Wednesday, December 16, 2009

संगठन चुनाव पर याचना नहीं, रण के मूड में तिकड़ी

इंडिया गेट से
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संगठन चुनाव पर याचना
नहीं, रण के मूड में तिकड़ी
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 संतोष कुमार
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             संसद सत्र खत्म होने को आया। तो विपक्षियों को महंगाई याद आई। ताकि सत्र के बाद जनता के बीच पहुंचें। तो मुंह दिखा सकें। पर चालू सत्र में 26 नवंबर को जब महंगाई पर बहस हुई थी। तब लोकसभा में कोरम के भी लाले पड़ गए थे। सदन का अलार्म तीन बार घनघनाया। फिर भी कोरम पूरा नहीं हुआ। पर किसी ने एतराज नहीं किया। सो बहस चलती रही। देश 26/11 की बरसी में गमगीन था। तभी देर रात सरकार ने बहस का जवाब भी दे दिया। पर इधर संसद में बहस पूरी हुई। उधर महंगाई ने और तेजी दिखा दी। सरकार तो हाथ खड़े कर चुकी। पर विपक्ष के पास भी महंगाई रोकने का कोई फार्मूला नहीं। सो मजबूरी में विपक्ष का हंगामा देख सरकार भी सदन ठप कराना बेहतर समझती। ताकि विपक्ष भी जनता को मुंह दिखा सके। सदन में सरकार की भी फजीहत न हो। पर बात महंगाई रोकने के फार्मूले की। तो जब 26 नवंबर को बहस हुई। तब यहीं पर आपको बताया था। जब आम आदमी को राहत नहीं दे सकते। तो किस विकास का ढोल पीट रहे। अब तो बेहतर यही, अपने नेतागण महंगाई का नाम बदलकर सस्ताई रख दें। संविधान संशोधन कर महंगाई शब्द पर ही बैन लगवा दें। वैसे भी अपने सीपी जोशी ने कुछ ऐसी ही राह दिखा दी। नरेगा को कई राज्य सरकारें अपनी योजना प्रचारित कर रही थीं। तो उसे रोकने के बजाए अपने सीपी जोशी ने नाम ही बदल दिया। पहले राजीव गांधी नाम रखने की सोची। पर बवाल की आशंका से सोनिया ने हरी झंडी नहीं दी। आखिर जोशी ने नरेगा को महात्मा गांधी का मार्का दे दिया। बुधवार को हंगामे के बीच ही नरेगा को मगरेगा करने का संविधान संशोधन बिल पास करा लिया। अब राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम का नाम महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम होगा। है ना, नाकामी पर नकेल कसने का उम्दा फार्मूला। तभी तो कहा, महंगाई शब्द को ही बदल दो। संसद तो वैसे भी मंत्रिपरिषद की कठपुतली बन चुका। डा. लक्ष्मीमल सिंघवी ने भी यही बात कही थी। उन ने कहा था- 'भले सर्वोपरि सत्ता संसद में निहित है। पर वास्तविकता यही, विधि अधिनियमों का गर्भाधान और जन्म मंत्रालयों में होता है। संसद में सिर्फ मंत्रोच्चारण के साथ उपनयन संस्कार कर औपचारिक यज्ञोपवीत दे दिया जाता है।' अब भले विपक्ष के हंगामे से भी आम आदमी को कोई राहत न मिले। पर बुधवार को मुख्य विपक्षी बीजेपी को जसवंत सिंह ने बड़ी राहत दे दी। बीजेपी से बर्खास्त जसवंत ने संसद की पीएसी की कुर्सी छोडऩे से इनकार कर दिया था। सुषमा स्वराज ने स्पीकर तक गुहार लगाई। पर नियम का हवाला दे स्पीकर ने हाथ खड़े कर दिए। सो बीजेपी को कड़वा घूंट पीकर रहना पड़ गया। पर सोमवार को लोकसभा में गोरखालैंड पर जसवंत-आडवाणी के बीच संवाद से बर्फ पिघली। सो अब अचानक जसवंत ने पीएसी की अध्यक्षी से इस्तीफा दे दिया। तो इस्तीफे से पहले बाकायदा मिठाइयां बांटीं। मिठाई बीजेपी को अब तक पानी पिलाने के लिए बांटी या किसी गुप्त समझौते के तहत, यह तो मालूम नहीं। पर राजनीतिक पारी के आखिरी मुकाम से गुजर रहे जसवंत के लिए अपने बेटे मानवेंद्र का कैरियर संवारने की चुनौती। अब बीजेपी में काफी कुछ बदल रहा। सो जसवंत ने पीएसी पर रार ठान कटुता बढ़ाने के बजाए नरमी के संकेत दिए। बीजेपी ने किसी दबाव से इनकार किया। तो जसवंत ने भी स्वेच्छा से इस्तीफे की दलील दी। उधर स्पीकर मीरा कुमार ने जसवंत का इस्तीफा मंजूर कर लिया। सो बीजेपी के दिल को चैन आ गया। पर बीजेपी के नसीब में चैन कहां। अब नितिन गडकरी के नाम का एलान शायद 23 दिसंबर की पार्लियामेंट्री बोर्ड से हो जाए। पर राज्यों की मुसीबत कम नहीं हो रही। राजस्थान बीजेपी की खींचतान अब टूट के कगार पर पहुंच गई। त्रिगुट यानी वसुंधरा, माथुर, रामदास ने संगठन चुनाव पर रोक लगवाने को प्रतिष्ठïा का मुद्दा बना लिया। पर अरुण चतुर्वेदी दिल्ली आकर रामलाल और वेंकैया को सफाई दे गए। पचास फीसदी से ज्यादा चुनाव संपन्न हो चुके। सो अध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो। केंद्रीय चुनाव अधिकारी थावर चंद गहलोत ने बाकायदा 24-25 दिसंबर तारीख भी तय कर दी। विनय कटियार को चुनाव आब्जर्वर तैनात कर दिया। यों पहले 19-20 दिसंबर की तारीख तय थी। पर अब दोनों गुटों को वक्त मिल गया। चतुर्वेदी शायद खामी दूर करेंगे। पर त्रिगुट ने आर-पार का मन बना लिया। बुधवार को रामदास अग्रवाल के घर तिकड़ी चार घंटे बैठी। तो राजनाथ सिंह को चि_ïी सौंपने की तैयारी हुई। तमाम विधायकों-सांसदों के एतराज को भी नत्थी कर लिया। अब भी अगर हाईकमान ने संगठन चुनाव पर रोक नहीं लगाई। तो त्रिगुट यानी वसु, माथुर, रामदास पूरे अमले के साथ चुनाव के दिन जयपुर बीजेपी दफ्तर में मौन प्रदर्शन करेंगे। फिर भी चुनाव हो गया। तो तिकड़ी अरुण चतुर्वेदी के चुनाव को मान्यता नहीं देगी। अलबत्ता अपनी ओर से अध्यक्ष घोषित करने की भी रणनीति बना रही। अगर ऐसा हुआ। तो राजस्थान में बीजेपी का दो-फाड़ तय। पर बीजेपी त्रिगुट की होगी, या अरुण चतुर्वेदी की। यह तभी मालूम पड़ेगा। हाईकमान तो खुद दुविधा में। वेंकैया ने चुनाव रोकने का संदेश दे अरुण चतुर्वेदी को दिल्ली बुलाया था। पर राजनाथ ने वीटो लगा दिया। सो अब तिकड़ी संगठन चुनाव पर याचना नहीं, रण के मूड में।
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16/12/2009