Friday, March 11, 2011

तो भ्रष्टाचार के मौसम में बढा दी सांसद निधि

‘क्या पैसा-पैसा करती है.. क्यों पैसे पे तू मरती है.... पैसे की लगा दूं ढ़ेरी.. दे दना दन पैसा-पैसा.. मैं बारिश कर दूं पैसे की जो तू हो जाए मेरी..।’ फ्लॉप हिंदी सिनेमा दे-दना-दन के इस गाने को अपना प्रणव दा ने सांसदों को सुपरहिट बना दिया। दे दना दन सांसदों की निधि बढ़ा दी। भले आम बजट से आम आदमी को कोई फौरी राहत नहीं मिली। पर बजट चर्चा के जवाब में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सांसदों को मुंहमांगी मुराद थमा दी। सांसद निधि को एक झटके में बढ़ाकर दो से पांच करोड़ कर दिया। सो बहस में सरकार की आलोचना करने वाले सांसद भी गदगद हो गए। क्या विपक्ष, क्या लेफ्ट और क्या सत्ता पक्ष, कुल मिलाकर समूचे सदन ने मेजें थपथपा कर खुशी का इजहार किया। सो प्रणव दा के जवाब के वक्त सदन में शांति रही। प्रणव दा की ओर से पेट्रोल की कीमत बढऩे का एलान भी विपक्ष की मदहोशी नहीं तोड़ पाई। सो उन ने विपक्ष को खूब आड़े हाथों लिया। बजट को रोजगार विहीन बताने पर प्रणव ने मनरेगा की याद दिलाई। यूपीए राज में उठे चार बड़े कदमों- राइट टू एम्पलॉयमेंट, राइट टू इन्फोर्मेशन, राइट टू एजुकेशन और अब राइट टू फूड का जिक्र किया। पर सिवा काले धन के विपक्ष ने टोका-टाकी तक नहीं की। सो सवाल, सांसद निधि क्या सांसदों का मुंह बंद करने के लिए बढ़ाई गई? बजट पर हुई बहस में विपक्ष ने जोर-शोर से महंगाई, किसान, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था। पर प्रणव दा ने यहां भी चतुराई दिखा दी। आम आदमी को तो महंगाई की मार अभी और झेलनी पड़ेगी। सो दादा ने सीधे आम आदमी की आवाज उठाने वाले नुमाइंदों के मुंह पर ‘निधि’ मार दी। प्रणव दा का ऐसा मंत्र देख सोमनाथ दादा की याद आ गई। दोनों बंगाल की राजनीति के पुरोधा। दोनों ने केंद्र की राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल किया। पर फर्क देखिए- सोमनाथ दा ने सांसद निधि में घपले का मर्ज समझ हकीम की तरह ईलाज करने की कोशिश की। भले सांसद निधि को खत्म कराने में सफल नहीं हो पाए। पर प्रणव दा ने तो मर्ज को समझकर उसे और हवा दे दी। वह भी तब, जब बिहार जैसे बेहद पिछड़े राज्य ने हाल ही में ऐतिहासिक कदम उठा विधायक निधि खत्म कर दी। नीतिश सरकार की इस पहल के बाद सांसद निधि भी खत्म होने की आस थी। पर प्रणव मुखर्जी ने उसमें ढ़ाई गुना इजाफा कर दिया। सचमुच ईमानदार आदमी हमेशा कोने में खड़ा रोता ही रहेगा, क्योंकि भ्रष्टाचार के इस मौसम में ईमानदारी किसी काम की नहीं। सांसद निधि के मामले में भ्रष्टाचार की शिकायतें कोई नई बात नहीं। ऑपरेशन दुर्योधन में पकड़े गए 11 सांसद सवाल के बदले घूसकांड में बर्खास्त हो चुके। फिर ऑपरेशन चक्रव्यूह में करीब सात सांसद फंसे थे, जो सांसद निधि में घपलेबाजी पर ही आधारित था। पर सांसद निधि के घपलेबाज सांसद चौदहवीं लोकसभा में सस्ते में छूट गए थे। सो सांसद निधि को लेकर हर बार बहस हुई। पर बहुमत सांसद इसे खत्म करने के बजाए बढ़ाने की पैरवी करते रहे। सांसद निधि को दो से पांच करोड़ करने की मांग वाजपेयी सरकार के वक्त से चली आ रही। पर तब अरुण शौरी ने भ्रष्टाचार की कथा सुना वाजपेयी को रोक लिया। अपने ही सांसद शौरी के खिलाफ खड़े हो गए। फिर भी शौरी नहीं माने। पर महंगाई, भ्रष्टाचार के भंवर में गोते लगा रही मनमोहन सरकार ने अबके एक झटके में अमलीजामा पहना दिया। यों इस निधि की शुरुआत महाराष्ट्र से हुई। राम नाईक अस्सी के दशक में विधायक थे। चुनाव क्षेत्र से लोग छोटे-मोटे काम के लिए आते थे। कहीं खरंजा, कहीं सीवर, तो कही पुलिया आदि। सो राम नाईक ने मुहिम चलाई और महाराष्ट्र में निधि तय हो गई। फिर राम नाईक जब सांसद बने, तो वही मुहिम दोहरा दी। आखिर पांच साल की मेहनत ने रंग दिखाया। नरसिंह राव की सरकार ने एक करोड़ की सांसद निधि तय कर दी। शुरुआती साल में ही इसके नतीजे दिखने लगे। ठेकेदार ठेका हासिल करने के लिए सांसदों तक 15 से 20 फीसदी कमीशन पहुंचाने लगे। सो फिर निधि दो करोड़ करने की मांग हुई। और अब पूरे पांच करोड़ तय हो गए। पर क्या कमीशनखोरी बंद हो जाएगी? बीस नहीं, अगर 15 फीसदी भी कमीशन जोड़ें। तो पांच करोड़ का सालाना कमीशन हुआ पिचहत्तर लाख। यानी मासिक कमीशन छह लाख पच्चीस हजार। अब किसी सांसद को बैठे-ठाले 6.25 लाख मिले और क्षेत्र में काम भी दिखे। तो भला कौन सांसद ऐसी निधि का विरोध करेगा। यह तो सांसदों के हाल में बढ़े वेतन-भत्ते से कहीं अधिक। सो सवाल- मनमोहन सरकार ने आम आदमी को राहत देने के बजाए सांसदों को तोहफा क्यों थमाया? प्रणव दा ने खुद माना, इस बढ़ोतरी से खजाने पर 2, 370 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। अब कोई पूछे, सांसद निधि अभी नहीं बढ़ाते। तो कौन सी आफत टूट पड़ती। आज तो सबसे बड़ी जरुरत आम आदमी को महंगाई से निजात दिलाने की है। पर शुक्रवार को सरकार ने आम आदमी को महंगाई का डर दिखाया। तेल की कीमतें बढ़ाने का इशारा किया। पर सांसदों को रेवड़ी थमा दी। ताकि आम आदमी काटे घास, मलाई काटे सांसद। जैसे ब्लैक मनी के मामले में हसन अली को जमानत मिल गई। सेशन कोर्ट ने माना, जांच एजेंसी के पास पुख्ता सबूत नहीं। यानी सरकार ने जान-बूझकर कमजोर केस बनवाया। सो टू-जी मामले में भले निगरानी सुप्रीम कोर्ट की। पर तथ्य तो सीबीआई को ही जुटाना। सो होगा वही, जो मंजूर-ए-मनमोहन सरकार होगा।
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11/03/2011