Thursday, March 4, 2010

गांधी जी का जंतर, कांग्रेस का मंतर और प्रतापगढ़ की आह!

खाद्य पदार्थों की महंगाई दर 18 फीसदी के करीब पहुंच गई। पर कांग्रेस को आम आदमी के खाली पेट की नहीं, सरकारी खजाने की फिक्र। अब सोनिया गांधी ने भी पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतें जायज बता दीं। प्रणव दा के बजट को संतुलित बताया। अब कोई पूछे, सरकारी खजाना भरने को सिर्फ आम आदमी ही बोझ उठाए? देश के धनकुबेर क्या सिर्फ चुनावी चंदा देकर छूट पाते रहेंगे? बढ़ी कीमतों का तो धनकुबेरों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पर गरीब इस बोझ से और गरीब हो जाएगा। यानी अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ती जा रही। फिर भी कोई इस कदर रार ठान ले। तो आम आदमी हमेशा आम ही रहेगा। अब अगर आम आदमी को यों ही बोझ उठाना था। तो कांग्रेस वर्किंग कमेटी में प्रस्ताव पारित करा सोनिया गांधी ने बार-बार चिंता क्यों जताई? हर बार ढांढस क्यों बंधाया, महंगाई अब थमी, तब थमी। याद है, जनवरी के आखिर में केबिनेट कमेटी ऑन प्राइस की मीटिंग के बाद पवार ने महंगाई को भागने के लिए दस दिन का अल्टीमेटम दिया था। तब अपने राहुल बाबा ने इतराते हुए यही कहा था। महंगाई बस कुछ दिनों की मेहमान। पर महंगाई तो नहीं भागी, कांग्रेस और उसकी सरकार भागी-भागी फिर रही। अब तो यही लग रहा, कांग्रेस ने आम आदमी को बरगलाने का अनोखा फार्मूला अपना लिया। एक झूठ को सौ बार चीख-चीखकर बोलो, तो सफेद झूठ भी सच दिखेगा। कांग्रेस या सरकार ने महंगाई पर काबू के जितने दावे किए, सब सफेद झूठ साबित हुए। कांग्रेस हर बार यही कहती रही, सरकार ने कई कदम उठाए। पर कहते हैं ना, झूठ के पांव नहीं होते। सो झूठे कदम के जमीन पर निशान ही नहीं पड़े। अब सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग में सांसदों को संबोधित किया। तो सिर्फ प्रणव दा की बाजीगरी की ही तारीफ नहीं की। अलबत्ता शरद पवार की नीतियों का भी समर्थन किया। अब अगर पवार की महंगाई लाओ नीतियां इतनी रास आ रहीं। तो पिछले महीने ही कांग्रेस के गुणवान प्रवक्तागण पवार को कटघरे में क्यों खड़ा कर रहे थे। खुल्लमखुल्ला तो पवार को कई नसीहतें दीं। दबी जुबान में कांग्रेसियों ने बेसिर-पैर की खबरें भी खूब उड़ाईं। जैसे एक खबर थी- मनमोहन ने पवार को डांट पिलाई। नतीजे दो, वरना विभाग मुझे खुद संभालना होगा। अब सोचिए, क्या पवार ऐसी बात सुन सकते? अगर पवार को छोड़ दें, तो क्या मनमोहन इस लफ्ज में पवार को कह सकते? पर जनता को बरगलाना कांग्रेसियों का मकसद था। सो जो जी में आया, खबरें बांच दीं। पर याद है ना, तब कैसे पवार और एनसीपी ने पलटवार किया था। कांग्रेसी आस्तीनें चढ़ा पवार को महंगाई मंत्री साबित करने में जुट गए थे। तो पवार ने दो-टूक कह दिया था- 'महंगाई के लिए पूरी केबिनेट जिम्मेदार। प्रधानमंत्री की रहनुमाई में सारे फैसले लिए जाते।' यानी समझदार को इशारा ही काफी। सो तबसे कांग्रेसियों के सुर बदल गए। अब जबसे समूचा विपक्ष एकजुट हुआ, वैसे भी सत्तापक्ष की एकजुटता मजबूरी बन चुकी। सो अब महंगाई से देश का ध्यान शिफ्ट करने के लिए महिला आरक्षण बिल एजंडे में सबसे ऊपर आ गया। सोमवार को राज्यसभा में बिल आएगा। पर बिल के फच्चरबाज भी कम नहीं। कांग्रेस यही चाह रही, सदन में फच्चर फंसे। तो विपक्ष की यादवी त्रिमूर्ति आलोचना के राडार पर हो। पर कांग्रेस शायद भूल रही, भले सूरज डूबना भूल जाए। चांद निकलना, पर पेट की आग धधकना नहीं भूलती। लोगों को भूख शांत करने के लिए खाना चाहिए। जो कांग्रेस राज में इतना महंगा, कि आम आदमी की औकात से बाहर हो चुका। अब इस सच को कौन झुठलाएगा? सोनिया गांधी ने सीपीपी में कीमतें बढ़ाने की मजबूरी तो बता दीं। पर ठीक दूसरी तरफ यूपी के प्रतापगढ़ में स्थित कृपालु महाराज के आश्रम में मुफलिसी का तांडव दिखा। कृपालु महाराज तो महज धर्मगुरु। पर धन संपदा अकूत। वैसे भी धर्मगुरुओं की तादाद इतनी हो चुकी, किसको गुरु बनाएं, समझ नहीं आता। लोगों की आस्था 'कैश' करने में गुरुओं का कोई सानी नहीं। आस्था के नाम पर देश के धनकुबेर धर्मस्थलों और गुरुओं को करोड़ों का चैक थमा आते। ताकि गुरुओं की भी मौज, धनकुबेर भी टेक्स बचा लेते। हाल में दिल्ली से धरे गए इच्छाधारी संत और कर्नाटक के स्वामी नित्यानंद के स्कैंडल की चर्चा खूब हो रही। पर धर्मगुरुओं की बात फिर कभी। बात हो रही थी महंगाई और गरीबी की। कृपालु महाराज अपनी पत्नी के श्राद्ध कार्यक्रम में भंडारा दे रहे थे। एलान हो चुका था, थाली-लोटा और बीस रुपए मिलेंगे। सो गरीब बीवी-बच्चों समेत भंडारे में पहुंचे। पर भगदड़ ऐसी मची, 26 महिलाएं और 37 बच्चे मौत की नींद सो गए। ढाई सौ के करीब घायल। महिला बिल भले पास हो जाए। पर क्या इन 26 महिलाओं में कोई ऐसी महिला थी, जिसे इस बिल का फायदा मिलता? अब घटना का जिम्मेदार कौन, यह तो जांच की बात। पर देश के विकास का चेहरा यहीं से दिख रहा। कांग्रेस खुद को महात्मा गांधी के विचारों का ठेकेदार बताती। पर महात्मा ने एक जंतर दिया था। जब तुम्हें संदेह हो या तुम्हारा अहं हावी होने लगे, तो सबसे गरीब-कमजोर की शक्ल याद करो। दिल से पूछो, तुम्हारा कदम उस आदमी के लिए कितना उपयोगी होगा...। अब क्या सचमुच कांग्रेस गांधी की अनुयायी? यहां तो गरीब ही पिस रहा। धनकुबेर मंदी के दौर में भी दुगुनी-तिगुनी कमाई कर चुके। पर कांग्रेस ने खूंटा गाड़ दिया, आम आदमी पर बोझ सही।
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04/03/2010