अब कांग्रेस डैमेज कंट्रोल में जुट गई। अभी तो जितने नेता, उतनी बातें। पर दस जनपथ से एक मास्टर स्ट्रोक आएगा। फिर भोपाल गैस त्रासदी पर भी कांग्रेस गंगा नहा लेगी। कांग्रेस में हमेशा यही होता। आप इतिहास उठाकर देख लो। पीएम की कुर्सी का त्याग हो या लाभ के पद के विवाद में सांसदी से इस्तीफा। राष्ट्रपति चुनाव हो या लोकसभा स्पीकर का। सबसे अहम, तेल की दलाली में वोल्कर रपट के बाद अपने नटवर सिंह की विदाई। नटवर जिनके खून में कांग्रेस रचा-बसा। पर कांग्रेस ने उस खून को कैसे खुद से अलग किया, सबको मालूम। यों कांग्रेस झूठ को भी सच बनाकर परोसने की कला में माहिर। जब वोल्कर रपट में तेल की दलाली की आंच कांग्रेस नेतृत्व तक पहुंचने लगी। तो बड़ी चालाकी से नटवर को हटाया गया। अगर सचमुच नटवर तेल के खेल में गुनहगार थे। तो सीधे कांग्रेस से बाहर क्यों नहीं निकाला। पर आप खुद देखो। नटवर का नाम जब वोल्कर रपट में आया, विपक्ष ने घोड़ा खोल दिया। तो मनमोहन ने पहले विदेश मंत्रालय छीना, पर केबिनेट मंत्री बने रहे। फिर कांग्रेस ने अपने मुखपत्र के संपादकीय मंडल से हटाया। पर वर्किंग कमेटी से बाहर करने से पहले जूनियर नेता कपिल सिब्बल से बयान दिलवा दिया। ताकि नटवर खुद इस्तीफा देकर कांग्रेस छोड़ जाएं। फिर जब एटमी डील पर नटवर ने मनमोहन को घेरने की कोशिश की। बीजेपी के यशवंत, सपा के अमर, लेफ्ट के सीताराम के साथ मिलकर डी-4 बनाया। तो आधी रात को कांग्रेस ने निलंबन का फैसला लिया। फिर नटवर ने पीएम मनमोहन से लेकर प्रणव मुखर्जी तक को वफादारी याद दिलाई। सो आखिर वही हुआ, नटवर को कांग्रेस से विदा होना पड़ा। यानी कांग्रेस ने वोल्कर रपट में नटवर को इस तरह उलझाए रखा कि विपक्ष आगे तक सवाल ही नहीं उठा पाया। सो कांग्रेस ने नटवर प्रकरण को लंबा खींच दस जनपथ पर उठ रही उंगली की दिशा ही मोड़ दी। यानी नटवर प्रकरण सिर्फ एक उदाहरण, ताकि भोपाल त्रासदी पर कांग्रेस की रणनीति साफ हो। अब कांग्रेस ने सियासत की बिसात बिछा दी। कांग्रेस के ही नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप शुरु कर चुके। ताकि विपक्ष के सवाल की धार भोंथरी हो सके। अब गैस कांड के मुख्य अभियुक्त वारेन एंडरसन की भगाने में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की भूमिका पर सवाल उठा। खुद तात्कालीन डीएम ने खुलासा किया। तो मध्य प्रदेश में अर्जुन के साथ मंत्री और बाद में उत्तराधिकारी बने दिग्विजय सिंह बचाव में उतर आए। भले राजनीतिक स्तर पर दोनों नेताओं के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा। यानी मौसेरे भाई वाली कहावत चरितार्थ हो रही। दिग्विजय की दलील देखिए, एंडरसन को भगाने में राज्य सरकार की नहीं, अलबत्ता केंद्र की भूमिका संभव। उन ने साफ तौर से माना, एंडरसन को रिहा कर अमेरिका भगाने के पीछे अमेरिकी दबाव से इनकार नहीं किया जा सकता। पर दिग्विजय के बयान के