Wednesday, September 8, 2010

कॉमनवेल्थ का अब तो सचमुच ‘राम’ ही राखा

यों तो दिल्ली के ऊपर का आकाश अब नीला नहीं रहा। काले-घने बादलों ने ऐसा डेरा डाल रखा, शीला दीक्षित की पुकार इंद्र तक नहीं पहुंच पा रही। रोज सुबह उठते ही अर्जी लगातीं, हे इंद्र उतना ही बरसो, जितनी हमारी जरूरत। पर इंद्र पुकार नहीं सुन रहे। सो अब सरकार ने ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। दिल्ली की सडक़ों पर नीली पट्टियां बना डालीं। ताकि इंद्र देव भ्रमित हो जाएं। कुदरत के बनाए इनसान को नीली पट्टी का खौफ दिखाकर परेशान करना शुरू कर दिया। सो बुधवार को दिल्ली और आसपास के इलाके मानो ठहर गए। हर तरफ जाम और रेंगती हुई गाडिय़ां नजर आईं। कोई गलती से नीली पट्टी वाली लेन में घुसा, तो हाथ से गाड़ी भी छूटी, जेब भी ढीली हुई। कॉमनवेल्थ गेम्स में आने वाले मेहमानों के लिए पुलिस-प्रशासन कसरत कर रहे। भले आम लोगों को परेशानियों से दो-चार होना पड़े। यों ट्रेफिक सेंस सिखाना गलत नहीं। पर सिर्फ कॉमनवेल्थ के नाम पर लोगों को कष्ट देना कहां तक उचित। सरकार अगर आखिरी वक्त पर कॉमनवेल्थ के लिए मारामारी न करती, शुरू से ही जिम्मेदारी निभाई होती। तो आज दिल्ली समस्याओं की नगरी न होती। हर जगह मलबा जमा हुआ। दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस में कई बैंक पखवाड़े भर से काम नहीं कर रहे। कॉमनवेल्थ की तैयारियों के नाम पर कनॉट प्लेस को उजाड़ तो दिया। पर दुरुस्त करने में देर लग रही। जगह-जगह केबल कटे हुए। सो इंटरनेट काम नहीं कर रहा। कई दफ्तर ऐसे, जहां बिजली की सप्लाई आठ से दस घंटे ठप हो रही। ऊपर से बारिश ने व्यवस्था की पोल खोल रखी। ठहरे हुए पानी में मच्छर पनप चुके। सो डेंगू, मलेरिया का खौफ विदेश से आने वाले खिलाडिय़ों तक पहुंच चुका। खिलाडिय़ों के परिवारों ने तो आने से मना करना शुरू कर दिया। सो कहीं नाम खराब न हो, विदेशी मेहमानों के ठहरने की जगहों पर सुबह से लेकर शाम तक चार-छह बार छिडक़ाव हो रहे। यों अभी उन जगहों पर कोई इनसान नहीं। पर जहां इनसान रह रहे, वहां डेंगू, मलेरिया विकराल रूप ले चुके। लोग मर रहे, फिर भी फिक्र नहीं। दिल्ली के सरकारी अस्पतालों का हाल रोज सुर्खी बन रहा। कहीं गरीब बच्चे के शरीर से बदबू की दलील देकर सरकारी डाक्टर बिना इलाज के भगा रहे। तो कहीं सडक़ों पर बच्चा जनने को मजबूर हो रहीं महिलाएं। अब तो अपने वह होनहार खिलाड़ी भी डेंगू-मलेरिया की चपेट में, जिनसे देश को मैडल की आस। सो कॉमनवेल्थ भले एक आयोजन, देश की साख का सवाल। पर इसमें कोई शक नहीं कि अपनी व्यवस्था की अकर्मण्यता साबित हो गई। साठ साल में देश के बाकी हिस्सों को तो छोडि़ए, राजधानी दिल्ली का ऐसा हाल। तो व्यवस्था पर आम आदमी कैसे एतबार करे। आखिर