Monday, June 21, 2010

एंडरसन सिर्फ गुनहगार, अपनी व्यवस्था तो पापी

भोपाल त्रासदी पर जीओएम ने पीएम को रपट सौंप दी। अब शुक्रवार को केबिनेट राहत का पिटारा खोलेगी। पर राहत से पहले बात बीजेपी पर आई आफत की। शनि अमावस के दिन 12 जून को पटना में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन पर ऐसी साढ़े साती पड़ी। दोनों का हाल मियां-बीवी के झगड़े जैसा हो गया। जहां तुम बिन रहा भी न जाए, तुम संग सहा भी न जाए वाली स्थिति। सो गठबंधन का संकट दूर होने का नाम नहीं ले रहा। अब तो संकट दूर वही कर सकते, जिन ने संकट पैदा किया। अगर बीजेपी ने नीतिश कुमार की शर्त मान ली। पहले की तरह नरेंद्र मोदी को बिहार से दूर रखने का वादा किया। तो गठबंधन शायद बचा रहे। नीतिश कोसी बाढ़ राहत का पांच करोड़ गुजरात को लौटा बहुत आगे निकल चुके। सो मोदी से ठनी रार पर नीतिश ने समझौता कर लिया। तो बिहार में नीतिश की हालत वही होगी, जो यूपी में कल्याण सिंह को लाने से मुलायम की हुई। सो दोनों की रणनीति सिर्फ अपना-अपना वोट बैंक साधने की। फिलहाल सवर्ण वोट नीतिश सरकार से नाराज। पर गठबंधन टूटा, तो सवर्ण वोट सीधे कांग्रेस की झोली में जाएगा। बरकरार रहा, तो सवर्णों के लिए बीजेपी-जदयू के सिवा कोई विकल्प नहीं। नीतिश की भी मजबूरी, गठबंधन तोड़ कांग्रेस से हाथ नहीं मिला सकते। वैसे भी कांग्रेस का इतिहास रहा, उसने जिससे गठजोड़ किया, उसके लिए भस्मासुर साबित हुई। लालू, पासवान, मुलायम के उदाहरण पुराने नहीं। पर बीजेपी की बात दूसरी। उसने जिससे गठजोड़ किया, वह कंध पर ही बैठ गया। झारखंड हो या मायावती, देवगौड़ा हो या चौटाला-बंसीलाल। कभी बीजेपी ने अपनी ओर से गठबंधन नहीं तोड़ा। सो जैसी नीतिश की मजबूरी, वैसी ही बीजेपी की भी। अगर जदयू साथ छोड़ कांग्रेस से मिल गया। तो बीजेपी फिर राजनीतिक अछूत हो जाएगी। अभी जेडीयू जैसे दल की वजह से सांप्रदायिकता की चादर मटमैली हो चुकी। सो नीतिश को अहंकारी, अहसानफरामोश कहने के बाद भी बीजेपी गठबंधन तोडऩे का साहस नहीं जुटा पा रही। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष सीपी ठाकुर आडवाणी से मिले। तो आडवाणी ने गडकरी से मिलने को कह दिया। सो आलाकमान की नब्ज भांप ठाकुर ने भी कह दिया, पखवाड़ा बीतने तक फैसला हो जाएगा। उधर शरद यादव भी गठबंधन न टूटने की दलील दे रहे। तो नीतिश कुमार ने कह दिया- 'टेंशन की बात नहीं, आप लोग रिलेक्स रहिए।' यानी नीतिश ने अपनी तैयारी पूरी कर ली। अब फैसला बीजेपी को करना। सो बीजेपी की स्थिति सांप-छछूंदर वाली हो गई। बीजेपी का स्थानीय नेतृत्व गठबंधन तोडऩे पर जोर दे रहा। तो केंद्रीय नेतृत्व जमीनी हकीकत से वाकिफ। सचमुच गठबंधन टूटा, तो विकास की ओर बढ़ा बिहार फिर ठहर जाएगा। सो बीजेपी के केंद्रीय नेता आज-कल यही गुनगुना रहे- 'तेरे बिन मैं कुछ भी नहीं, मेरे बिन तू कुछ भी नहीं। तेरे सारे आंसू मेरे, मेरी सारी खुशियां तेरी..। यानी गठबंधन नहीं टूटेगा, नूरी-कुश्ती चलती रहेगी। पर बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बन कांग्रेस नाचने लगी। चैक लौटाने को नीतिश का गलत कदम बताया। पर आलोचना बीजेपी की कर रही। