Friday, June 4, 2010

तो गोलमाल है, भाई सब गोलमाल है

आखिर शरद पवार भी घेरे में आ गए। वैसे अब तक रक्षा सौदों को कोयला खदान माना गया। जहां कितना भी बेदाग छवि का चेहरा क्यों न बिठा दो, कालिख लग ही जाती। पर अब क्रिकेट में भी कोयले जैसी कहानी। आईपीएल का विवाद जबसे शुरू हुआ, तबसे अब तक काली कमाई के काले खेल का लगातार खुलासा हो रहा। अब शरद पवार भी आईपीएल टीम की बोली के मामले में फंस गए। आईपीएल की पुणे टीम के लिए सिटी कारपोरेशन ने भी बोली लगाई थी। पर जैसे कोच्चि टीम में ललित मोदी अपनी पसंद की कंपनी को फ्रेंचाइजी नहीं दिला पाए। वैसे ही शरद पवार के परिवार के शंयर वाली कंपनी सिटी कारपोरेशन भी नाकाम रही। पर ललित मोदी ने फौरन खुन्नस निकाली। सीधे विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर से पंगा लिया। सो कांग्रेस ने थरूर को विदा किया। पर आईपीएल के कमिश्नर रहे ललित मोदी की कमिश्नरी भी नहीं रही। अब वही ललित मोदी शुक्रवार को शरद पवार के बचाव में उतर आए। सोचिए, एक निलंबित, तो दूसरा ताजा-ताजा विवाद में फंसा। आखिर बचाव में आने का क्या मतलब? इसे भी आप आईपीएल का एक लीग मैच ही मानो। पर जैसे खुलासा हुआ, पवार और सुप्रिया सुले ने खंडन किया। अब जरा याद करिए, जब थरूर का मामला आया। तब भी शरद पवार के परिवार और प्रफुल्ल पटेल का नाम विवाद में उछला। पर तब सुप्रिया सुले और शरद पवार खम ठोककर यही कहते रहे- कहीं भी हमारे परिवार की आईपीएल में हिस्सेदारी या भागेदारी नहीं। पर अब सफाई देखिए। जिस सिटी कारपोरेशन में पवार के परिवार की 16 फीसदी हिस्सेदारी। जिस कंपनी ने आईपीएल की नीलामी में हिस्सा लिया। अब पवार कह रहे, कंपनी के प्रबंध निदेशक अनिरुद्ध देशपांडे पुणे टीम की नीलामी प्रक्रिया में हिस्सा लेने को उत्सुक थे। सो उन्हें निजी तौर पर शामिल होने की स्वीकृति दी गई। बकौल पवार, कंपनी बोर्ड के प्रस्ताव में यह साफ किया गया कि व्यक्तिगत तौर पर देशपांडे के अलावा किसी अंश धारक की प्रत्यक्ष या परोक्ष हिस्सेदारी नहीं होगी। पर पूछा गया, यह बात थरूर-मोदी विवाद के वक्त ही क्यों नहीं बताई? तो जवाब आया, तब जरूरी नहीं समझा। पर पवार की खीझ देखिए। यह तक कहने से गुरेज नहीं किया, अगर वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते, तो सिटी कारपोरेशन कंपनी सहारा से बोली में नहीं हारती। अब सोचो, आईपीएल में कितने ऐसे पेच होंगे। क्रिकेट में राजनेताओं की घुसपैठ की असली वजह क्रिकेट प्रेम नहीं, धन प्रेम रहा। सो शुक्रवार को कांग्रेस ने पवार को अपना बचाव खुद करने की नसीहत दी। तो बीजेपी को मौका मिल गया। बीजेपी ने सीधे पवार से इस्तीफा मांग ही लिया। अब जरा याद करिए, कैसे थरूर के मुद्दे पर बीजेपी ने 16 अप्रैल को संसद का पहिया रोक दिया। विवाद इतना बढ़ा, कांग्रेस ने 19 अप्रैल को थरूर की विदाई में ही भलाई समझी। पर थरूर का जाना आईपीएल की आड़ में चल रहे गोरखधंधे की कलई खोल गया। आखिर आईपीएल के बाद ललित मोदी को भी जाना पड़ा। बाकी जांच की रफ्तार थरूर-मोदी विदाई के बाद थम गई। पर जैसे ही थरूर हटाए गए, पवार-प्रफुल्ल का नाम सामने आ गया। तो समूचा विपक्ष जेपीसी की मांग पर अड़ गया। तब प्रणव दा ने सदन में भरोसा दिया। पर कांग्रेस कोर ग्रुप की मीटिंग में दो मत उभरे। पहला- जेपीसी को भी मौजूदा जांच एजेंसी पर ही निर्भर रहना होगा। दूसरा- जेपीसी बनी, तो जो राज अब तक सिर्फ कांग्रेस और सरकार के पास, सबको मालूम हो जाएगा। सो तभी मन बन गया, जब अपनी जांच एजेंसी सही काम कर रही। तो जेपीसी क्यों बने। पर सनद रहे, सो तब बीजेपी का पवार-प्रफुल्ल प्रेम भी बताते जाएं। बीजेपी ने थरूर का इस्तीफा कराकर दम लिया। पर पवार-पटेल का इस्तीफा मांगना तो दूर, अलबत्ता बचाव में उतर आई। प्रेस कांफ्रेंस में एसएस आहलूवालिया पर सवालों की बौछार हुईं। तो आहलूवालिया खीझ गए। मीडिया से ही सवाल पूछना शुरू कर दिया था। पूछा, पटेल-पवार के खिलाफ आप एक भी सबूत दिखा दो। प्रफुल्ल पटेल की बेटी पूर्णो के ई-मेल पर सवाल हुआ। तो भी आहलूवालिया ने कहा- पहले मेल को पढि़ए। फिर तय करिए, वह दोषी है या नहीं। सचमुच पवार-पटेल का इतना बचाव तो एनसीपी ने भी नहीं किया। पर अब बीजेपी पवार की सफाई को थोथा बयान बता इस्तीफा मांग रही। अब जरा एनसीपी के डीपी त्रिपाठी ने 22 अप्रैल को जो दलील दी, जरा देख लें। उन ने कहा- हम खेल के राजनीतिकरण में विश्वास नहीं करते। यों इससे बड़ा मजाक कोई और नहीं हो सकता। पर दूसरा सवाल हुआ था- थरूर ने इस्तीफा दिया, तो पवार-पटेल क्यों नहीं। तब त्रिपाठी का जवाब आया- बीजेपी के लोग भी तो बीसीसीआई से जुड़े। पवार ने तो तभी कह दिया था- जिसे जो करना है, करने दीजिए। अब हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। जब पवार पर दबाव बनाने का मौका था, तब बीजेपी बचाव कर रही थी। अब मौका नहीं, तो इस्तीफा मांग रही। कांग्रेस गठबंधन की वजह से दबाव में। सो खुद बोलने के बजाए मामला पवार पर ही छोड़ दिया। पर पवार से कोई कैसी उम्मीद करे। जिनके एक बयान से आम आदमी कराह उठता। अब ललित मोदी पवार का बचाव कर रहे। यानी आईपीएल का गोरखधंधा, बोले तो 1979 में बनी फिल्म गोलमाल को चरितार्थ कर रहा। जहां झूठे का बोलबाला, सच्चे का मुंह काला। गोलमाल है, भाई सब गोलमाल है।
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04/06/2010