Saturday, June 19, 2010

तो राव पर ठीकरा कांग्रेसी मैनेजमेंट!

तो राम जेठमलानी पर बीजेपी की जिद पूरी हुई। कांग्रेस गच्चा खा गई। या यों कहें, अबके राजस्थान में जादूगर का जादू नहीं चला। सो राजस्थान में ही नहीं, कर्नाटक में भी कांग्रेस का धन-पशु वाला तुरुप नहीं चला। राजस्थान में संतोष बागड़ोदिया को निर्दलीय तो उतारा, पर फजीहत करा दी। चार निर्दलियों के जुगाड़ से अपने राम का बेड़ा पार करा लिया। अब राज्यसभा चुनाव का झंझट निपटा, तो शुक्रवार को सरकार ने भोपाल गैस पीडि़तों की सोची। पी. चिदंबरम की रहनुमाई वाली जीओएम की मीटिंग दो दिन और होगी। फिर सोमवार को पीएम को शुरुआती रिपोर्ट सौंपे जाने की संभावना। पर जरा सुध लेने की रफ्तार देखिए। जीओएम का गठन हुआ नौ जून को। पर पहली मीटिंग नौ दिन बाद हुई। वह भी तब, जब अपने मनमोहन ने दस दिन में रपट मांगी। पर बात पहली मीटिंग की। सो जीओएम ने अपनी लक्ष्मण रेखा तय कर ली। राहत, पुनर्वास और मुआवजे पर फोकस होगा। पर वारेन एंडरसन को लेकर अभी मुट्ठी बंद कर ली। चिदंबरम ने मीटिंग के बाद सभी पहलुओं पर गौर करने का भरोसा दिया। पर लगे हाथ जीओएम की लक्ष्मण रेखा भी बता दी। जैसे नक्सलवाद पर चिदंबरम ने खुद के सीमित अधिकार की दुहाई देकर हाथ खड़े किए थे। अब एंडरसन पर भी अधिकारों की दलील। जीओएम को महज राहत, पुनर्वास पर फौकस बता रहे। यानी 26 साल बाद अपने लोगों की सुध ले रही सरकार। यों 26 साल पहले जब 15-20 हजार लोग त्रासदी के शिकार हुए। तो कांग्रेस ने सिर्फ और सिर्फ वारेन एंडरसन की फिक्र की। एंडरसन पर मेहरबानी दिखाते हुए स्वदेश वापसी का पुख्ता बंदोबस्त किया। भले भोपाल की जनता त्रासदी की आग में जल रही। यों त्रासदी की आग अभी भी नहीं बुझी। सो लपटें सीधे दस जनपथ को झुलसाने लगीं। तो कांग्रेस 26 साल बाद देश के पीडि़त लोगों पर भी मेहरबान हो गई। पर एंडरसन को भगाने के आरोप से घिरी कांग्रेस की दलील सचमुच चौंकाने वाली। पंद्रह-बीस हजार भारतीयों की मौत पर एक विदेशी एंडरसन भारी पड़ा। कांग्रेस यही तो दलील दे रही। अगर तब एंडरसन को सेफ पैसेज नहीं दिया होता। तो उसका खून हो जाता। तो क्या सिर्फ अमेरिकियों का खून असली और भारतीयों का नकली? अपने मनमोहन अमेरिका और ओबामा के काफी मुरीद। पर नुकसान का मुआवजा कैसे हासिल किया जाता, यह सचमुच अमेरिका से सीखना चाहिए। मैक्सिको की खाड़ी में तेल फैलाने वाली ब्रिटिश कंपनी बीपी को आखिर 20 अरब डालर का हर्जाना भरने को राजी होना पड़ा। यह मुआवजा अमेरिकी कानून के तहत तय साढ़े सात करोड़ डालर से इतर है। हर्जाना वसूलने के लिए ओबामा ने सबसे पहले बीपी के अध्यक्ष टोनी हेवर्ड को लंदन से वाशिंगटन बुलवाया। फिर संसदीय कमेटी के सामने पेश किया। और आखिर में ब्रिटिश कंपनी को झुकना पड़ा। क्या कांग्रेस की पूर्व या मौजूदा सरकार में बराक ओबामा जैसा माद्दा है? क्या मनमोहन एंडरसन को वापस लाने की सोच भी सकते? सोचना तो दूर, अजीब-ओ-गरीब दलीलें दी जा रहीं। अब पीडि़तों के जख्म निचली अदालत के फैसले से हरे हो चुके। तो उस जख्म पर मुआवजे का मरहम लगाने की तैयारी। क्या 26 साल बाद मुआवजा सही व्यक्ति तक पहुंचेगा? जिस देश में लोग पशुओं का चारा खा जाते, बाढ़ और सूखे के शिकार लोगों का निवाला निगल जाते, जहां मंत्री अपनों को रेवड़ी बांटने में बेखोफ देश को चूना लगा जाते। ऐसे लूट तंत्र वाले देश की व्यवस्था से कैसी उम्मीद? जब 26 साल में भोपाल गैस पीडि़तों तक इंसाफ नहीं पहुंचा। तो अपनी लूटखसोट वाली व्यवस्था में मुआवजा कहां तक पहुंचेगा। कांग्रेस की हमेशा यही रणनीति। जब नानावती रिपोर्ट के बाद सिख विरोधी दंगे के शिकार परिवारों के जख्म हरे हुए, तो मनमोहन ने संसद में माफी मांगी। फिर जीओएम ने मुआवजे से मुंह बंद करने की कोशिश की। सीबीआई से जगदीश टाइटलर को बरी करवा कर ही दम लिया। अब भोपाल गैस त्रासदी में भी यही होगा। कांग्रेस कभी भी गांधी-नेहरू खानदान पर उंगली उठती नहीं देख सकती। कांग्रेस की हमेशा यही रणनीति, मीठा-मीठा दस जनपथ का, बाकी कड़वा-कड़वा कांग्रेजन का। सो भोपाल कांड में कई पूर्व अधिकारियों ने राजीव सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। तो अब नया खुलासा कांग्रेस की रणनीति के मुताबिक। पूर्व विदेश सचिव एमके रसगोत्रा ने एंडरसन को सेफ पैसेज देने के मामले में नरसिंह राव को जिम्मेदार ठहरा दिया। राव को एंडरसन पर मेहरबान बताया। राजीव गांधी को पूरे मामले में पाक-साफ बताने की कोशिश की। पर राव के बेटे रंगाराव ने पिता का नाम घसीटने पर एतराज जताया। पर नेहरू-गांधी खानदान से इतर पीएम बनने वाले कांग्रेसी नेताओं को कांग्रेस कभी अपना नहीं मानती। तभी तो पिछले यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त राहुल गांधी ने 1992 के बाबरी मस्जिद कांड के लिए राव को दोषी ठहरा दिया। तब कहा था- अगर उस वक्त नेहरू-गांधी खानदान का पीएम होता, तो बाबरी विध्वंस न होता। अब भोपाल का ठीकरा भी राव के सिर। सो अब भोपाल त्रासदी पर राजनीतिक मैनेजमेंट की तैयारी।
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