Monday, February 8, 2010

'इंडिया' तो जीता, पर 'हिंदुस्तान' हार गया

 संतोष कुमार
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छज बोले, सो बोले। छलनी भी बोलती, जिसमें हजारों छेद। चीन तो आंखें दिखा ही रहा था। अब पाक भी हेकड़ी दिखा रहा। भारत ने बातचीत की पेशकश क्या रख दी। अपने मुंह मियां मि_ïू होने लगे। मुंबई हमले के बाद भारत कूटनीतिक दबाव बनाने में सफल रहा। पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ऐसे दबे, कभी सूरत न दिखी। कभी-कभार रहमान मलिक भारत के दिए डोजियर पर चूं-चपड़ करते दिखे। अब महमूद कुरैशी वैसे ही उछल रहे। जैसे हलाल होने वाले बकरे को वापस बाड़े में डाल दिया हो। भारत ने सवा साल बाद पाक को सांस लेने का मौका दिया। तो पाक हुक्मरानों की पसली चलने लगी। महमूद कुरैशी इतवार को मुल्तान में सुल्तान बनने की कोशिश करते दिखे। आवाम के सामने चीखकर बोले- 'भारत हार गया। भारत ने पहले कहा था, मुंबई हमले के आरोपियों को सजा मिलने तक हमसे से बातचीत नहीं करेगा। अब तैयार हो गया। यह सब पाक की ताकत से संभव हुआ। हमने कभी अपना स्टैंड नहीं बदला, चाहे कश्मीर हो या मुंबई। इसी वजह से हमारी जीत हुई।'  एक चुटकुला बहुत पुराना। पर पाक के लिए मौजूं। एक व्यक्ति पत्नी और बच्चों के साथ स्कूटर पर जा रहा था। रास्ते में किसी से झड़प हो गई। तो सामने वाले व्यक्ति ने थप्पड़ जड़ दिया। अब वह व्यक्ति पत्नी-बच्चों के सामने पिटा। सो तिलमिला गया। फिर चुनौती दी- 'मुझे मारा, कोई बात नहीं। मेरी बीवी को मारकर दिखाओ, फिर बताता हूं।'  उस व्यक्ति ने उसकी बीवी को भी थप्पड़ मार दिया। फिर उसने यही फार्मूला अपने बच्चे के लिए कहा। और तीनों थप्पड़ खाकर चल दिए। घर जाकर बीवी ने पूछा- 'आपने तीनों को क्यों थप्पड़ मरवाया?'  व्यक्ति ने जवाब दिया- 'ताकि घर जाकर तुम मां-बेटे मेरा मजाक न उड़ा सको, मैं पिटकर आ गया।'  पाकिस्तान भारत से एकाध बार पिटा हो। तो कोई बात समझ में आए। चार बार ऐसा पिट चुका। पाक में घुसकर अपनी फौज ने जीवन-दान दिया। जनरल नियाजी का पूरी फौज के साथ आत्म-समर्पण शायद पाक भूल चुका। सो कुरैशी सिर चढ़कर बोल रहे। पर अपने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने 'रश्मि रथी' में बहुत खूब लिखा- '... क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो। उसे क्या, जो दंतहीन, विषहीन, विनीत-सरल हो।...' सो भारत ने खुद की ओर से पहल की। ताकि दुनिया को बता सके, भारत शांति चाहता। पर पाक की बचकानी कूटनीति देख लो। पिटा हुआ मोहरा अपने दड़बे में चीखकर शेर बनने की सोच रहा। कुरैशी भारत को हारा हुआ बता रहे। सो पाकिस्तान की नीयत फिर साफ हो गई। पाक ने कभी आरोपियों पर कार्रवाई नहीं की। चाहे संसद पर हमले का मामला हो, या 26/11 के मुंबई हमले का। हर बार पाक ने सबूत मांगे। फिर उन सबूतों में नुक्स निकाल दोषियों को कोर्ट से बरी करवा दिया। पाक की अदालतें भी स्वतंत्र नहीं। वैसे भी जब लोकतंत्र ही नहीं, तो फिर कोर्ट का क्या भरोसा। पाक अपने साठ साल में करीब पचास साल तो तानाशाही दौर से ही गुजरा। सैनिक हुक्मरानों ने समूची व्यवस्था को एक डंडे से हांका। परवेज मुशर्रफ के वक्त चीफ जस्टिस इफ्तिखार चौधरी समेत कई जजों की बर्खास्तगी ही तानाशाही शासन के ताबूत की आखिरी कील साबित हुई। पर राजनीति ने ऐसी करवट ली। कभी टेन परसेंट दलाल के नाम से मशहूर, जेल की सजा भुगत चुके आसिफ अली जरदारी पाक के राष्ट्रपति हो गए। सो पहले तो पाक अपना इतिहास ठीक करे। फिर कश्मीर के भूगोल की बात। यों भले पाक के विदेश मंत्री दिल बहलाने को शेखी बघार रहे। बातचीत की पेशकश को भारत की हार बता रहे। पर कश्मीर और मुंबई के बारे में कुरैशी ने जो कहा। आखिर उस पर मनमोहन सरकार की चुप्पी क्यों? कम से कम भारत को एतराज तो जताना चाहिए था। अगर वाकई पाक का स्टैंड नहीं बदला। तो हम बातचीत करने को बेताब क्यों? अपनी सरकारें भी ऐसा क्यों करतीं, जैसा कुरैशी कर रहे। अवाम का दिल जीतने के लिए एनडीए सरकार ने संसद पर हमले के बाद ऑपरेशन पराक्रम किया। सीमा पर फौजों का जमावड़ा बढ़ाया। फिर लौटकर बातचीत की मेज पर आ गए। वही मनमोहन सरकार भी कर रही। मुंबई हमले के बाद शुरुआती छह महीने ऐसे बयान दिए। मानो अब-तब युद्ध हुआ। पर अमेरिकी दबाव में पाक को न्योता देकर वहां के हुक्मरानों को भारत ने हीरो बना दिया। आखिर कब तक चूहे-बिल्ली का यह खेल चलता रहेगा? पाक की नीयत को समझने के लिए सरकार को कितना वक्त चाहिए? अब देश की विडंबना नहीं, तो क्या कहें। बीजेपी भी मनमोहन सरकार पर घुटने टेकने का आरोप लगा रही। तो उधर पाकिस्तान भी भारत को घुटने टेकने को मजबूर बता रहा। वाकई पाक ने दिखावे को भी ऐसा कुछ नहीं किया। जो मनमोहन सरकार बातचीत को उतावली हो। पर न्योता दिया जा चुका। भले अमेरिकी दबाव में ही। पाक भी अमेरिकी शह पा अपनी पीठ ठोक रहा। तो कांग्रेस भी क्या करे। सो सोमवार को कांग्रेस ने बातचीत की पेशकश को जायज ठहराया। अब तक पाक की कार्रवाई से कांग्रेस संतुष्टï। सो जब सत्ताधारी दल संतुष्टï हो। तो बाकी अवाम की फिक्र क्यों? सो कुरैशी की बदजुबानी दरकिनार कर दें। तो मुंबई-कश्मीर जैसे मुद्दे पर स्टैंड देख यही लग रहा। अमेरिकी दबाव में 'इंडिया'  तो जीत गया। पर 'हिंदुस्तान'  हार गया। अमेरिका तो इंडिया की आवाज बना। सो जनता का हिंदुस्तान क्या कर पाता?
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08/02/2010