Monday, May 24, 2010

बोले तो बहुत, पर कहा क्या?

बोले तो बहुत, पर कहा क्या? सातवें साल में पहुंचे पीएम मनमोहन सिंह ने सभी मसलों को छुआ। पर पीएम की बात करें, पहले जरा जिम्मेदार विपक्ष की जिम्मेदारी देखिए। आखिरकार सत्ताईसवें दिन बीजेपी ने शिबू से समर्थन खींच लिया। सो पहली मई को यहीं पर लिखी कहावत याद दिलाते जाएं। लिखा था- भानुमती ने खसम किया, बुरा किया। करके छोड़ा, उससे बुरा किया। छोडक़र फिर पकड़ा, ये तो कमाल ही किया। पर बीजेपी तो उस कहावत को भी पीछे छोड़ गई। अबके फिर साथ छोड़ा, पर गवर्नर ने शिबू को सात दिन का वक्त दिया। सो बीजेपी के चरित्र का अब क्या पता। कहीं कर्नाटक दोहराने की कोशिश न करे। यों अरुण जेतली ने अंग्रेजी में सीधे-सीधे कहा- इनफ इज इनफ। अब जेतली कह रहे- झारखंड का फैसला सामूहिक था। राजनीति में वैसे भी पहले दिन हार नहीं मानते। यानी जेतली की मानें, तो बीजेपी ने सत्ताईसवें दिन हार मानी। पर बीजेपी के इस नए चरित्र का रचयिता कौन? जब आडवाणी, जेतली, सुषमा, जोशी, यशवंत जैसे दिग्गज शिबू संग रास रचाने के खिलाफ थे। तो क्या संघ, राजनाथ और गडकरी ने बेड़ा गर्क कराया? गडकरी तो बीजेपी की राजनीति का सारा फार्मूला छोड़ सात समंदर पार बायोडीजल का फार्मूला समझ रहे। अब कोई पूछे, सत्ताईस दिन तक झारखंड को झूला झुलाने का जिम्मेदार कौन? अब झारखंड के लिए भी बीजेपी कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रही। तो इसे क्या कहेंगे आप? पर कहते हैं- त्रिया चरित्रम, मनुष्यस्य भाग्यम दैवम न जानम। राजनीति का चरित्र कब, क्या होगा, किसी को नहीं मालूम। तभी तो बीजेपी ने अपना देखा नहीं, सोमवार को जंतर मंतर पर काला दिवस मनाने बैठ गई। मनमोहन यूपीए-टू का एक साल पूरा होने पर देश-विदेश की मीडिया से रू-ब-रू थे। तो बीजेपी मातम मना रही थी। अब यह मातम झारखंड का था, या वाकई विपक्ष की जिम्मेदारी। यह बीजेपी ही जाने, पर मनमोहन भी कम नहीं। भले देश में महंगाई कम होने का नाम न ले। पर मनमोहन राजनीति के माहिर खिलाड़ी हो चुके। सो सोमवार को 75 मिनट तक सवालों की बौछार हुईं। पर किसी समस्या को लेकर स्थिति साफ नहीं। यों पीएम ने महंगाई, विदेश नीति, आतंकवाद, नक्सलवाद, जातीय जनगणना, सरकार के काम को नंबर, मंत्रियों का बड़बोलापन, भ्रष्टाचार, तेलंगाना, केबिनेट में राहुल, रिटायरमेंट, कट मोशन, सीबीआई का दुरुपयोग, माया-मुलायम से डील, अफजल की फांसी, सोनिया से मतभेद, एनएसी का गठन, पानी पर राज्यों की लड़ाई, अमेरिकी एजंडे पर चलना, केंद्रीय योजनाओं में राज्यों की मनमर्जी, निजी क्षेत्र में आरक्षण जैसे दो दर्जन मुद्दे छुए। पर सिवा गांधी परिवार से जुड़े सवालों के, मनमोहन का जवाब देश को दिशा देने वाला