Friday, April 1, 2011

शिक्षा के हक को नहीं धन, पर क्रिकेट को लूट की छूट

क्या दुआएं, क्या यज्ञ, क्या हवन, क्या नमाज और क्या गंगा आरती। टोटकेबाजी की तो पूछो मत। एक मॉडल तो नंगई पर उतारू। सो कुल मिलाकर क्रिकेट वल्र्ड कप का नशा अब पागलपन में तब्दील हो गया। अपनी मनमोहन सरकार तो मोहाली सेमीफाइनल से ही ऐसी अभिभूत, मालदार आईसीसी को टेक्स छूट दे दी। पर बदले में आईसीसी ने अपनी औकात दिखा दी। भारत के टीवी चैनलों को फाइनल मैच की कवरेज से रोक दिया। टीवी चैनलों पर पाबंदी सिर्फ मैच ही नहीं, प्रेस कांफ्रेंस और नैट प्रेक्टिस तक लागू होगी। सो शुक्रवार को आईसीसी के खिलाफ मीडिया ने बिगुल फूंका। तो आईसीसी पर मेहरबान अपनी सरकार भी लपेटे में आ गई। बीजेपी ने सीधे आईसीसी के मुखिया शरद पवार से जवाब मांगा। कपिल देव ने भी आलोचना करते हुए सवाल उठाया- इतने अहम मैच की कवरेज से मीडिया को दूर कैसे रखा जा सकता? पर आईसीसी हो या बीसीसीआई या शरद पवार। तीनों के लिए सिर्फ पैसे की अहमियत, बाकी जाएं भाड़ में। जिन चैनलों को प्रसारण का अधिकार मिला हुआ, सिर्फ उनका फायदा बढ़ाने के लिए आईसीसी ने यह कदम उठाया। पर जब भारत में हो रहे मैच की कवरेज से भारतीय मीडिया को वंचित रखा जा रहा। यानी भारत सरकार से छूट भी ले रही और भारतीय इलैक्ट्रॉनिक मीडिया को आंखें भी दिखा रही। वह भी तब, जब अपने शरद पवार आईसीसी के प्रेसीडेंट। पर जब दिन भर आईसीसी और शरद पवार की खिंचाई हुई। बीजेपी-कांग्रेस ने मोर्चेबंदी कर मैच से पहले मामला सुलझाने की मांग की। तो आखिरकार देर से ही सही, आईसीसी दुरुस्त आई। शुक्रवार की देर शाम मीडिया कवरेज से बैन हट गया। यों शरद पवार से भला और उम्मीद भी क्या। जिन ने बतौर कृषि मंत्री आम जनता का बेड़ गर्क कर दिया। जब भी मुंह खोला, महंगाई बढ़ा दी। पर जब सरकारी खजाने को लूटना हो, तो पवार चुप रहना मुनासिब समझते। गुरुवार की केबिनेट मीटिंग में यही हुआ। जब आईसीसी वल्र्ड कप को टेक्स छूट का मामला आया। तो पवार चुपचाप बैठे रहे। पर पवार के खास-उल-खास और एनसीपी कोटे से मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने केबिनेट में टेक्स छूट की पैरवी की। अपने मनमोहन भी शायद मन बना चुके थे। पर खानापूर्ति के लिए खेल मंत्री अजय माकन से राय मांगी। तो माकन ने टेक्स छूट की मुखालफत की। माकन ने दलील दी, ऐसे में अन्य खेल संगठन भी सरकार से छूट की मांग करेंगे। क्रिकेट टूर्नामेंट को छूट देने का कोई तुक नहीं बनता। वैसे भी आईसीसी कोई सामाजिक संस्था नहीं, अलबत्ता पेशेवर और मुनाफा कमाने के लिए बनाई गई संस्था। माकन ने अपनी सरकार को आईना भी दिखाया। जब दलील दी- खेल मंत्रालय का बजट कम किया गया। तो ऐसे में क्रिकेट को टेक्स छूट क्यों? अब जरा वल्र्ड कप 2011 के आयोजन से आमदनी, खर्च और भारत सरकार की ओर से मिलने वाली टेक्स छूट को