Monday, September 13, 2010

तो कश्मीर पर कब तक मीटिंग-मीटिंग खेलेंगे?

घाटी की आग को अमेरिकी घी ने शोला बना दिया। पिछले तीन महीने से घाटी का बवाल थम नहीं रहा। अब हालात इतने बदतर हो चुके, एक चिंगारी भी शोला बन जाती। अमेरिका के एक पादरी ने 9/11 की बरसी पर कुरान-ए-पाक जलाने की धमकी दी। पर बराक ओबामा ने दखल दिया। चौतरफा आवाज उठी, तो पादरी ने कदम पीछे खींचा। फिर भी कश्मीर में मुद्दा बन गया। अलगाववादियों ने भावना भडक़ाने में कसर नहीं छोड़ी। सो ईद के दिन से अब तक हिंसक वारदातों में कई जानें जा चुकीं। कई सरकारी इमारतें स्वाहा हो चुकीं। सोमवार को उमर अब्दुल्ला केबिनेट ने शांति की अपील की। अमेरिकी पादरी के कदम की भत्र्सना की। पर कुरान वाली घटना तो महज बहाना बनी। असल में आम्र्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट पर केंद्र सरकार की ऊहापोह से नाराजगी। ईद से पहले उमर ने सोनिया-मनमोहन से मुलाकात कर कुछ जगहों से एक्ट को हटाने का फार्मूला रखा था। ताकि घाटी में अमन-चैन बहाल किया जा सके। पर मनमोहन केबिनेट में ही इस पर दो राय हो गईं। रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी एक्ट को हटाए जाने से सहमत नहीं। पर राजनीतिक लिहाज से कांग्रेस और गृह मंत्रालय हटाने के पक्ष में। सो दो बार टलने के बाद सोमवार को सुरक्षा मामलों की केबिनेट कमेटी बैठी। तो तीन घंटे की मत्थापच्ची के बाद भी सरकार आगे बढऩे के बजाए एक महीना पीछे चली गई। अब बुधवार को सर्वदलीय मीटिंग होगी। तो आम्र्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट पर चर्चा होगी। पर क्या सचमुच मनमोहन राजनीतिक आम सहमति बनाना चाह रहे या सिर्फ दिखावा? सनद रहे सो याद दिलाते जाएं। पिछले महीने दस अगस्त को पीएम ने सर्वदलीय मीटिंग बुलाई थी। तो ओपनिंग स्पीच का लाइव टेलीकास्ट करा कश्मीरी अवाम को भी संबोधित किया था। शांति की तमाम अपील के साथ-साथ बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए सी. रंगराजन की रहनुमाई में कमेटी का वादा किया। अपने संबोधन में मनमोहन ने साफ तौर पर आम्र्ड फोर्सेज स्पेशल एक्ट को खत्म करने का इरादा भी जतला दिया। जब कहा था- जम्मू-कश्मीर पुलिस को अब खुद ही जिम्मेदारी लेनी होगी। हम अवाम की भावना समझते हैं। अब कोई पूछे, जब पिछले महीने की सर्वदलीय मीटिंग में ही इरादा साफ कर दिया। तो दुविधा का दिखावा किसके लिए? बीजेपी इस एक्ट को हटाने के खिलाफ। पर जैसे सरकार में दो राय, अब बीजेपी के राम जेठमलानी का अलग राग। जेठमलानी भी इस बात से इत्तिफाक रखते कि प्रयोग के तौर पर कुछ जगहों से स्पेशल एक्ट हटाया जाना चाहिए। जेठमलानी का जिक्र इसलिए जरूरी, क्योंकि पीएम से मिलने गए बीजेपी के शीर्ष प्रतिनिधिमंडल में आडवाणी, जेतली, सुषमा के अलावा चौथे शख्स जेठमलानी थे। सो विपक्ष हो या सरकार, जब आपस में ही कोई एका नहीं। तो अमन बहाली की उम्मीद कैसे करें। घाटी की आग में सब अपनी-अपनी रोटियां सेक रहे। यों तो आम्र्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट 1958 में तब बना था, जब पूर्वोत्तर के राज्यों में उग्रवाद हावी हो चुका था। पर आतंकी घटनाओं के मद्देनजर 1990 में जम्मू-कश्मीर में भी लागू कर दिया गया। जिसमें सेना को देश की सुरक्षा की खातिर कुछ विशेष अधिकार दिए गए। पर मानवाधिकारवादियों से लेकर यूएन ने भी इसका विरोध किया। घाटी से पहले मणिपुर में इस एक्ट के खिलाफ तीखे प्रदर्शन हो चुके। मनोरमा बलात्कार कांड से सेना की भूमिका पर कई सवाल उठे थे। इस एक्ट को मणिपुर से हटाने के लिए एक्टिविस्ट शर्मिला की दस साल से भूख हड़ताल चल रही। सो सरकार की मुश्किल सिर्फ कश्मीर नहीं। अलबत्ता कश्मीर से एक्ट हटाया गया। तो एक्शन दूर तलक होगा। तब केंद्र के लिए आंतरिक सुरक्षा का ऐसा खतरा पैदा होगा, जिसे संभालना सरकार के लिए टेढ़ी खीर होगा। पर स्पेशल पॉवर एक्ट को वापस लेने का सुर्रा भी मनमोहनवादियों ने ही छेड़ा। मनमोहन जब पिछली बार कश्मीर दौरे पर गए। तो अलगाववादियों से वार्ता की पेशकश कर दी। अलगाववादी पिछले कुछ चुनावों में अपनी हार और भारतीय लोकतंत्र के प्रति अवाम के जुनून को देख पस्त हो चुके थे। पर जम्मू-कश्मीर के चौकलेटी चेहरे वाले युवा सीएम उमर अब्दुल्ला जमीनी हकीकत को नहीं भांप पाए। जून में सुरक्षा बलों की गोलीबारी से 11 साल के बच्चे की मौत के बाद से भडक़ी हिंसा में अब तक पाच-छह दर्जन लोग मारे जा चुके। पर उमर अभी तक संभाल नहीं पाए। सो उन ने भी राजनीतिक पैकेज के नाम पर स्पेशल एक्ट में नरमी का फार्मूला रख दिया। जो अब मनमोहन के गले की ऐसी फांस बना, जो न निगलते बन रहा, न उगलते। सो अलगाववादियों को फिर से पनपने देने के लिए भी मनमोहन-उमर सरकार ही जिम्मेदार। अगर वक्त रहते उमर ने संवेदना दिखाई होती, मनमोहन ने सक्रियता। तो आज घाटी के हालात काबू से बाहर न होते। उमर ने पिछली लोकसभा में अमरनाथ श्राइन बोर्ड जमीन विवाद के वक्त आग लगाऊ भाषण दिया था। तो कांग्रेस ने खूब मेजें थपथपाई थीं। उसी भाषण से उमर का ग्राफ अवाम की नजर में बढ़ा। पर सचमुच में उमर ने अपरिपक्वता दिखाई थी। जो तब देखने-सुनने में भले अच्छी लगी हो। पर अब घाटी उसका नतीजा भुगत रही। सो बीजेपी उमर को हटाने की मांग कर रही। तो कांग्रेस को कुछ सूझ नहीं रहा। सो बीजेपी की मांग पर सोमवार को पलटवार किया। तो कहा- वाजपेयी राज में बीजेपी ने कौन सा तीर मार लिया था? मतलब साफ, कांग्रेस भी कोई तीर मारने नहीं जा रही। घाटी भले झुलसती रहे।
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13/09/2010

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