Tuesday, May 11, 2010

दिल मिलें, न मिलें, मिलते रहेंगे भारत-पाक के हाथ

अमेरिका को भले पाक पर एतबार न हो। हिलेरी क्लिंटन तक को कहना पड़ गया- पाक को मालूम, कहां छुपा है लादेन। पर पाक के अधिकारी सही जानकारी नहीं दे रहे। अब भले मंगलवार को अमेरिकी प्रवक्ता ने पाक पर लगाए इल्जाम को नरम करने की कोशिश की। पर सच तो हिलेरी की जुबां से निकल चुका। आखिर पाक का ही कनेक्शन दुनिया की हर आतंकी घटना से क्यों जुड़ जाता। पर वही अमेरिका गाहे-ब-गाहे भारत को पाक से वार्ता की सलाह दे जाता। सो मुंबई हमले के गुनहगार कसाब को फांसी की सजा से पहले विदेश सचिव स्तर की बातचीत हो चुकी। अब मंगलवार को दोनों देशों के विदेश मंत्री करीब 25 मिनट तक फुनियाए। तो तय हुआ, फोन पर नहीं, आमने-सामने बतियाएंगे। जुलाई की 15 तारीख भी मुकर्रर हो गई। विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा इस्लामाबाद जाएंगे। तो अपने समकक्ष शाह महमूद कुरैशी से मिलेंगे। वही कुरैशी, जिन ने भारत के बातचीत के न्योते का पाकिस्तान में मजाक उड़ाया था। भारत को घुटना टेकने वाला बताया था। मुंबई हमले के बाद दोनों देशों की शांति वार्ता ठप हो चुकी थी। बाद में अमेरिकी दबाव में भारत ने आगे बढक़र हाथ बढ़ाया। तो कुरैशी ने चोरी और सीना जोरी दिखाते हुए पाक अवाम में हीरो बनने की कोशिश की। खम ठोककर कहा- देखो, जो भारत हमसे बात करने को तैयार नहीं था। आतंकवाद का आरोप मढ़ा। अब वही भारत हमसे कह रहा, आओ मिल-बैठकर बात करें। कुरैशी इतना तक कह गए। फिर भी भारत ने सचिव स्तरीय वार्ता शुरू की। अब सार्क देशों के गृह मंत्रियों की मीटिंग में 26 जून को पहले पी. चिदंबरम इस्लामाबाद जाएंगे। फिर 15 जुलाई को एस.एम. कृष्णा। पर सवाल उठना लाजिमी, आखिर पाक ने ऐसा क्या किया, जो बात आगे बढ़ रही? मुंबई हमले के दोषियों को पाक में क्या सजा मिली? किस आतंकवादी ढांचे को पाक ने नेस्तनाबूद किया? आखिर बातचीत का कोई तो आधार हो। वरना सिर्फ बात के लिए बात का क्या मतलब? अमेरिकी दबाव में कब तक भारत-पाक के बीच रस्म अदायगी वाली वार्ता होगी? शायद दोनों देशों को यह बखूबी मालूम, मजबूरी की इस वार्ता का कोई अर्थ नहीं। तभी तो कसाब को भारत की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। अपने चिदंबरम-कृष्णा-मोइली जैसे वरिष्ठ मंत्रियों ने इसे पाक के लिए सबक बताया। आतंक का निर्यात बंद करने की नसीहत दी। तो पाक बौखला गया। पाक प्रवक्ता ने उलटे नसीहत दी, भारतीय नेता जुबां पर संयम रखें। अब ऐसे पाक से कोई क्या उम्मीद करेगा। जब कसाब को मिली सजा पाक को नहीं पच रही। तो पाक में बैठे 26/11 के साजिशकर्ताओं को क्या सजा मिल पाएगी? पर निरर्थक नतीजे की उम्मीद में हम आगे क्यों बढ़ रहे? यह नेतृत्व की कमजोरी या मजबूरी या फिर दोनों? अंकल सैम को चुनौती देने वाली इंदिरा गांधी जैसी शख्सियत अब नहीं। मनमोहन सिंह अपनी दूसरी पारी में मजबूत होकर उभरे। पर अबके विपक्ष नहीं, टीम में शामिल सिपहसालार ही कमजोर कर रहे। मंत्रियों की बयानबाजी, आपसी भिड़ंत साल भर में ही परेशान कर चुकी। शशि थरूर के बाद अब जयराम रमेश तेवर दिखा रहे। पी. चिदंबरम वाली होम मिनिस्ट्री की नीति पर चीन जाकर सवाल उठा दिया। पीएम ने फटकार लगाई। तो चिट्ठी लिखकर सोनिया-मनमोहन से खेद जता दिया। पर मंगलवार को सवाल हुए, तो जयराम के तेवर में कोई कमी नहीं। प्रेस कांफ्रेंस में आए, तो तल्खी दिखाते हुए कह दिया- मैं यहां चीन में की गई टिप्पणी के संदर्भ में कुछ भी कहने नहीं आया हूं। पर सवालों की बौछार हुई। तो माफी या सफाई के सवाल को टाल गए। फिर पूछा गया, क्या कांग्रेस मुख्यालय जाएंगे? तो तल्खी भरे अंदाज में पलटकर पूछा, किसलिए? वैसे भी भारतीय मीडिया के सवाल जयराम को चुभ रहे होंगे। पर चीनी मीडिया के तो हीरो बन गए। चाइना डेली ने जयराम के बयान की तारीफ की। पर चाइना चालाकी दिखा गया। जयराम ने ब्रह्मपुत्र के पानी को मोडऩे के संदर्भ में टिप्पणी की थी। तो उसे खारिज कर दिया। यानी चीनी मीडिया ने जयराम का मीठा-मीठा घप, कड़वा-कड़वा थू कर दिया। फिर भी जयराम इतराएं। तो राम ही राखा। अब पड़ोसी देश के बारे में अपना मंत्री ही ऐसी टिप्पणी करने लगे। तो अपनी विदेश नीति दिग्भ्रमित होगी। चीन सीमा विवाद के बहाने लगातार तेवर दिखा रहा। तो दूसरी तरफ पाक आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा। सो मंगलवार को दोनों विदेश मंत्रियों की बातचीत हुई। तो बीजेपी ने सवाल उठाया। जब पाक मुंबई हमले के दोषियों पर कार्रवाई नहीं कर रहा। तो भारत वार्ता की प्रक्रिया को अपग्रेड क्यों कर रहा? पहले पाक छह जनवरी 2004 का वादा निभाए। फिर वार्ता हो। पर सरकार किसी की भी हो, यही होता। कारगिल के बाद एनडीए सरकार ने वार्ता की थी। संसद पर हमले के बाद ऑपरेशन पराक्रम हुआ, फिर पाक से वार्ता हुई। सो हमाम में सब एक जैसे। पर बीजेपी की बात चली। तो झारखंड का जिक्र जरूरी। झारखंड की राजनीति उलझती जा रही। पर मंगलवार को बीजेपी की मीटिंग अपग्रेड होकर सीएम के चयन तक पहुंच गई। अब फिर संसदीय बोर्ड बैठेगा। तब कोई फैसला होगा। पर हेमंत सोरेन ने फिर 50-50 की चाल चल दी। यानी जहां से चले थे, वहीं लौट आए। कटौती प्रस्ताव के अगले दिन बीजेपी ने समर्थन वापसी का फैसला किया। फिर सत्ता की रेवड़ी देख लार टपक गई। अब सुबह का भूला शाम को घर लौट आए, तो उसे भूला नहीं कहते। पर कोई चौदह दिन बाद भी न लौटे, तो....।
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11/05/2010