Tuesday, April 12, 2011

अन्ना लोकपाल के पीछे, तो नेता अन्ना के पीछे

एक कहावत है- ‘नेता, सांप, .., ऊंट और भैंसा अपनी चोट का बदला जरूर लेते हैं।’ सो अन्ना के वार से चोटिल नेताओं ने मुहिम छेड़ दी। येन-केन-प्रकारेण अन्ना हजारे को बदनाम करने की कोशिश होने लगी। मंगलवार को कांग्रेस नए शिगूफे के साथ मैदान में उतरी। इशारों में ही सवाल उठाया- धरना-प्रदर्शन-अनशन करने वाले एनजीओ को टेटं लगाने, माइक सिस्टम और अन्य बंदोबस्त के लिए फंड कहां से मिलते, इसकी भी जांच हो। अगर अन्ना राजनीति में ट्रांसपेरेंसी की पैरवी कर रहे, तो एनजीओ को इस काम के लिए फंड कौन देता है, यह भी खुलासा हो। यानी अन्ना के पांच दिन के अनशन में हुए खर्च का हिसाब मांग रही कांग्रेस। अब राजनीति की बेहयाई के बारे में क्या कहें। मनमोहन सरकार ने वल्र्ड कप क्रिकेट से हुई बेतहाशा आमदनी में भी आईसीसी को करीब 45 करोड़ रुपए की टेक्स छूट दी। तो कांग्रेस ने कोई सवाल नहीं उठाया। पर अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन किया, तो जंतर-मंतर पर तैयार हुए मंच और टेंट का खर्चा कांग्रेसियों की आंखों में खटक रहा। अब तो कांग्रेसी ही नहीं, करीब-करीब सभी राजनीतिक दल अन्ना की हर बात में नुक्ताचीनी कर रहे। अन्ना ने गुजरात के विकास के लिए नरेंद्र मोदी की तारीफ की। तो बटला, 26/11, मालेगांव, अजमेर ब्लास्ट जैसे मामलों को सांप्रदायिक जामा पहनाने वाले कांग्रेसी राजा दिग्विजय सिंह ने अब अन्ना के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया। बोले- ‘मोदी की तारीफ करने वाले अन्ना गुजरात में आठ साल से खाली पड़े लोकायुक्त के पद को भरने के लिए उन पर दबाव क्यों नहीं डालते?’ यानी खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे। अन्ना ने नेताओं को भ्रष्ट क्या कहा। अब तो दिग्विजय के साथ-साथ आडवाणी भी एतराज जता रहे। दोनों का लब्बोलुवाब यही- सभी नेताओं को भ्रष्ट कहने का मतलब समूची राजनीतिक व्यवस्था को नकारना होगा। यों यह बात सोलह आने सही, सभी नेताओं को भ्रष्ट कहना उचित नहीं। पर राजनीति में ईमानदार नेता की हालत कैसी, प्रख्यात कवि सुदामा पांडे धूमिल की इन पंक्तियों से लगाया जा सकता। उन ने लिखा- ‘.. संसद तेली की वह घानी है, जिसमें आधा तेल है और आधा पानी है। और यदि यह सच नहीं है, तो यहां एक ईमानदार आदमी को अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है। जिसने सत्य कह दिया है, उसका बुरा हाल क्यों है?’ जो नेता अपने वक्त में ईमानदार रहा, उसका परिवार मुफलिसी में ही परलोक सिधार जाता। जो राज करने की नीति को समझ लेता, उसकी सात पुश्तें गरीबी की परिभाषा भी समझ नहीं पातीं। चुनाव में धन बल, बाहु बल इतना हावी हो चुका, कोई ईमानदार चुनाव लडऩे की सोच भी नहीं सकता। सो कांग्रेस ने मंगलवार को अन्ना और उनके समर्थकों को एक और चुनौती दी। कहा- ‘नेताओं को गाली मत दो। हिम्मत है, तो चुनाव लड़ो और जीतकर दिखाओ।’ यानी कांग्रेस चाह रही, अन्ना जैसे समाजसेवी को भी जैसे-तैसे अपनी जमात में शामिल कर लो। फिर न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। पर चुनाव की असलियत का ताजा किस्सा तमिलनाडु में दिख रहा। जहां अब तक करीब 50 करोड़ रुपए जब्त किए जा चुके। वोटरों को रिश्वत देने के 900 से अधिक मामले दर्ज हो गए। कहा तो यहां तक जा रहा- तमिलनाडु के बैंकों से पांच सौ और हजार रुपए के नोट गायब हो चुके। आम खाता धारक छुट्टों से ही काम चला रहे। पर नेता अपने गिरेबां में झांकना भूल चुके। किसी को भ्रष्टाचार नजर नहीं आता, तो किसी को महंगाई। जनता ने भ्रष्टाचार पर अपने गुस्से का इजहार क्या किया, नेताओं को तो दुकानदारी चौपट दिख रही। पर महंगाई की बात चली, तो कांग्रेस की एक और कलई खुल गई। अब तक महंगाई के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी को ढाल बनाती रही कांग्रेस। पर कृषि लागत एवं मूल्य आयोग, जो एमएसपी तय करने में अहम भूमिका निभाता। उसके चेयरमैन अशोक गुलाटी ने महंगाई के पीछे एमएसपी में बढ़ोतरी की दलील सिरे से खारिज कर दी। बाकायदा आंकड़े भी पेश किए। पर आम आदमी को बरगलाना तो नेताओं की फितरत बन चुकी। अब वही खेल भ्रष्टाचार के मामले में। अन्ना जनता की आवाज बन गए। तो अन्ना की छवि धूमिल करने के तमाम हथकंडे अपनाए जा रहे। रामविलास पासवान चार दिन बाद जागे। तो याद आया, ड्राफ्टिंग कमेटी में कोई दलित नहीं। पर अभी तो महज शुरुआत। ड्राफ्टिंग कमेटी की मीटिंग शुरू होगी। तो अन्ना से जले-भुने नेता अपनी भड़ास निकालने में कसर नहीं छोड़ेंगे। वैसे भी नेतागिरी का अहम फार्मूला- एक झूठ को सौ बार बोलो, सच हो जाएगा। सो पहले अन्ना के अनशन पर राष्ट्रीय बहस छेड़ी। अब अनशन के खर्च पर सवाल उठा रहे। अन्ना विरोधियों की जमात खड़ी की जा रही। जिनमें एक ने तो मंगलवार को अखबार के दफ्तरों में घूम-घूम कर परचा बांटा। बुधवार को दिल्ली में राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी जनशक्ति के बैनर तले कोई हेमंत पाटिल प्रेस कांफ्रेंस करेंगे। तो अन्ना के हिंद स्वराज ट्रस्ट की 89 एकड़ जमीन घोटाला, जन्म दिन पर दो लाख 20 हजार रुपए का ट्रस्ट को चूना लगाना, ऑडिट को छुपाना जैसे कई गंभीर आरोप लगाए। अब हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। अन्नागिरी से चोटिल नेताओं ने ठान लिया- बिल ड्राफ्ट होते-होते अन्ना की ईमानदारी पर इतने सवाल उठा दो, वह खुद कमेटी से बाहर हो जाएं।
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12/04/2011