Friday, November 13, 2009

हेडली पर यूएस के रुख से ठगी रह गई अपनी सरकार

इंडिया गेट से
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हेडली पर यूएस के रुख से
ठगी रह गई अपनी सरकार
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 संतोष कुमार
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डेविड हेडली के मंसूबों के खुलासे ने फिर सवाल उठा दिया। आतंकवाद के खिलाफ अपनी तैयारी कितनी मुकम्मल। हाल में जनरल दीपक कपूर ने ताल ठोककर कहा था- '26/11 को मुंबई पर हमला आखिरी आतंकी वारदात। जैसे 9/11 के बाद अमेरिका ने कोई हमला नहीं होने दिया। इंडोनेशिया ने बाली विस्फोट के बाद दूसरा वाकया न होने दिया। वैसी ही अब हमारी तैयारी।' गुरुवार को अपने पी. चिदंबरम ने भी करीब-करीब यही दोहराया। भले 26/11 के बाद अपना सुरक्षा तंत्र चुस्त-दुरुस्त हुआ। पर जब तक सरकार में बैठे राजनीतिक आकाओं में कूटनीतिक साहस न हो। तो सुरक्षा तंत्र क्या बिगाड़ लेगा? डेविड हेडली का ताजा किस्सा तो यही बयां कर रहा। अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने हेडली को गिरफ्तार किया। तो लश्कर-ए-तोइबा से सांठगांठ कर अमेरिका व भारत में हमलों की साजिश का खुलासा हुआ। हेडली के भारत आने-जाने की रपट एफबीआई ने दी। तो अपनी सुरक्षा एजेंसी हेडली के फुट प्रिंट्स के पीछे-पीछे भाग रही। ताकि कोई सुराग मिल सके। हेडली 2006 से 2008 के बीच भारत आता-जाता रहा। अहमदाबाद, लखनऊ, मुंबई, आगरा, दिल्ली के होटलों में रुका। पर न अपने सुरक्षा बलों को भनक लगी। न हमलों के बाद कोई सुराग ढूंढ पाई। अब किस-किस साजिश में हेडली का हाथ। इसके पुख्ता सबूत आने बाकी। पर दिल्ली धमाके से लेकर 26/11 तक में हेडली का नाम आ रहा। खुलासे में किसी राहुल का नाम आया। तो मनमोहन सरकार सकते में आ गई। अंदेशा हुआ, कहीं राहुल बाबा का नाम तो नहीं। कहीं राहुल के खिलाफ कोई साजिश तो नहीं। सो जांच ने फौरन रफ्तार पकड़ ली। तब जाकर शुक्रवार को खुलासा हुआ। राहुल भट्टï से मिला था डेविड हेडली। जब मुंबई आया, तो वर्जिश को लेकर राहुल भट्टï से मुलाकात हुई। राहुल भट्टï नामचीन फिल्म डायरेक्टर महेश भट्टï के बेटे। जो पेशे से जिम इंस्ट्रक्टर। सो राहुल ने खुद पुलिस को सारी कहानी बताई। पर राहुल नाम की गफलत में सरकार ने फौरन आईबी-रॉ की एक टीम अमेरिका भेज दी। ताकि हेडली से पूछताछ कर जांच को अंजाम तक पहुंचाया जा सके। पर आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई की पोल एक बार फिर खुल गई। अमेरिका की जुबान और नीयत में सात समुंदर का फासला। सो भारत के खिलाफ साजिश रचने वाले डेविड हेडली के बारे में रपट तो दी। पर भारतीय जांच टीम को डेविड से पूछताछ की इजाजत नहीं दी। पूछताछ की बात तो छोडि़ए। एफबीआई ने अमेरिकी मूल के गिरफ्तार आतंकी डेविड हेडली उर्फ दाऊद गिलानी और तहव्वुर राना का चेहरा तक नहीं देखने दिया। अब जरा अमेरिकी नीयत का फर्क आप खुद देख लो। जब 26/11 को मुंबई में हमला हुआ। मरने वालों में कई अमेरिकी नागरिक भी। सो अपनी जांच एजेंसियों ने कोई हील-हुज्जत नहीं की। अलबत्ता अजमल आमिर कसाब को एफबीआई के हवाले कर अलग से पूछताछ करने दी। सो अमेरिका की दोहरी नीति कब तक छिपी रहेगी। अब अपनी जांच एजेंसी और सरकार सिर्फ एफबीआई से मिलने वाली रिपोर्ट पर ही निर्भर। पर डेविड हेडली तो अपने मंसूबों को अंजाम देकर भारत से निकल चुका। सो जब तक अपनी एजेंसी पूछताछ न कर ले। अंधेरे में हाथ-पांव मारने के सिवा कोई चारा नहीं। अपनी हालत तो ऐसी, जैसे सांप के निकल जाने के बाद लकीर पर लाठी पीट रहे। यानी भारत में तबाही मचाने वाले आतंकियों से पूछताछ की खातिर भी अब अमेरिका की मुंहतकी की नौबत। अमेरिका भी यही चाह रहा। ताकि दुनिया की आंखों में धूल झोंक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का ढिंढोरा पीट सके। तो दूसरी तरफ पाक और चीन को शह देकर दक्षिण एशिया में दबदबा बनाए रखने की रणनीति। तभी तो 26/11 के हमले के बाद भले कूटनीतिक दबाव का असर दिखा। पर अब तो पाक ढीठ होकर पलटवार कर रहा। चीन से आधुनिक लड़ाकू विमान मिल रहे। अमेरिका से अरबों-खरबों की मदद। पाक में तालिबानी तांडव मचा हुआ। तो इसी नाम पर अमेरिकी सहायता मिल रही। दूसरी तरफ चीन भारत में नक्सली आतंकवाद फैलाने की तैयारी कर चुका। सो नक्सली सरकार से बातचीत की पेशकश को ठुकरा रहे। सरकार के खिलाफ जंग का एलान। सो चुनौती घरेलू हो या कूटनीतिक। सरकार में निपटने का कितना दमखम। अमेरिका ने भारत की जांच टीम को बैरंग लौटा दिया। पर मनमोहन सरकार चूं तक नहीं कर सकी। आखिर आतंकवाद के खिलाफ यह कैसी वैश्विक जंग? अगर अपनी सरकार सख्ती के साथ-साथ शक्ति की भाषा भी अपनाए। तो दोहरी नीति अपनाने वाले बेनकाब हो सकें। पर अपनी सरकार ने तो फिलहाल वैसा साहस नहीं दिखाया। अब हेडली के प्रत्यर्पण की कोशिश करेगी। सो अपनी नेशनल इनवेस्टीगेटिव एजेंसी ने हेडली-राना के खिलाफ केस दर्ज कर लिया। अब अंधेरे में हाथ-पांव मार सबूत जुटाएगी। फिर अमेरिका से प्रत्यर्पण की मांग होगी। पर तब तक एफबीआई हेडली-राना को निचोड़ चुकी होगी।
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13/11.2009