानून व्यवस्था बनाए रखी जाए।' यानी आम सहमति को इन्हीं चार शब्दों की श्रद्धांजलि। अब भी अमन-चैन बहाल न हुआ। तो चिदंबरम का भविष्य क्या होगा?
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05/01/2010
Tuesday, January 5, 2010
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bharatiy loktantr ka chamtkar
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