Thursday, March 24, 2011

जेपीसी बनाम पीएसी और चुनावी चोंचलेबाजी

राजस्थान विधानसभा का सत्र तय मियाद से पहले खत्म क्या हुआ। समूचा विपक्ष वसुंधरा राजे की रहनुमाई में दिल्ली कूच कर गया। राष्ट्रपति, लोकसभा स्पीकर के सामने अलख जगाई। पर होना-जाना कुछ नहीं। संसद हो या विधानसभाएं, सत्तापक्ष अपनी बपौती समझता। चाहे सत्ता में कोई भी राजनीतिक दल हो। तभी तो राजनीतिबाज आमजन का भरोसा खोते जा रहे। सत्ताधारी सत्र का इस्तेमाल महज संवैधानिक खानापूर्ति के लिए करते। तो विपक्ष खुद को एक्टिव साबित करने के लिए। पर सत्र में किसकी कितनी रुचि, इसका नमूना गुरुवार को लोकसभा में दिख भी गया। अपने नमोनारायण मीणा ने पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण बिल पेश किया। तो लेफ्ट ने मत विभाजन की मांग कर दी। पर सदन में सत्तापक्ष और विपक्ष की बैंचें खाली पड़ी थीं। सो संसदीय कार्य मंत्री पवन बंसल के तो हाथ-पांव फूल गए। स्पीकर मीरा कुमार ने मत विभाजन की मांग मान प्रक्रिया शुरू कर दी। तो बंसल प्वाइंट ऑफ आर्डर उठा लाए। नियम 72 के तहत विरोध को गलत ठहराया। पर दोनों पक्षों की करीब दस मिनट चली नोंकझोंक में कांग्रेस ने सांसदों को सदन में बुला लिया। फिर आरजेडी के रघुवंश बाबू ने बंसल के प्वाइंट ऑफ आर्डर को गलत बताया। क्योंकि स्पीकर की ओर से अनुमति के बाद ऐसा करना नियम के अनुकूल नहीं था। सो आखिर में स्पीकर ने अनुमति दी। मतविभाजन हुआ, तो 43 के मुकाबले 115 मतों से बिल पेश हो गया। पर आप चौंकिए मत, लोकसभा में सांसदों की संख्या सिर्फ 158 ही नहीं। रिकार्ड के मुताबिक 543 सांसद। पर सांसदों की जनहित में रुचि दोपहर बाद तब दिखी, जब अपनी नजर मोटेरा के सरदार पटेल स्टेडियम में हुए क्रिकेट मैच पर पड़ी। सत्तापक्ष और विपक्ष के कई माननीय सांसद भारत-आस्ट्रेलिया के क्वार्टर फाइनल मैच की विशेष दर्शक दीर्घा में दिखे। सो न संसद, न देश की फिक्र। जाट आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा। पर अदालतें सक्रिय, तो सरकार खामोश बैठी हुई। अब अपने नेताओं से कोई पूछे- जब आरक्षण नहीं दे सकते, तो चुनावी चोंचलेबाजी करते क्यों हो? ऐसे नेताओं को तो चुनाव प्रचार में सेंटर फ्रैश च्वइंगम खिलाकर भेजना चाहिए। ताकि जुबान बंद रख सकें। चुनावी चोंचलेबाजी ने ही अपने राजस्थान में चार बार गुर्जर आंदोलन करा दिए। पर नेताओं की जुबां है कि मानती नहीं। अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे। तो गुरुवार को तमिलनाडु के दोनों बड़े दलों ने चुनावी वायदे किए। करुणानिधि ने कालेज के पहले वर्ष के छात्रों को लेपटॉप देने का बात की। तो जयललिता ने 11वीं क्लास में ही लेपटॉप का वादा कर दिया। मुफ्त पंखे, मिक्सर, ग्राइंडर और गरीबों को मिनरल वाटर देने का भी वादा। जयललिता ने भले खुद शादी नहीं की। पर सत्ता में आईं, तो गरीब महिला मतदाताओं को चार ग्राम सोने का मंगल सूत्र देंगी। करुणा-जया ने और भी कई वादे किए। पर क्या ऐसे वादे वोट को खरीदने की कोशिश नहीं? अपनी नजर में यह न सिर्फ वोट खरीदना, अलबत्ता गरीबी और लोकतंत्र से भद्दा मजाक। पिछले चुनाव में करुणा ने कलर टीवी का वादा किया। सत्ता में आकर टीवी तो बंटवाया। पर गरीबों ने टीवी लेकर वापस दुकान में सस्ते दाम पर बेच दिए। क्योंकि उनके पास केबल के पैसे नहीं, बिजली उपलब्ध नहीं। सो टीवी रख अपनी गरीबी का उपहास क्यों बनाएं। अब जब लोकतंत्र के मंदिर में सांसद-विधायक बिकने लगे। तो वोटर को खरीदने की कोशिश क्यों नहीं होगी। चुनाव सुधार की बातें तो खूब होतीं। पर जो बात सभी राजनीतिक दलों को नुकसान पहुंचाए, उसे लागू ही नहीं करते। सनद रहे, सो बताते जाएं। राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार के वक्त विधि मंत्री दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में चुनाव सुधार कमेटी बनी थी। मई 1990 में गोस्वामी कमेटी ने करीब तीन दर्जन से अधिक सुझाव दिए। पर उनमें से दो दर्जन सिफारिशें कभी लागू नहीं हुईं। इन्हीं सिफारिशों में एक थी- सभी चुनावी मुद्दों की जांच के लिए संसद की स्थायी समिति गठित हो। पर राजनीतिक दलों ने इस सुझाव को ठंडे बस्ते में डाल दिया। सो अब मंगल सूत्र भी चुनावी हो गया। गरीब को मिनरल वाटर का सपना दिखाया जा रहा। पर किसको कोसें और किसकी सराहना करें। राज्य से केंद्र तक सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे। भ्रष्टाचार, महंगाई राजनीति का मुद्दा बनकर रह गईं। गुरुवार को टू-जी घोटाले पर बनी जेपीसी की पहली मीटिंग हुई। तो अध्यक्ष पी.सी. चाको ने वही कहा, जो जेपीसी गठन के वक्त कांग्रेस दबी जुबान से कह रही थी। यानी जेपीसी में बीजेपी कोटे से पूर्व मंत्री यशवंत-जसवंत-हरेन पाठक को लेकर एतराज। अब चाको लोकसभा स्पीकर से मिल इन तीनों को हटाने की मांग करेंगे। कांग्रेस तो तभी मांग करने वाली थी। पर सीवीसी थॉमस के मुद्दे ने मजबूर कर दिया था। कांग्रेस को डर, जेपीसी में बीजेपी के दबंगों के सामने अपने मेंबर दब्बू न रह जाएं। पर कांग्रेस तो नहीं, अब जेपीसी के मुखिया चाको ने वही बात की। लगे हाथ मुरली मनोहर की रहनुमाई वाली पीएसी को दायरे में रखने की भी मांग होगी। सो मुश्किल में कांग्रेस। जिस पीएसी और जोशी की सराहना करते नहीं थकती थी, अब क्या कहेगी? चाको की दलील- संसद की दो कमेटी एक ही जांच नहीं कर सकतीं। यानी अब संसदीय कमेटी में सिविल वार की नौबत। संसद में कमेटियां भिड़ रहीं, तो चुनावी मैदान में नेताओं की चोंचलेबाजी चालू आहे।
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24/03/2011