कब तक आम लोगों को परेशान किया जाएगा? सनद रहे, सो याद दिला दें। जब पिछले साल अक्टूबर में कॉमनवेल्थ गेम्स फैडरेशन के अध्यक्ष माइक फेनेल ने मेजबानी छीनने की चेतावनी दी। तो अपना समूचा तंत्र हिल गया था। फिर आठ अक्टूबर 2009 को 71 देशों के डेलीगेट्स ने तैयारियों का जायजा लिया। तो सुबह के आठ बजे से शाम से सात बजे तक दिल्ली के सभी अहम रोड सील कर दिए गए। बाकायदा इश्तिहार जारी कर लोगों को उन रोड से न गुजरने की हिदायत दे दी गई थी। पर सवाल, ऐसा कब तक होगा कि अपनी नाकामी को छुपाने के लिए जनता को परेशान करेगी सरकार। पर उस घटना को साल भर बीत चुका। फिर भी नतीजा वही ढाक के तीन पात। सो तब यहीं पर लिखा था- क्यों ना दिल्ली वालों को बाड़ में डाल दें। सचमुच जब व्यवस्था के निकम्मे संचालक धौंस जमा लोगों को एक ओर धकेल रहे। तो यह कोई बाड़ से कम नहीं। लोकतंत्र में दिखावे की खातिर अपनी ही जनता पर चाबुक क्यों? क्या इसे ही विकास कहेंगे? अपने राहुल गांधी कई बार बैकवर्ड इंडिया और शाइनिंग इंडिया की बात कर चुके। कांग्रेस को विकास का साथी बताया, तो विपक्ष को दुश्मन। पिछले साल आठ अक्टूबर को जब कॉमनवेल्थ फैडरेशन के डेलीगेट्स दिल्ली में तैयारियों का मुआइना कर रहे थे, तो अपने राहुल गांधी मुंबई के पनवेल में चुनावी सभा कर रहे थे। तो उन ने कहा था- सत्तर साल पहले देश में सभी गरीब थे, आज आधा देश तरक्की कर रहा। राहुल यह बात हाल में भी दोहरा चुके। तो सवाल, देश की बाकी गरीबी दूर करने के लिए क्या कांग्रेस को राज करने के लिए सत्तर साल और चाहिए? पर कॉमनवेल्थ की तैयारी ने बता दिया, देश की राजधानी का कितना विकास हुआ। अब सचमुच एक ही तरीका बचा, पी. चिदंबरम के फार्मूले पर चाबुक चला दिल्ली वालों को सुधारो। वरना टिकट वाले दर्शकों और खिलाडिय़ों को छोडक़र बाकी दिल्ली वालों को नजरबंद कर दो। फिर भी कोई खतरा नजर आए, तो दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर तेजेंद्र खन्ना की ओर से कुछ साल पहले मजाक में कही गई बात को गंभीरता से ले लो। खन्ना से ट्रेफिक समस्या पर सवाल हुए। पूछा गया- क्या दिल्ली स्वर्ग बन जाएगी? तो उन ने मजाक में कहा था- दिल्ली तो तभी स्वर्ग बनेगी, जब सभी स्वर्गवासी हो जाएं। सच भी सही, कॉमनवेल्थ के नाम पर दिल्ली को स्वर्ग बनाने का दावा था। पर अब हालात ऐसे, कहीं ऐसा न हो, कॉमनवेल्थ गेम ही स्वर्गवासी हो जाएं। आयोजन समिति ने साढ़े सात सौ करोड़ का बीमा करा यही संकेत दिया। अब 24 सितंबर को अयोध्या की विवादित जमीन पर मालिकाना हक का फैसला आ रहा। कहीं इतिहास ने खुद को दोहराया। तो कॉमनवेल्थ का ‘राम’ ही राखा। शीला-कलमाड़ी ने तो वैसे ही राम भरोसे छोड़ रखा।
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08/09/2010