तो शुक्रवार को सीबीआई भ्रष्टाचार के राजा की खैर-खबर लेगी। सो गुरुवार को ही कांग्रेस के संकटमोचक प्रणव दा गरजे। संसद का समूचा सत्र ठप करने के लिए देश से माफी मांगे विपक्ष। प्रणव दा स्पेक्ट्रम घोटाले पर बहस के लिए पहले ही विशेष सत्र की पेशकश कर चुके। पर विपक्ष ने टका सा जवाब दे दिया। अब बहस नहीं, जांच और कार्रवाई चाहिए। सो पक्ष-विपक्ष का यह वाचाल तंत्र कहां थमेगा, मालूम नहीं। पर यूपीए सरकार की पोल सहयोगी ही खोल रहे। अब अगर राजा की गिरफ्तारी हुई, तो कांग्रेस-डीएमके दोराहे पर खड़ी होंगी। पर तलवार सिर्फ कांग्रेस-डीएमके के रिश्ते पर ही नहीं, अब तृणमूल कांग्रेस ने भी मोर्चा खोल दिया। बंगाल में केंद्रीय बल के दुरुपयोग से खफा ममता बनर्जी तो नाता तोडऩे की धमकी दे ही चुकीं। गुरुवार को ममतावादी सुदीप बंदोपाध्याय ने कांग्रेस की कलई खोली। बोले- हम सबसे बड़े घटक, पर सरकार हमसे कोई सलाह-मशविरा नहीं करती। हमें मीडिया के जरिए खबरें मिलतीं। कोई न्यूनतम साझा कार्यक्रम नहीं। भले कांग्रेस और तृणमूल के बीच बंगाल चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर एक-दूसरे पर दबाव की रणनीति चल रही हो। पर इसमें भी कोई शक-शुबहा नहीं, मौजूदा परिस्थितियों में यूपीए के घटक दल कांग्रेस के रवैये से असहज हो रहे। चुनावी राज्य तमिलनाडु, बंगाल में घटक दल कांग्रेस की कारगुजारियों का नफा-नुकसान तोलने में जुटे हुए। ममता को खास तौर से डर सता रहा, महंगाई और भ्रष्टाचार पर कांग्रेस की रणनीति से बंगाल में रायटर्स बिल्डिंग का सपना अधूरा न रह जाए। सो तृणमूल ने संसद सत्र के वक्त भी जेपीसी की पैरवी की थी। पर कांग्रेस अपनी जिद पकड़े बैठी। सो तृणमूल ने सहयोगी दलों को न पूछने का आरोप लगाना शुरू कर दिया। अब जब गठबंधन ही इतना असहज हो रहा। कांग्रेस अपने घटक दलों की भी नहीं सुन रही। तो सोचिए, जनता की बात क्या खाक सुनेगी? यों सवाल तृणमूल से भी- जब कांग्रेस मान नहीं दे रही, तो अपमान के साथ सत्ता में क्यों बैठी हुई? अब तृणमूल चाहे जो कहे, पर सत्ता की मलाई तो काट ही रही। कांग्रेस की धौंस की राजनीति का शिकार किसी को होना पड़ रहा, तो वह आम आदमी। प्याज की ‘लाली’ ने अब टमाटर को और ‘लाल’ कर दिया। कांग्रेस के एतिहासिक महाधिवेशन की शुरुआत और अंत ने आम आदमी की जेब पर डाका डाला। दूध के बाद प्याज की कीमत रातों-रात इतिहास बनाने निकल पड़ी। तो पहली बार महंगाई से कांग्रेस की आंखों में आंसू आ गए। शायद इसे प्याज की बादशाहत ही कहेंगे, जिसने 24 घंटे के भीतर राहुल गांधी से लेकर पीएम तक को हिला दिया। प्याज दिल्ली में बीजेपी की सरकार को खून के आंसू रुला चुकी। सो कांग्रेस ने ताबड़तोड़ कदम उठाए। तो प्याज की कीमतों में सीधे 30 फीसदी की गिरावट दर्ज हो गई। निर्यात पर रोक, आयात पर सब्सिडी जैसे सरकारी उपायों से जल्द और गिरावट के आसार। सो आप खुद देख लो, अगर कोई भी सरकार नेक नीयत से काम करे। तो आम आदमी लुटा-पिटा या ठगा महसूस नहीं करेगा। पर असल में हुआ क्या। जब प्याज ने आम आदमी को रुलाना शुरू किया, तो कृषि/क्रिकेट मंत्री शरद पवार ने हमेशा की तरह कालाबाजारियों को इशारा कर दिया। अपने शरद पवार जब भी मुंह खोलते, आम आदमी के खिलाफ ही बोलते। चाहे चीनी की कीमत हो या दूध की, जब-जब पवार बोले, कीमतों ने जबर्दस्त छलांग लगाई। अबके पवार ने फौरन कह दिया- तीन हफ्ते तक प्याज की कीमत नीचे नहीं आने वाली। पर पीएमओ हरकत में आया। तो हफ्तों की बात कौन करे, चौबीस घंटे के भीतर कीमतें उलटी दिशा में लौटने लगीं। पर मनमोहन सरकार के बड़बोले मंत्री सिर्फ पवार ही नहीं। पवार के महकमे में जूनियर मंत्री के.वी. थॉमस ने खीझते हुए कहा- मैं कोई जादूगर नहीं, जो बताऊं, कीमत कब कम होंगी। पर गुरुवार शाम होते-होते कृषि सचिव का बयान आ गया। एक हफ्ते में कीमतें नीचे आ जाएंगी। फिर कृषि मंत्रालय के अधीन संस्था नैफेड ने दो-तीन दिन में कीमत कम होने का दावा किया। सो अब आप खुद ही देख लो, एक ही महकमे के चार लोग यानी कृषि मंत्री, कृषि राज्यमंत्री, कृषि सचिव और नैफेड के अधिकारी बोले, पर चारों के अलग-अलग बोल। पर सबसे पते की बात तो दिल्ली की सीएम शीला आंटी ने की। प्याज के दाम से बेदम शीला मीडिया पर भडक़ते हुए बोलीं- कहां बढ़ रहे हैं दाम, आप लोग बढ़ा रहे हो दाम। अब अपनी इस व्यवस्था को क्या कहेंगे आप? अगर भ्रष्टाचार के वार से चोटिल मनमोहन ने प्याज पर दखल न दिया होता। तो प्याज की कीमत में हुई थोड़ी गिरावट भी नहीं होती। सो गुरुवार को ही जब दिल्ली हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी को डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया। तो फैसला देख यही लगा- भले देर हो, पर अंधेर नहीं। रोहित शेखर नाम के शख्स ने तिवारी को अपना जैविक पिता बताया। पर तिवारी मानने को राजी नहीं। सो हाईकोर्ट ने कहा- तिवारी संविधान से ऊपर नहीं। नाजायज औलाद को समाज में कैसा दंश झेलना पड़ता, सबको मालूम। संविधान के तहत रोहित को इस बात का हक कि वह अपने जैविक पिता की खोज करे। इसमें निजता की कोई बात ही नहीं। अब भले रोहित शेखर के हित में एन.डी. तिवारी का डीएनए हो जाए। पर सवाल, देशहित में अपनी समूची व्यवस्था का डीएनए क्यों न हो? भ्रष्टाचार और महंगाई चरम पर। फिर भी प्याज ने यह साफ कर दिया। अगर सरकार सही सोच व ईमानदारी से काम करे, तो क्या नहीं हो सकता।
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23/12/2010
Thursday, December 23, 2010
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