नहीं। अब जवाब की बानगी देखिए। महंगाई दिसंबर तक काबू में लाने का एलान। जनता की तकलीफ भी बयां की। पर देश के पीएम ने उम्मीद जताई, दिसंबर तक महंगाई की दर पांच-छह फीसदी तक ले जा पाएंगे। यों अर्थशास्त्र में दर का कम होना और महंगाई का कम होना, दोनों में अंतर। वैसे भी महंगाई को लेकर यह कोई नई टिप्पणी नहीं। पिछले पांच साल में पीएम-मंत्री-योजना आयोग कई बार कह चुके। पर पीएम की चालाकी देखिए। सवाल में यह भी था- आपसे पहले के पीएम के दौर में जब मंत्री बयान देता था, तो अगले दिन महंगाई कम होती थी। पर अब जब-जब मंत्री बयान देते, महंगाई बढ़ जाती, ऐसा क्यों? आखिर वही हुआ, जिसकी उम्मीद थी। पीएम सवाल को ही गोल कर गए। आतंकवाद पर भी वही जवाब, कार्रवाई होनी चाहिए। नक्सलवाद पर केंद्र राज्य मिलकर काम करेंगे। भ्रष्टाचार पर दलील, मंत्री ए. राजा से बात हो चुकी। भ्रष्टाचार की कोई शिकायत मिलेगी, तो कार्रवाई करेंगे। क्या पीएम को भ्रष्टाचार के बारे में मालूम नहीं? सीबीआई के दुरुपयोग का सवाल हुआ। तो जवाब- हम दखल नहीं देते। माया-मुलायम से डील की बात। तो कहा- आप गलतफहमी के शिकार। जातीय जनगणना पर बात। तो जवाब- केबिनेट में अभी चर्चा जारी। विदेश नीति पर पाक के लिए सारे दरवाजे खोल दिए। तेलंगाना पर कमेटी रपट का इंतजार। नदी जल बंटवारा आने वाले समय में गंभीर मसला बनेगा। पर जिन मुद्दों का सीधा जवाब आया, उन्हें भी देखिए। मंत्रियों को नसीहत, केबिनेट मीटिंग में अपनी बात रखें, सार्वजनिक मंच पर नहीं। मंत्रियों की बला भी मनमोहन ने अपने सिर ले ली। कह दिया- दंतेवाड़ा हो या मंगलोर, बतौर पीएम संसद और देश के प्रति मेरी जवाबदेही। यानी अब कोई भी घटना हो, मंत्री को नैतिकता ओढऩे की जरूरत नहीं। फिर सवाल- सोनिया से मतभेद पर। तो पीएम ने कहा- रंच मात्र भी मतभेद नहीं। न ही एनएसी सुपर केबिनेट, अलबत्ता सलाह देने वाली संस्था। राहुल को केबिनेट में लाने की बात, तो पीएम कई बार चर्चा कर चुके। फिर सवाल राहुल के लिए गद्दी छोडऩे का हुआ। तो मनमोहन बेहिचक बोले- कांग्रेस तय करे, तो राहुल क्या, किसी के लिए भी कुर्सी छोड़ दूंगा। पर लगे हाथ रिटायरमेंट से इनकार। कहा- मेरा काम अभी अधूरा। कहीं ऐसा तो नहीं, गांधी परिवार की विरासत को लौटाना ही मनमोहन की बड़ी जिम्मेदारी? पीएम-राहुल भले पार्टी और सरकार में लोकतंत्र की बात करें। पर जैसा विशेषाधिकार राहुल का, क्या किसी और कांग्रेसी को मिल सकता? कांग्रेस में महासचिव तो दस। पर सिर्फ राहुल ही ऐसे, जो जब चाहें, केबिनेट में आ-जा सकते। सो पीएम की नेशनल प्रेस कांफ्रेंस का मकसद साफ।
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24/05/2010

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