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने उत्साह में यहां तक कह दिया- 'अब देश में द्विध्रुवीय राजनीति की धारणा नेस्तनाबूद हो गई। सिर्फ कांग्रेस ही राष्ट्रीय दल, बाकी सिर्फ प्रासंगिक।'  यों दिल बहलाने को कांग्रेस-ए-खयाल अच्छा है। पर उन ने कट मोशन हो या भोपाल त्रासदी, बीजेपी के विरोध को बौखलाहट करार दिया। यों बौखलाहट में कौन, कांग्रेस बखूबी जानती। आखिर 26 साल पुराना पाप का घड़ा फूटा, तो कांग्रेस को गैस त्रासदी के शिकार लोग भी याद आ गए। अभी तक वहां पड़ा रासायनिक कचरा भी दिखने लगा। भोपाल त्रासदी के बाद कांग्रेस ने पीडि़तों के साथ कैसी त्रासदी की, सबका पर्दाफाश हो चुका। अब चेहरा बचाने को जीओएम बनाया। सोमवार को जीओएम की सिफारिश भी हो गई। तो 26 साल बाद पीडि़त परिवारों को दस लाख देना तय हुआ। अपंगों को पांच लाख मिलेंगे, घायलों को तीन लाख। पर जरा सोचिए, 26 साल में कितने खर्च कर चुके होंगे पीडि़त। मनीष तिवारी को गर्व, कांग्रेस ही एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी। पर क्या ऐसी भूमिका होती है राष्ट्रीय पार्टी की? भोपाल के पीडि़त 26 साल से लगातार इसी मांग के साथ प्रदर्शन कर रहे थे कि मुआवजा मिले, पीडि़तों का इलाज हो और रासायनिक कचरा हटाया जाए। पर दंभ भरने वाली राष्ट्रीय पार्टी ने क्या किया? जब यह हादसा हुआ था, तब कांग्रेस साढ़े चार सौ सीटों के साथ केंद्र की सत्ता में थी। राज्य में भी कांग्रेस का एकछत्र राज था। पर तब तो कांग्रेस ने कुछ नहीं किया। अब 26 साल बाद कोर्ट ने लचर कानूनी दायरे में सजा दी। तो लगा, जैसा सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, अपनी समूची व्यवस्था का जमीर जाग उठा। पर जीओएम अभी भी एंडरसन को लेकर खामोश। एंडरसन पर फिर वही पुराना राग, प्रत्यर्पण की कोशिश होगी। सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन डालेंगे। पर एंडरसन का क्या होगा, यह कांग्रेस भी जानती और आपको भी यहीं पर बता चुके। सो कांग्रेस हो या अपनी व्यवस्था के बाकी पहरुए, अब सिर्फ लफ्फाजी हो रही। राहत पैकेज के नाम पर एक बार फिर लूट मचेगी। सो भोपाल त्रासदी का दोषी अगर वारेन एंडरसन, तो त्रासदी के बाद के 26 साल की बदहाली के गुनहगार हम और आप। मीडिया समेत लोकतंत्र के सभी स्तंभ, जो गाहे-ब-गाहे चीख-चीख कर खुद की ईमानदारी का ढोल पीटते। असल में सबने मानवता के साथ पाप किया। लोक-लिहाज इन सभी स्तंभों के लिए तो सिर्फ कहने की बात। बाकी भोपाल अपनी व्यथा खुद कह रहा।
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21/06/2010