Wednesday, June 2, 2010

अब जनता ने दिखाया लेफ्टियों को 'पाछा'

अब बंगाल ममता की छांव में आने को बेताब। लोकसभा चुनाव लीग मैच था, तो निकाय चुनाव सेमीफाइनल। ममता बनर्जी ने अबके न सिर्फ लेफ्ट, अलबत्ता कांग्रेस को भी औकात बता दी। कांग्रेस ममता बिन चुनाव में उतरी। पर अबके दांव उल्टा पड़ गया। कांग्रेसी गढ़ में भी ममता का ही परचम लहराया। सो बुधवार को कांग्रेस नतमस्तक थी। अब कांग्रेस रिश्ता सुधारने में जुटी। कल तक होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस हादसे की सीबीआई जांच को संविधान की दुहाई देकर ठुकरा रहे थे। पर ममता एक्सप्रेस बंगाल की पटरी पर बेधडक़ दौड़ी। तो चिदंबरम को संविधान और कानून समझ आ गए। अब ममता की मांग के मुताबिक सीबीआई जांच का आदेश हो गया। तो कांग्रेस ने भी ममता के पीछे चलना कबूल कर लिया। खुद ममता ने भी कोई गांठ नहीं बांधी। अलबत्ता कांग्रेस के साथ गठबंधन जारी रखने का एलान किया। पर कांग्रेस-तृणमूल के रिश्तों से इतर बंगाल चुनाव के नतीजों से यह साफ हो गया, अब लेफ्ट फ्रंट का तख्ता पलट महज औपचारिकता। सचमुच नतीजों ने लेफ्ट फ्रंट का तिलिस्म तोड़ दिया। पेंतीस साल बाद आखिर किला ढहने लगा। तो सवाल लेफ्ट फ्रंट और नेतृत्व के अस्तित्व का। जब तक ज्योति बसु सीएम रहे, बंगाल में लेफ्ट का किला मजबूत हुआ। पर कमान बुद्धदेव ने संभाली। तो पुरातन नीतियां और आधुनिक सोच के बीच लेफ्ट का कॉकटेल हो गया। वामपंथियों का हमेशा से नारा रहा- लैंड बिलोंग्स द टिलर। यानी भूमि सिर्फ खेतिहारों की। पर सत्ता का नशा सिर चढक़र बोलने लगा। तो सिंगूर और नंदीग्राम में वामपंथियों का असली चेहरा सामने आ गया। और नया नारा हो गया- लैंड बिलोंग्स द मिलर। कैसे पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार ने किसानों-मजदूरों पर गोलियां चलवाईं। समूचा देश तब जनरल डायर को याद कर रहा था। नंदीग्राम में किसानों ने अपनी जमीन देने से इनकार कर दिया। तो 14 मार्च 2007 को ढाई हजार पुलिस कर्मियों ने घेरा बना गांव वालों पर गोलियां बरसा दी थीं। सिंगूर में भी किसानों की जमीन बुद्धदेव सरकार ने जबरन ली। तो ममता बनर्जी ने आमरण अनशन कर वामपंथियों का चेहरा बेनकाब कर दिया। तबके राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को सीधे दखल देना पड़ा था। कलाम ने बुद्धदेव से दो बार बात की। तब जाकर बुद्धदेव नरम पड़े और ममता का 25 दिन का उपवास टूटा। पर जैसे ही मामला ठंडा हुआ। बुद्धदेव ने टाटा को पुलिस सुरक्षा मुहैया करा नैनो प्रोजैक्ट पर काम शुरू करा दिया। पर ममता की मोर्चेबंदी ने सरकार को नाकों चने चबवा दिए। यों ममता को सीपीएम काडर ने कम परेशान नहीं किया। फिर भी ममता अपने लक्ष्य के प्रति डटी रहीं। आखिर टाटा ने सिंगूर छोड़ दिया। नंदीग्राम में एसईजेड की योजना धरी रह गई। पर जनता ने वामपंथ का असली चेहरा देख लिया। सचमुच वामपंथियों ने बंगाल को राज्य नहीं, अपना गढ़ बनाकर चलना चाहा। वामपंथियों की सोच आजादी के बाद ही साफ हो गई थी, जब 14-17 फरवरी 1948 को कलकत्ता में सम्मेलन हुआ। कलकत्ता थीसिस तैयार हुई। तो वामपंथियों ने देश की आजादी को सच्ची आजादी मानने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, अपने संविधान को दासता का घोषणा पत्र तक कहा। तब वाम नेता रणदिवे ने कहा था- भारत में भी रूस की अक्टूबर क्रांति की तर्ज पर अंतिम क्रांति शुरू की जा सकती है। फिर 1964 में वामपंथ में दो-फाड़ हुआ। तो ए.के. गोपालन, ज्योति बसु, प्रमोद दासगुप्त, पी. रामामूर्ति ने सीपीएम बनाई। अब जरा उस सीपीएम की बनाई नीति का मजमून देखो- उद्योग धंधों का राष्ट्रीयकरण हो, जमींदारी प्रथा खत्म हो, भूमिहीन-कमजोर तबकों के बीच भूमि बांटी जाए, किसानों-खेतिहर और गांव के गरीब को मुफ्त जमीन दी जाए, गरीब किसानों को किसी भी सूरत में उसके खेतों से बेदखल न किया जाए। पर सिंगूर-नंदीग्राम में उसी सीपीएम सरकार ने क्या किया। किसानों-गरीबों से जमीन छीनने के लिए खून की नदियां बहा दीं। पर संसद से सडक़ तक खूब हंगामा बरपा। फिर भी वामपंथियों ने अफसोस नहीं जताया। अलबत्ता स्टालिन की भाषा बोलती रही। नंदीग्राम में नरसंहार के बाद तबके सीपीएम सांसद हन्नान मौला की टिप्पणी याद दिलाते जाएं। कहा था- नंदीग्राम में अपराधी तत्व। सो 15 मरे तो क्या, पांच सौ भी मर जाएं, हम पीछे नहीं हटेंगे। जब वामपंथियों की सोच ऐसी, तो पाप का घड़ा एक न एक दिन फूटना ही था। अब तो लेफ्ट फ्रंट ही टूट के कगार पर। सिंगूर-नंदीग्राम में भी सीपीएम के सहयोगियों ने मोर्चा खोला था। पर सत्ता का गुमान इस कदर हावी था, सीपीएम ने किसी की नहीं सुनी। अपने बुद्धिजीवी वर्ग को भी कुपित कर लिया, जो सीपीएम का थिंक टेंक हुआ करता था। नंदीग्राम में नरसंहार का एक वाकया तब महाश्वेता देवी ने बयां किया था। कैसे कुछ स्त्री-पुरुषों के गुप्तांगों-जननागों में गोली मारी गई, जिससे लोग नित्य क्रियाएं भी नहीं कर पा रहे। पर नंदीग्राम से पहले ही सीपीएम काडर की बेशर्मी दिखने लगी थी। मेधा पाटेकर और ममता बनर्जी के आंदोलन चल रहे थे। तब सीपीएम सेंट्रल कमेटी के एक सदस्य विनय कोंगार ने खुले आम कहा था- 'मेधा और ममता नंदीग्राम जाएंगी, तो सीपीएम समर्थक उन्हें अपना पाछा दिखाएंगे।' सचमुच ऐसा हुआ भी, जब मेधा नंदीग्राम गईं। तो सीपीएम कॉडर ने अपना पेंट खोलकर पाछा दिखाया था। सो सांच को आंच नहीं। बंगाल की जनता ने अब उसी सीपीएम को 'पाछा' दिखा दिया।
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