फौरन बाद कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी ने असहमति जता दी। सारा ठीकरा राज्य के सिर फोड़ दिया। अब आप बयानों के विरोधाभास को खुद देख लो। जब कोई सीएम बिना पीएमओ की मंजूरी के खुद विदेश नहीं जा सकता। तो वह किसी और को कैसे भगा सकता है? वह भी राज्य सरकार के विमान में। एंडरसन को रिहा करने का आदेश अब स्वर्ग सिधार चुके तबके चीफ सेक्रेट्री ब्र्हम स्वरुप ने दिया था। डीएम-एसपी ने बिना सवाल उठाए आका के हुक्म की तामील की। डीएम की कार से एंडरसन सरकारी दामाद की तरह विमान में सवार होकर दिल्ली पहुंचा था। अब सवाल, तबके सीएम अर्जुन सिंह ने चीफ सेक्रेट्री को रिहाई का आदेश किसके कहने पर दिया? यों जनता पार्टी के सर्वेसर्वा सुब्रहमण्यम स्वामी ने ट्विटर पर खुलासा किया, एंडरसन ने अर्जुन सिंह के ट्रस्ट को तीन करोड़ चंदा दिया था। पर चंदा लेकर कोई सीएम इतना बड़ा जोखिम नहीं उठा सकता। वैसे भी विदेश मामले पर राज्य नहीं, अलबत्ता केंद्र का अधिकार। सो एंडरसन को भगाने के लिए मची अफरा-तफरी बिना दिल्ली में बैठे आका के संभव नहीं। चीफ सेक्रेट्री ने तो तत्कालीन गृह सचिव के.एस. शर्मा को भरोसे में भी नहीं लिया। यानी भोपाल त्रासदी की सबसे बड़ी गुनहगार तो कांग्रेस हो गई। खुद तबके सूचना व प्रसारण मंत्री वसंत साठे ने खुलासा किया। एंडरसन को भगाए जाने की जानकारी केंद्र-राज्य दोनों को थी। सो बीजेपी ने कांग्रेस से मांग कर दी, देश से माफी मांगो। पर अब कांग्रेस अपना खेल करेगी। अर्जुन अगर कुछ बोलेंगे, तो हश्र नटवर जैसा ही होगा। अगर नहीं बोले, तो भी कांग्रेस अर्जुन को ही बलि का बकरा बनाएगी। कांग्रेस नेताओं के परस्पर विरोधी बयानों के बाद आप खुद देखना, कैसे दस जनपथ से फरमान आएगा और तमाम विरोधों की हवा उड़ जाएगी। पर सियासत की पिच पर कांग्रेस-बीजेपी चाहे जो खेल खेले। पर यह तो साफ हो चुका, भोपाल त्रासदी के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के लिए कांग्रेस कभी ईमानदार नहीं रही। जैसे सिख विरोधी दंगे के लिए अपने मनमोहन ने बीस साल बाद देश से माफी मांगी, कुछ ऐसा ही मानसून सत्र में भोपाल त्रासदी के लिए हो जाए, तो हैरानी नहीं। पर वसंत साठे के बयान के बाद गुरुवार को मौजूदा सूचना व प्रसारण मंत्री का बयान आया। बोलीं- 'जीओएम सभी तथ्य को सामने लाएगा। देश से कुछ भी नहीं छुपाया जाएगा। सरकार पूरी पारदर्शिता बरतेगी। पीएम मनमोहन के कार्यकाल में कोई चीज छुपाई नहीं जाती।' चलो माना, मनमोहन के कार्यकाल में कुछ नहीं छुपाई जाती। तो क्या यह मान लें, 1984 वाले पीएम के कार्यकाल में बहुत कुछ छुपाया गया? इशारा साफ, एंडरसन को भगाने वाला कौन। अर्जुन सिंह तो जरिया थे, 'कृष्ण' तो दिल्ली में थे।
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10/06/2010
Thursday, June 10, 2010
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