Friday, April 8, 2011

आंदोलन की शक्ल ने दी सरकार को अक्ल

दुष्यंत की ये पंक्तियां शुक्रवार को मौजूं हो गईं- ‘.. आज ये दीवार परदों की तरह हिलने लगी। शर्त लेकिन थी कि बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सडक़ पर, हर गली में। हर नगर, हर गांव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं। मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं, तो तेरे सीने में सही। हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।’ यों सही मायने में अन्ना हजारे ने तो सिर्फ लौ जलाई थी। भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी जम चुकीं, हर दिल में आग जलने लगी। सो जन लोकपाल बिल के लिए अन्ना के आंदोलन को अपार जन समर्थन मिला। देश का कोई कोना नहीं बचा, जहां आंदोलन की गूंज न पहुंची हो। सो सरकार की रात की नींद, दिन का चैन गायब हो गया। गुरुवार की आधी रात को पीएमओ जागता रहा। केबिनेट सचिव ने समाधान ढूंढने की कोशिश की। फिर शुक्रवार तडक़े सोनिया गांधी प्रधानमंत्री निवास पहुंचीं। मीटिंग में सोनिया-पीएम-सिब्बल-अहमद पटेल और पीएम के प्रिंसीपल सैक्रेट्री टी.के.ए. नायर शरीक हुए। दोपहर बाद पीएम ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से विचार-विमर्श किया। फिर पीएम के घर वीरप्पा मोइली-कपिल सिब्बल-सलमान खुर्शीद और प्रणव मुखर्जी का जमावड़ा हुआ। अन्ना को भेजे जाने वाले ड्राफ्ट पर चर्चा हुई। तो देर शाम सिब्बल के घर चौथे दौर की वार्ता हुई। सरकार की ओर से मोइली-सिब्बल-प्रणव, तो अन्ना की ओर से स्वामी अग्निवेश, किरन बेदी, अरविंद केजरीवाल पहुंचे। वार्ता के बाद अग्निवेश ने अनशन खत्म करने का इशारा किया। पर अन्ना के आगे सरकार की चालाकी नहीं चली। आखिर सरकार पर फौरी ऐतबार हो भी कैसे, जब सुबह ही हुस्नी मुबारक की तरह हेकड़ी दिखाई। आंदोलनकारियों की ओर से संयुक्त समिति के लिए नोटीफिकेशन और गैर सरकारी नेता को अध्यक्ष बनाने की मांग सिरे से खारिज कर दी। सो देर शाम सरकार नतमस्तक दिखी। तो अन्ना को शक हो गया, सुबह हेकड़ी दिखाने वाले शाम को झुक रहे। तो दाल में जरूर कुछ काला। वैसे भी ड्राफ्ट को तैयार करने वाले तीनों केबिनेट मंत्री पेशे से वकील। सिब्बल, सलमान खुर्शीद और वीरप्पा मोइली ने आसानी से सरेंडर किया होगा, ऐसी उम्मीद करना बेमानी। सो सरकार के ड्राफ्ट पर अन्ना ने पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण के साथ चर्चा की। देर रात एलान कर दिया- अभी अनशन जारी रहेगा। सरकार के ड्राफ्ट पर अभी अंतिम फैसला नहीं, शनिवार को बात होगी। सो अब उम्मीद, शनिवार को शायद अनशन खत्म हो। सरकार संयुक्त समिति के लिए नोटीफिकेशन तो नहीं, पर शासनादेश जारी करने को राजी दिख रही। कमेटी में चेयरमैन के बजाए को-चेयरमैन का पद आंदोलनकारियों को देने का प्रस्ताव रखा गया। सरकार की हालत अब बद से बदतर हो चुकी। पांच राज्यों के चुनाव में आंदोलन का असर पड़ता दिख रहा। कांग्रेस और सरकार के रणनीतिकार अब मानने लगे। देर से ही सही, अन्ना के आंदोलन ने जो राह पकड़ी, संयुक्त समिति की मांग माननी पड़ेगी। सो ऐसा न हो, जैसे टू-जी घोटाले में सब कुछ लुटाकर होश में आए, अब भी कुछ ऐसा ही हो। सो संयुक्त समिति की मांग मानने में देरी की अब कोई तुक नहीं। अनशन पर बैठे अन्ना की तबियत थोड़ी भी नासाज हुई। तो कहीं देश की जनता सरकार की अर्थी न सजा दे। पर सरकार के झुकने की सबसे बड़ी वजह खुफिया रपट बनी। जिसमें बताया गया- अगर जल्द आंदोलन को नहीं रोका गया, तो आंदोलन अराजक हो सकता। दिल्ली में जंतर-मंतर पर तो अन्ना बैठे। पर देश भर के चौक-चौराहों-मैदानों में कोई एक नेतृत्व नहीं। लोगों का गुस्सा भडक़ता जा रहा। आंदोलनकारियों की भीड़ बढ़ती जा रही। यानी इंटेलीजेंस रिपोर्ट ने सरकार के कान खड़े कर दिए। सो सरकार की ओर से वार्ताकार अब आंदोलनकारियों से वार्ता में जुबान कम, कलम अधिक चला रहे। ताकि आंदोलन खत्म हो सके। शुक्रवार की शाम सरकार को उम्मीद बंधी। स्वामी अग्निवेश के इशारे के बाद मीडिया ने आनन-फानन में अनशन खत्म होने के आसार जता दिए। तो जंतर-मंतर हो या इंडिया गेट, मुंबई का आजाद मैदान हो या देश के अन्य चौक-चौराहे, हर जगह आजादी का तराना गूंजने लगा। ये देश है वीर जवानों का, हम होंगे कामयाब, वंदे मातरम जैसे गीतों के उद्घोष से माहौल ऐसा बन गया, मानो दूसरी आजादी मिल गई। सचमुच भ्रष्टाचार की मार से शायद ही देश का कोई नागरिक बचा हो। सो गुस्सा अब सडक़ों पर साफ दिख रहा। सबके दिलों में अजीब सी आग, जुबां पर एक ही नारा- अब जान रहे या जाए, पर ये सूरत बदलनी चाहिए।
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08/04/2011