Thursday, July 15, 2010

कांग्रेस सही, तो संघ पर क्यों नहीं लगा देती बैन?

तो जैसे को तैसा के चक्कर में राजनीति की ऐसी-तैसी हो रही। अब दिग्विजय सिंह ने नितिन गडकरी से पूछ लिया, बताओ तुम्हारा बाप कौन? यानी सीधे-सपाट शब्दों में कहें, तो संयत भाषा में नेता मां-बहन की गाली पर उतर आए। गडकरी ने दिग्विजय को औरंगजेब की औलाद कहा था। अफजल को कांग्रेस का दामाद बताया। तो दिग्गी के भाजपाई भाई लक्ष्मण को अखर गया। सो लक्ष्मण ने शर्त रखी, गडकरी माफी मांगें, वरना बीजेपी छोड़ देंगे। पर अब बीजेपी के लिए लक्ष्मण सिंह काम के नहीं रहे। सो गुरुवार को बीजेपी ने ही निकाल दिया। गडकरी की जुबान पूर्व सांसद पर भारी पड़ी। सिर्फ दिग्विजय नहीं, कांग्रेस महासचिव बी.के. हरिप्रसाद ने कर्नाटक विवाद पर बीजेपी से पूछ लिया- बताओ रेड्डी बंधु रिश्ते में तुम्हारे क्या? उत्तराखंड कांग्रेस ने तो उसी दिन पूछ लिया था- अगर अफजल को कांग्रेस का दामाद बता रहे, तो बताओ मसूद अजहर कौन थे? भले भाषाई अभद्रता दोनों तरफ से हो रही। पर अगर आप किसी को मां-बहन की गाली देंगे। तो बदले में लड्डू की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। सबको अपने-अपने वोट बैंक की फिक्र। सो गाली-गलौज में भी सब अपना फायदा देख रहे। कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने में जुटी। तो बीजेपी हिंदू वोट बैंक दुरुस्त करने में। उधर यूपी में मुलायम सिंह ने भी पासा फेंक दिया। कल्याण सिंह से बढ़ाई पींगों पर मुसलमानों से माफी मांग ली। पर वोट को मजहब में उलझाकर कब तक उल्लू सीधा करते रहेंगे राजनेता? दिग्विजय सिंह ने तो मानो ठान ली हो, संघ को बदनाम करके छोड़ेंगे। ताकि जनभावना सीधे संघ के खिलाफ बन जाए। पर दिग्विजय का भांडा तो सीबीआई ने ही फोड़ दिया। कांग्रेस मालेगांव, अजमेर जैसे कुछ ब्लास्ट के लिए सीधे संघ को जिम्मेदार ठहरा रही थी। मीडिया में लगातार खबरें आने लगीं। पर तेरह जुलाई को सीबीआई के डायरेक्टर अश्विनी कुमार ने खंडन कर दिया। कहा- अब तक की जांच में ना संघ की कोई भूमिका, ना ही संघ के किसी व्यक्ति से पूछताछ हुई। सो ना-ना करते गुरुवार को बीजेपी खुलकर संघ के बचाव में उतर आई। कांग्रेस को चेतावनी दी- संघ की राष्ट्रभक्ति पर सवाल उठाए, तो खामियाजा भुगतना होगा। पर हफ्ते भर से बीजेपी की हवाइयां उड़ी हुई थीं। संघ का मसला संघ के सिर ही छोड़ दिया था। पर जब मीडिया में खुलासा होने लगा, संघ के बड़े नेताओं पर उंगली उठने लगी। तो मामला राजनीतिक हो गया। कांग्रेसी दिग्विजय के बयानों ने बीजेपी को मजबूर कर दिया। अब तक बीजेपी-संघ यही दलील दे रही थीं, कानून अपना काम करेगा। दोषी कोई भी हो, बख्शा नहीं जाना चाहिए। पर अब संघ परिवार आक्रामक मूड में आ गया। सीबीआई डायरेक्टर के बयान के बाद दिल्ली में जुटे संघ के नेता मंथन कर रहे। माना जा रहा, अब संघ मीडिया में छपी खबरों के खिलाफ मानहानि का नोटिस देगा। यों संघ की बात सही, जब जांच एजेंसी ही सबूत से इनकार कर रही। तो दिग्विजय किस आधार पर आरोप लगा रहे। अगर दिग्विजय के पास अपने सबूत, तो क्यों नहीं सरकार को देते। केंद्र में आखिर कांग्रेस की ही सरकार। अगर सचमुच संघ परिवार हिंदू आतंकवाद का केंद्र। तो बैन क्यों नहीं लगवाते? आखिर मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर राजनीति क्यों? पर कांग्रेस और संघ का बैर कोई नया नहीं। संघ पर अब तक तीन बार बैन लग चुका। पहली बार महात्मा गांधी की हत्या के बाद चार फरवरी 1948 को। यों गांधीजी की हत्या सिर्फ बहाना थी। असल में तबके गृहमंत्री सरदार पटेल को कांग्रेस संगठन और देश की जनता का भरोसा हासिल था। पंडित नेहरू को डर था, कहीं संघ का सहयोग लेकर पटेल उन्हें सत्ता से न हटा दें। सो गांधीजी की हत्या के बहाने अपनी हसरत पूरी की। पर जांच में साफ हो गया, गांधीजी की हत्या में संघ की कोई भूमिका नहीं। फिर नेहरू ने संघ के पास संविधान न होने को आधार बनाया। पर संघ ने कुछ समय के बाद संविधान उपलब्ध करा दिया। सो जुलाई 1949 में बैन हटाना पड़ा। फिर इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के बाद चार जुलाई 1975 को संघ पर बैन लगाया। पर संघ में बढ़ती लोगों की आस्था की वजह से 1977 के चुनाव में इंदिरा की हार हुई और इस्तीफा देने से पहले 22 मार्च 1977 को उन ने बैन हटा दिया। फिर बाबरी विध्वंस के बाद दस दिसंबर 1992 को नरसिंह राव ने बैन लगाया। पर कोर्ट ने चार जून 1993 को बैन हटा दिया। यानी कांग्रेस ने जब-जब संघ पर बैन लगाया, आखिर मुंह की ही खानी पड़ी। सन 1948 हो या 1975 या फिर 1992, संघ पर सत्ता का कुठाराघात उसे और मजबूत कर गया। बीजेपी का सत्ता तक पहुंचना उसी का नतीजा। सो कांग्रेस अब येन-केन-प्रकारेण संघ को बदनाम करने में जुटी। हिंदू आतंकवाद का जुमला दिग्विजय सिंह के दिमाग की उपज। जिसे उन ने गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त इस्तेमाल किया। तो चुनाव आयोग की फटकार भी खानी पड़ी थी। पर साध्वी प्रज्ञा केस के बाद अजमेर ब्लास्ट मामले में देवेंद्र गुप्त की गिरफ्तारी ने दिग्विजय को फिर मौका दे दिया। गुरुवार को इंदौर में संघ व बीजेपी को हिंदू आतंकवाद की मदद करने वाला संगठन बताया। समझौता ब्लास्ट पर भी संघ को कटघरे में उतारा। अब सीबीआई को सच मानें या दिग्विजय को? दिग्विजय का एजंडा तो बटला से लेकर दंतेवाड़ा और भोपाल त्रासदी तक साफ हो चुका। पर अब दिग्विजय लाख चिल-पों करें, संघ को तो सीबीआई का सहारा मिल गया।
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15/07/2010