देखो। इस वल्र्ड कप से आईसीसी को कुल 1,476 करोड़ रुपए की आमदनी होगी। पर इस पूरे टूर्नामेंट का खर्चा महज 571 करोड़ रुपए होने की संभावना। यानी कुल 905 करोड़ की अतिरिक्त आमदनी आईसीसी को होने जा रही। फिर भी अपनी सरकार जो छूट दे रही, उसका आंकड़ा करीबन 45 करोड़ रुपया बन रहा। सो केबिनेट मीटिंग में अजय माकन के साथ-साथ अंबिका सोनी, कुमारी शैलजा और अन्य मंत्रियों ने भी टेक्स छूट का विरोध किया। केबिनेट मीटिंग में पवार टेक्स छूट के विरोधियों को हैरानगी से देखते रहे। पर आखिर में फैसला आईसीसी के फेवर में गया। सो अब सवाल- पवार ने इस केबिनेट मीटिंग में शिरकत क्यों की। जबकि वह खुद आईसीसी के मुखिया भी। ऐसे में नीयत पर सवाल उठना लाजिमी। सो अब सवाल पवार से- क्या यह मुफ्तखोरी नहीं? जब सुप्रीम कोर्ट ने सड़ रहे अनाज को बरबादी से बचाने के लिए गरीबों में बांटने का आदेश दिया। तो पवार ने मुफ्तखोरी की आदत को बढ़ावा देने वाला बताया था। अपने मनमोहन ने कार्यपालिका के अधिकार में दखल बताया था। पर अब कोई पूछे- 905 करोड़ का सीधा मुनाफा कमाने वाली संस्था को 45 करोड़ की टेक्स छूट क्यों? किसी आम नागरिक की सालाना आमदनी आयकर छूट की सीमा से महज हजार रुपए भी आगे बढ़ जाए, तो दस फीसदी टेक्स चुकाना पड़ता। शुक्रवार को जब टेक्स छूट के मामले पर देश में बवाल मचा। तो संयोग देखिए, आज के दिन यानी पहली अप्रैल 2010 को राइट टू एजूकेशन का कानून देश में लागू हुआ था। पर यूपी, बिहार समेत कई राज्यों, यहां तक कि राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने भी केंद्र-राज्य के खर्च अनुपात को 85:15 करने की मांग की थी। पर मनमोहन सरकार ने किसी की नहीं सुनी। पर क्रिकेट के लिए सबकी सुन रहे। किसी ने सच ही कहा है- गरीबों को देने में दर्द होता है, अमीरों को देने में खुशी। अपनी सरकार को अब क्या कहें। पर आईसीसी भी मानो शर्म का परदा उतार चुकी। महज 45 करोड़ की छूट के लिए भारत सरकार के सामने गिड़गिड़ाई। केबिनेट मीटिंग में पवार ने प्रफुल्ल पटेल को एक बार भी नहीं रोका। हद तो तब पार हो गई, जब विश्व कप ट्राफी को कस्टम ड्यूटी से बचाने के लिए आईसीसी ने कमर्शियल वैल्यू जीरो बता दी। पर कस्टम विभाग ने ट्राफी को रोक आकलन करवाया। तो साठ लाख कीमत आंकी गई। सुनते हैं, कस्टम विभाग ने 22 लाख की ड्यूटी लगा दी।
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01/04/2011



1 comment:

  1. दाल में कुछ काला नहीं पूरी दाल काली है। किस-किस की बात करेंगे। हर तरफ लूट है। होड़ इस बात की लगी है कि कौन आगे निकल पाता है।
    आपने बिल्कुल सच कहा...जब कोर्ट ने अनाज गरीबों में बांटने के लिए कहा था तो बेशर्म कृषि मंत्री ने बेशर्म बयान देकर ये जता दिया था कि उनकी नज़र में जनता का क्या मोल है।

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