Wednesday, January 5, 2011

‘महंगाई टैक्स’ से लुटी प्रजा, ‘राजाओं’ का हुआ ‘विकास’!

इधर भ्रष्टाचार का घड़ा बोफोर्स से ओवर-फ्लो हुआ। उधर स्पेक्ट्रम घोटाले ने करुणानिधि के घर में कोहराम मचा दिया। करुणा के बड़े बेटे एम.के. अझागिरी ने बुधवार को केबिनेट मंत्री समेत पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। ए. राजा और कनीमोझी को डीएमके से बर्खास्त करने की मांग की। साथ ही शर्त रख दी, विधानसभा चुनाव में सीएम के लिए किसी का नाम प्रोजैक्ट न हो। और स्टालिन या उनमें से जिसका पलड़ा चुनाव बाद भारी हो, वही सीएम बने। यों फिलहाल अझागिरी ने इस्तीफा अपने पिता करुणा को भेजा। सो समकालीन भारत के शाहजहां अब संकट में फंस गए। राजा तो रिश्तेदारी से बाहर, पर कनीमोझी तो उनकी तीसरी बीवी रजाथी से पैदा सांसद बेटी। करुणा सीएम के तौर पर स्टालिन को प्रोजैक्ट करना चाह रहे। पर बड़ा भाई अझागिरी दावा छोडऩे को राजी नहीं। सो तमिलनाडु की राजनीति में डीएमके के पारिवारिक फिल्म का क्लाइमैक्स क्या होगा, यह तो वक्त बताएगा। पर फिलहाल भ्रष्टाचारियों के वक्त सही नहीं चल रहे। ना-नुकर करते आखिरकार बुधवार को सुरेश कलमाड़ी को सीबीआई दफ्तर पहुंचना ही पड़ा। कॉमनवेल्थ घोटाले में घंटों कड़ी पूछताछ हुई। पर सीबीआई ने सजा दिलाने के लिए कड़ी से कड़ी जोड़ी या बचाने के लिए, यह तो भविष्य के गर्भ में। कलमाड़ी-राजा के बाद अब बोफोर्स ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल रखा। सो बीजेपी ने भी बुधवार को कोर ग्रुप की मीटिंग कर हमले की धार और तेज करने की रणनीति बनाई। यानी भ्रष्टाचारियों का भले कुछ न बिगड़े। पर भ्रष्टाचार को मुद्दा बना वोटों का हिसाब-किताब हो रहा। सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, अब तो गणतंत्र दिवस से बीस दिन पहले तिरंगे पर तकरार शुरू हो गई। बीजेपी की यूथ विंग के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर कोलकाता से श्रीनगर तक की एकता यात्रा पर निकले हुए। पर युवा नेतृत्व की आड़ में बीजेपी के घाघों ने रणनीति बनाई। सो मकसद समझना कोई बड़ी बात नहीं। श्रीनगर में तिरंगा फहराने को लेकर हमेशा विवाद रहा। अलगाववादी ताकतें 26 जनवरी और 15 अगस्त के दिन हमेशा पाकिस्तानी झंडा लहराती दिखतीं। सो बीजेपी ने तिरंगे की आड़ में भावनात्मक लहर पैदा करने का मंसूबा बनाया। रही-सही कसर बुधवार को खुद जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने पूरी कर दी। उमर ने ऐसा बयान दिया, ‘वैद्या फरमाए वही, जो रोगी चाहे’ वाली कहावत चरितार्थ कर दी। तिरंगे पर तकरार बीजेपी को भी राजनीतिक लिहाज से शूट करती। घाटी के हालात के लिहाज से उमर को भी मुफीद। सो बीजेपी ने उमर के बयान पर फौरन खम ठोका। सीधे अरुण जेतली मैदान में कूदे। कहा- तिरंगा फहराने के लिए किसी की इजाजत की जरूरत नहीं। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। पर उमर ने कहा- अब घाटी में हालात बिगड़े, तो बीजेपी जिम्मेदार होगी। अब गुरुवार को तेलंगाना पर सर्वदलीय मीटिंग में भी कांग्रेस का तेल निकलना तय। बीजेपी-टीआरएस पहले ही मीटिंग के बॉयकाट का एलान कर चुकीं। अब आप खुद ही देखिए, राजनीति का यह कैसा स्तर? आखिर अपने नेता देश को कहां ले जाना चाहते? आखिर किसी भी एक मुद्दे पर कभी राजनीतिक एका क्यों नहीं दिखता? हर मुद्दे में वोट बैंक की राजनीति क्यों घुस जाती? सचमुच नजीर पेश करने वाले नेता राजनीति के बियाबां में कहीं खो चुके। अब नेताओं में सिर्फ एक ही बात का एका दिखता। वह है- जनता की गाढ़ी कमाई को लूट-खसोट कर पांच साल में ही अपनी संपदा पचास गुना बढ़ा लेना। ऐसे मामलों में कोई भी राजनीतिक दल अछूता नहीं। क्या आज कोई भी ऐसा दल है- जिसकी चाल टेढ़ी न हो, चरित्र में दाग न हो, चेहरा कुरूप न हो? कोई एक बार नेतागिरी में घुसा, खुदा न खास्ते एमपी-एमएलए-पार्षद बन गया। तो शायद दिल-ओ-दिमाग में यह नारा घर कर जाता- कर लो दुनिया मुट्ठी में। सो राजनीति से लोगों का भरोसा उठ रहा। आखिर जनता का भरोसा क्यों न उठे? महंगाई छह साल से आम आदमी को मुंह चिढ़ा रही। पर मनमोहन हों या सोनिया, सिर्फ जुबानी भरोसा दिला रहे। अब बुधवार को होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम ने महंगाई को एक टैक्स बता दिया। बोले- महंगाई से बड़ा कोई टैक्स नहीं। अगर आपकी आमदनी काफी अधिक है, तो उसे महंगाई खा जाती है। उन ने पहली बार कबूला- हमें पक्का विश्वास नहीं है कि खाने-पीने की चीजों की कीमत नियंत्रित करने के लिए हमारे पास सभी तरह के उपाय हैं। अब बोफोर्स पर इनकम टेक्स ट्रिब्यूनल के ताजा फैसले के बाद यह प्रणव मुखर्जी पर हमला या कुछ और। पर सवाल, जब चिदंबरम खुद वित्त मंत्री थे, तब सोचने की शक्ति कहां थी? अब जो भी हो, चिदंबरम के बयान से साफ हो गया। मनमोहन सरकार की विकास दर आम आदमी की छाती पर मूंग दलकर बढ़ी। आम आदमी तो कंगाल ही रह गया। राजाओं-कलमाडिय़ों ने विकास का भरपूर फायदा उठाया। सचमुच विकास दर का ही नमूना, जब मनमोहन वित्तमंत्री थे, तो लाख रुपए में सांसद बिक जाते थे। जब पीएम बने, तो कीमत 25 करोड़ पहुंच गई। अब तो मनमोहन का दावा फिर फेल होता दिख रहा। महंगाई फिर कहर बरपा रही। मनमोहन ने कांग्रेस अधिवेशन में मार्च तक महंगाई दर साढ़े पांच फीसदी लाने का भरोसा दिया था। पर जिस तरह कीमतें बढ़ रहीं, आम आदमी का राम ही राखा। पेट्रोल में तो पहले ही आग लग चुकी। बस महीने-दो महीने का इंतजार करिए। डीजल और रसोई गैस में भी ‘मनमोहिनी विस्फोट’ होंगे।
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05/01/2011