Wednesday, May 26, 2010

तो अकेला चना भी फोड़ सकता है भाड़

यों तो आईआईटी के नतीजे हर साल घोषित होते। लाखों छात्र-छात्राएं इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते। पर सफलता महज कुछ को मिल पाती। सो कुछ का मायूस होना और कुछ का खुश होना लाजिमी। पर सुपर-30 के सभी छात्र आईआईटी में अबके भी सफल रहे। लगातार तीसरी बार सुपर-30 के सभी छात्र सफल हुए। अब तक सुपर-30 संस्था से 212 छात्र आईआईटी में सफल हो चुके। पर सुपर-30 के पैदा होने से अब तक की कहानी जितनी दिलचस्प, अपनी व्यवस्था और समाज को उतना ही बड़ा तमाचा। सुपर-30 के संस्थापक आनंद ने 2002 में इसकी शुरुआत की। तो मकसद साफ रखा, सबसे गरीब और प्रतिभाशाली छात्र को मौका देंगे। सो तबसे अब तक आनंद का सफल सफर जारी। पर आनंद की जिजीविषा ही कहेंगे, जिन ने मौके से हार नहीं मानी। अलबत्ता अपनी हार से प्रेरणा लेकर गरीबी को चुनौती दी। प्रतिस्पर्धा के इस युग में कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह हर रोज पैदा हो रहे। जहां इश्तिहारों, प्रचार की आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर सपने खूब दिखाए जाते। कोचिंग संस्थान शिक्षा से अधिक व्यवसायीकरण पर फोकस करते। सो इन कोचिंगों में धनाढ्य घरों के बच्चे दाखिला लेते। गरीब घर का बच्चा दूर से ही इन कोचिंग संस्थानों के इश्तिहार देखता। अब आईआईटी के नतीजे आए, तो आप खुद देखना, कैसे कुछ संस्थान बड़े-बड़े इश्तिहार छपवाएंगे। कोई एक-दूसरे से खुद को कमतर नहीं बताएगा। अलबत्ता छात्रों के फोटो छाप क्रेडिट लेंगे। याद होगा, हरियाणा का एक छात्र नितिन एक साथ आईआईटी और मेडिकल में भी अव्वल आया। तो संस्थानों में नितिन को अपना बताने की होड़ मच गई। पर क्या सुपर-30 को कभी ऐसी गलाकाट प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनते देखा? आनंद जैसे लोग विरले ही मिलते। आनंद की कहानी वाकई प्रेरणादायी। गरीब परिवार के आनंद कुमार गणित में बेहद प्रतिभाशाली। शायद 1998 की बात होगी। आनंद की प्रतिभा को देख कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने मौका दिया। पर छात्रवृत्ति के बाद भी करीब 55 हजार रुपए का प्राथमिक शुल्क अदा करना जरूरी था। आनंद इतने गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे कि वह राशि भी नहीं जुटा सके। सो आनंद मौके से वंचित रह गए। पर आनंद ने हिम्मत नहीं हारी। जो खुद पर बीती, वह किसी और गरीब प्रतिभाशाली छात्र पर न बीते। सो उन ने ऐसी शुरुआत की, जिसकी उम्मीद आज के समाज और अपनी राजनीतिक व्यवस्था से नहीं की जा सकती। किसी भी क्रांति की शुरुआत की पहली शर्त समर्पण और खुद पर भरोसा होता है। पर अपनी व्यवस्था में इतना घुन लग चुका, समाज भी अछूता नहीं रहा। हर आदमी अब यही सोचता, मैं अकेला क्या करूंगा। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। पर आनंद जैसी शख्सियत ने बता दिया, गर आपमें गिरकर उठने का जज्बा हो। हार से सीखने का हुनर हो। मन में दृढ़ संकल्प हो। तो अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है। अगर आप ताजा हालात को ही देखो, तो देश में समस्याओं का अंबार। पर कहीं से कोई क्रांति होती नहीं दिख रही। महंगाई बढ़ी, तो दो-चार लोग चौक-चौराहे, बस-ट्रेनों में बैठकर सरकार के खिलाफ खीझ निकालेंगे। फिर गंतव्य पर उतर अपने-अपने काम में व्यस्त। सोचो, महात्मा गांधी ने भी ऐसा सोचा होता, तो क्या अपना देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो पाता? क्या आनंद कुमार ने कैंब्रिज का मौका चूकने के बाद हार मान ली होती। तो क्या सुपर-30 बनता? क्या अब तक आनंद के सहारे 212 गरीब परिवारों की किस्मत बदलती? आनंद गरीब प्रतिभाशाली छात्रों को चुनते। आईआईटी की तैयारी कराते और रहने-खाने का बंदोबस्त भी। इतना ही नहीं, सफल छात्रों के लिए शिक्षा ऋण की व्यवस्था का भी प्रयास करते। अब बुधवार को सुपर-30 के सभी छात्र सफल हुए। तो उसमें एक नालंदा का शुभम कुमार भी था। जिसका पिता एक गरीब किसान और मासिक आमदनी महज ढाई हजार रुपए। क्या यही है अपने देश की विकास दर? दिल्ली में जब-जब शीला दीक्षित ने कीमतें बढ़ाईं। दलील यही, लोगों की आमदनी बढ़ी। क्या वेतन आयोग लागू कर सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ाना ही समूचे देश का पैमाना हो गया? असली विकास की तस्वीर तो शुभम जैसे गरीब बच्चे के परिवार से दिखती। पर वहां तक पहुंचेगा कौन? बिहार, जिसका नाम आते ही देश के बाकी राज्यों के लोग नाक-भौं सिकोड़ते। पर उसी बिहार में आनंद कुमार ने ऐसा कर दिखाया। अब तक 23 डॉक्यूमेंट्री फिल्म बन चुकीं। डिस्कवरी ने एक घंटे की विशेष फिल्म बनाई। विश्व की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम मैगजीन ने सुपर-30 को बेस्ट ऑफ एशिया में स्थान दिया। अब सुपर-30 ने सौ फीसदी सफलता ही हैट्रिक लगाई। तो अब संस्थान को सुपर-60 बनाने की तैयारी। सचमुच बिहार एक अनौखा राज्य है। जहां जातीय दंभ भरने वाले लोग, वहां गुणवत्ता भी भरपूर। अपराध की बात हो, तो भी बिहार। कभी परीक्षा में चोरी का किस्सा हो, तो भी बिहार का नाम आता। कभी जेपी को आंदोलन करना हो, तो भी सबसे पहले बिहार उठता। अशोक के जमाने से ही चमत्कारी राज्य रहा बिहार। जहां सबको प्रश्रय मिलता। पर बात आनंद और सुपर-30 की। भले आनंद आईआईटी के क्षेत्र में गरीबों को मौका दे रहे। पर आनंद का जीवन समाज और व्यवस्था के लिए अनुकरणीय। शिक्षा हो या विकास की कोई और पहल। सिर्फ गाल बजाने से कुछ नहीं होता।
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26/05/2010

2 comments:

  1. definitely

    where there is will there is Way

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  2. great man..........i am really impressed..

    kukurmutte ki tarah coaching institute...

    sheela dixit ki dalil....................

    sirf gaal bajane se kuchh nahi hota......

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