Wednesday, March 30, 2011

क्रिकेट के शोर में दब गया बापू का अपमान

क्रिकेट का नशा सिर चढक़र बोला। सो बापू के अपमान की याद केंद्र सरकार को तब आई, जब मोहाली का मैच शुरू हो गया। पर गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने फुर्ती दिखाई। राज्य विधानसभा में जोसफ लेलीवेल्ड की किताब पर पाबंदी का एलान किया। महाराष्ट्र सरकार ने भी बापू पर लिखी विवादास्पद किताब को बैन कर दिया। दोनों राज्यों में पक्ष-विपक्ष ने एक सुर में लेलीवेल्ड की किताब को विकृत और निराधार करार दिया। नरेंद्र मोदी ने तो इसे लेखन की विकृत प्रकृति और तार्किक सोच वाले लोगों की भावनाओं को आहत करने वाला करार दिया। बोले- महात्मा गांधी को बदनाम करने वाली इस किताब के जरिए लेखक ने करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत किया है। सो सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। महाराष्ट्र, गुजरात के सभी राजनीतिक दलों ने एक सुर में इसे राष्ट्रपिता का अपमान करार देते हुए लेखक के खिलाफ कड़े कदम उठाने की मांग की। ताकि भविष्य में कोई फिर ऐसा दुस्साहस न करे। पर केंद्र सरकार कान में रुई डालकर बैठी हुई। अमेरिका में यह किताब सोमवार से ही बिक्री के लिए उपलब्ध हो चुकी। पर क्रिकेट की कूटनीति में मशगूल मनमोहन सरकार तीसरे दिन यानी बुधवार को भी महज योजना बनाती दिखी। गनीमत, किताब के सुर्खियों में आने के तीसरे दिन अपनी सरकार ने जुबां खोली। विधि मंत्री वीरप्पा मोइली बोले- सरकार इस किताब को भारत में बैन करने की योजना बना रही। फिर भी मोइली के मुंह से गुजरात और महाराष्ट्र के नेताओं जैसी कोई कठोर टिप्पणी नहीं निकली। अलबत्ता बोले- किताब में राष्ट्रीय नेता के खिलाफ की गई अभद्र टिप्पणी को सरकार ने गंभीरता से लिया है। अब जब लेखक की आलोचना में भी सरकार कंजूसी बरत रही। तो कार्रवाई क्या खाक होगी। महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष मानिक राव ठाकरे ने जोसेफ लेलीवेल्ड के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। पर ठाकरे यह भूल रहे, मामला अमेरिका से जुड़ा। सो सख्त कार्रवाई तो दूर, मनमोहन सरकार सख्त भाषा का भी इस्तेमाल नहीं कर पा रही। साख बचाने को भारत में भले बैन लगा दे। पर दुनिया में किताब को बैन करवाने की कुव्वत नहीं। ऐसे में तो कोई भी भारतीय विदेश से यह किताब खरीद सकता। फिर सिर्फ भारत में बैन का क्या औचित्य रह जाएगा? पर सरकार ही नहीं, विपक्ष भी बापू के अपमान पर बेफिक्र दिख रहा। सरकार को घेरने का एक भी मौका न चूकने वाली बीजेपी अभी भी खामोश बैठी। यों कांग्रेस-बीजेपी की लाज दोनों की राज्य सरकार ने बचा ली। पर बतौर प्रमुख विपक्ष बीजेपी की न तो कोई टिप्पणी, न ही किसी नेता का ट्वीट आया। अलबत्ता बीजेपी के नेता अब स्वीट-स्वीट सपने देखने लगे। मंगलवार को सुषमा स्वराज ने तो असम में अपने बूते बीजेपी की सरकार का दावा कर दिया। यों सपने देखना कोई बुरी बात नहीं। पर जो पार्टी कुल 126 की विधानसभा में फिलहाल दस सीटों पर हो और कुल 25 सीट जीतने का लक्ष्य लेकर चली हो। वह गठबंधन की सरकार का दावा करे, तो समझ में आने वाली बात। पर अपने बूते का दावा खयाली पुलाव से कम नहीं। असम में विपक्ष बिखरा हुआ। सो कांग्रेस की राह आसान दिख रही। फिर भी बीजेपी नेताओं के दावे कम नहीं। बुधवार को तो वेंकैया नायडू ने असम ही नहीं, केंद्र सरकार का भविष्य बतला दिया। वेंकैया का दावा- कांग्रेस की रहनुमाई वाली यूपीए सरकार छह महीने में गिर जाएगी और मध्यावधि चुनाव होगा। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मनमोहन सरकार को जाना होगा। क्योंकि मौजूदा शासन में हुए कई घोटालों से लोग ऊब चुके। पर सवाल- यूपीए सरकार अगर भरोसा खो चुकी, तो बीजेपी ने जनता का भरोसा पाने वाला कौन सा काम कर लिया? कर्नाटक में येदुरप्पाई छत्रप राज बीजेपी की परेशानी बना हुआ। अंदरूनी गुटबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही। पर बात गांधी जी के अपमान से जुड़े मामले की। बुधवार को भले वीरप्पा मोइली बोले। गुजरात की बीजेपी और महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने किताब पर बैन लगा दिया। पर क्रिकेट मैच के चक्कर में बीजेपी-कांग्रेस की दुकानें बंद रहीं। राजनीतिक दल ही नहीं, सरकार का शीर्ष नेतृत्व मोहाली की महफिल में बैठा। बाकी जो बच गए, टीवी स्क्रीन से चिपके रहे। सो क्रिकेट के शोर में बापू के अपमान का मसला दब गया।
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30/03/2011