Monday, April 11, 2011

लोकपाल पर ‘अन्नागिरी’ से लहू-लुहान ‘नेतागिरी’

एक अन्ना ने समूची राजनीति को चौकन्ना कर दिया। सो आरामतलब नेता अब अपनी खीझ चाहकर भी नहीं छुपा पा रहे। अन्ना तो सिर्फ नाम, असल में जनता का जागना नेताओं को साल रहा। सो मन की भड़ास निकालने को कुछ नेता दबी जुबान में, तो कुछ सार्वजनिक मंच से बकवास करने लगे। पर कपिल सिब्बल से पहले बात कुमारस्वामी की। कुमारस्वामी अपने पूर्व पीएम एच.डी. देवगौड़ा के बेटे। जोड़तोड़ का जुगाड़ कर 20 महीने कर्नाटक के सीएम भी रह चुके। उन ने लाग-लपेट के बिना यह कबूल लिया- भ्रष्टाचार के हमाम में सभी राजनीतिक नंगे। कुमारस्वामी ने अन्ना समर्थकों को चुनौती दी- बिना भ्रष्टाचार के धन के एक राजनीतिक पार्टी चलाकर दिखाएं। सो अन्ना की मुहिम से राजनीतिक दलों में खीझ क्यों, यह तो अब कोई अनाड़ी भी समझ जाएगा। पर कुमार के बोल यहीं नहीं थमे। उन ने तो यहां तक कह दिया- अगर आज महात्मा गांधी होते, तो वह भी भ्रष्टाचार के जरिए धन जमा करते, वरना राजनीति छोड़ देते। अब इसे बेशर्मी की पराकाष्ठा नहीं कहेंगे, तो क्या कहेंगे? जिन महात्मा गांधी को दुनिया ने अपना लिया, अब उन पर अपने देश के नेता ही उंगली उठा रहे। यों कुमारस्वामी ने यह साबित कर दिया, देवगौड़ा परिवार के पास जमा 700 करोड़ रुपए ईमानदारी के तो नहीं। सचमुच पेशे से किसान रहे एच.डी. देवगौड़ा की जिंदगी की शुरुआत बैलगाड़ी से हुई। अब हम-आप भला क्यों पूछें, खुद उनके बेटे ने अपनी अकूत संपत्ति का स्रोत बता दिया। पर कुमारस्वामी की छोडि़ए, हद तो कपिल सिब्बल ने पार कर दी। सिब्बल खुद लोकपाल बिल पर ड्राफ्टिंग कमेटी के मेंबर। पर दिल की खीझ जुबां पर आई। तो भ्रष्टाचार से लडऩे की मनमोहन सरकार की गंभीरता उजागर हो गई। अन्ना का अनशन तुड़वाने में सिब्बल को पांच दिन लग गए। सो इतवार को खूब भड़ास निकाली। बोले- अगर गरीब बच्चे के पास पढऩे का साधन नहीं, तो लोकपाल विधेयक उसकी क्या सहायता करेगा। गरीब को स्वास्थ्य सेवा की जरूरत। तो लोकपाल कैसे मदद करेगा? पर मनमोहन सरकार के काबिल मंत्री कपिल सिब्बल शायद भूल गए। देश में शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर आजादी के 64 साल बाद भी दयनीय, तो इसके लिए नेता ही जिम्मेदार। शिक्षा-स्वास्थ्य के लिए दिया जाने वाला बजट कभी पूरी ईमानदारी से खर्च नहीं होता। गरीबों के लिए शुरू की गई सभी योजनाओं को उठाकर देखो। तो भ्रष्टाचार का कीड़ा हर जगह नजर आएगा। नरेगा में रोजगार चाहिए, तो ठेकेदार से लेकर मुखिया तक को रिश्वत। सर्वशिक्षा अभियान के तहत नौकरी चाहिए, तो पहले मुखिया, फिर ऊपर के अधिकारियों का पेट भरो। इंदिरा आवास का मकान चाहिए, तो 45 हजार में से बीडीओ पहले ही पांच हजार काट लेगा। फिर सिफारिश करने वाला मुखिया कोई धर्म-खाता खोले तो नहीं बैठा। सो कुछ दक्षिणा उसकी भी बनती। स्वास्थ्य मिशन का हाल तो पूछो मत। कागजों पर दवाइयां लिखी जातीं। पर गरीबों को मिलती नहीं। अगर कभी कोई छापा पड़ जाए, तो खुदरा दुकानदारों के पास नॉट फॉर सेल वाली दवाइयां यों ही मिल जाएंगी। सो अब कोई कपिल सिब्बल से पूछे- क्या शिक्षा-स्वास्थ्य में भ्रष्टाचार नहीं होता? क्या लोकपाल जैसी मजबूत संस्था के आने से शिक्षा-स्वास्थ्य का भ्रष्टाचार थम जाए, तो उसका फायदा गरीबों को नहीं होगा? पर माफ करिए, यह सवाल भला कपिल सिब्बल से क्यों पूछें। जिन्हें एक नील 76 खरब के टू-जी घोटाले में कोई घोटाला नजर नहीं आता। राजा घोटालेबाज नजर नहीं आते। हमेशा विपक्ष जिन्हें झूठा नजर आता। ऐसे कपिल सिब्बल से अन्ना के आंदोलन पर ऐसे बयान की उम्मीद थी। सो सोमवार को अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र लौटने से पहले सिब्बल पर पलटवार किया। बोले- अगर लोकपाल बिल से कुछ नहीं होगा, तो सिब्बल संयुक्त समिति से इस्तीफा दे दें। यों बयान पर बवाल मचने के बाद सोमवार को सिब्बल ने भी सफाई दी। उनके बयान का गलत मतलब निकाला गया। पर सिर्फ सिब्बल नहीं, ड्राफ्टिंग कमेटी के दूसरे मेंबर ने भी लोकपाल बिल को बेमतलब बताने की कोशिश की। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद की दलील सुनिए। भगवान के रहने पर भी अपराध होता है। तो भला लोकपाल बिल से क्या होगा। सचमुच भ्रष्टाचार के सागर में डुबकी लगा कांग्रेस अब काफी प्रेक्टीकल हो गई। यों अभी तो लोकपाल पर जुबानी जंग की शुरुआत। बीजेपी भी अंदरखाने कसमसा रही। सपा के मोहन सिंह, एनसीपी के तारिक अनवर और कई कांग्रेसी नेताओं की दलील- ऐसा होने लगा, तो फिर संसद का क्या महत्व रहेगा? पर संसद को महत्व की दुहाई देने वाले नेता संसद में क्या गुल खिलाते, यह जगजाहिर। अगर संसद की इतनी सुध, तो 42 साल से लोकपाल बिल पर कुंडली मारे क्यों बैठे रहे? सो अन्ना के आंदोलन पर खीझ की एकमात्र वजह- नेता अपने गले में घंटी नहीं बांधना चाहते। अगर लोकपाल बिल में अन्नागिरी चली, तो कुबेर का खजाना बनी राजनीति में मंदी का दौर आ जाएगा। फिर जेब भरने और भाई-भतीजावाद करने से पहले सोचना होगा। सो राजनेताओं का एक बड़ा तबका अब अन्ना के खिलाफ हाथ धोकर पड़ गया।
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11/04/2011