Thursday, October 8, 2009

तो क्यों ना दिल्ली वालों को बाड़ में डाल दें!

इंडिया गेट से --------- तो क्यों ना दिल्ली वालों को बाड़ में डाल दें! --------------- • संतोष कुमार ----------- अब बीजेपी में वेंकैया वाणी निकली। तो आडवाणी के बिना कोई वाणी कैसे पूरी हो। सो वेंकैया ने 2014 में बिन आडवाणी चुनाव लड़ने की राय जता दी। उन ने 2014 से पहले नया नेतृत्व ढूंढने की बात कही। यों वेंकैया वाणी में कोई नयापन नहीं। पर बयानबाजी का मकसद आडवाणी भी बखूबी समझ रहे होंगे। सो आडवाणी कुपित न हों, वेंकैया ने खुद को सगा बताने में भी कसर नहीं छोड़ी। बोले- आडवाणी को पंद्रहवीं लोकसभा के लिए विपक्ष क नेता चुना गया। अब उन पर ही निर्भर करता है, वह कब पद से हटते हैं। यों सुषमा स्वराज ने तो पांच साल का टर्म पूरा करने का खुल्लमखुल्ला एलान किया था। तो संघ वाले कुपित हो गए। सो वेंकैया ने नया फार्मूला निकाला- सबका भला हो, पर शुरुआत मेरे से हो। सो बात भी कह दी, आडवाणी को नाराज भी न किया। संघ की भृकुटि भी न तनी। वेंकैया यही तो चाह रहे। जैसे भी हों, फिलहाल गुटबाजी से बचें। वेंकैया की नजरें फिर अध्यक्ष की कुर्सी पर जमीं। वैसे भी ठीक पांच साल पहले इन्हीं दिनों वेंकैया कुर्सी से विदा हुए थे। जब 2004 में बीजेपी लोक सभा हारी। तत्काल बाद अक्टूबर में महाराष्ट्र की जनता ने भी भरोसा नहीं किया। तो वेंकैया नायडू पत्नी की बीमारी का हवाला दे अध्यक्षी आडवाणी को सौंप गए। पर सही मायने में तब भी बीजेपी की दूसरी पांत में जबर्दस्त उठापटक थी। वेंकैया को जेतली सरीखे नेता भाव नहीं दे रहे थे। सो वेंकैया ने कुर्सी छोड़ आडवाणी से बैठने की मनुहार की थी। अब पांच साल बाद वेंकैया उसी कुर्सी के लिए जोर-आजमाइश कर रहे। यानी महाराष्ट्र के चुनाव नतीजे बीजेपी में फेरबदल का अध्याय शुरू करेंगे। सो महाराष्ट्र की सत्ता हासिल करने को पूरी ताकत झोंक दी। बाकायदा वोट के दिन छुट्टी का भी एलान हुआ। पर लगे हाथ शर्त जोड़ दी गई। यानी जो सरकारी मुलाजिम वोट डालने नहीं जाएगा, उसकी छुट्टी रद्द मानी जाएगी। सैलरी में से पैसा कटेगा। यानी जबरन वोट डलवाने की तैयारी। कहीं ऐसा न हो, नेता अपने निकम्मेपन का ठीकरा आम वोटर के सिर फोड़ दे। और भविष्य में वोट न डालने वालों पर जुर्माने लग जाएं। राजनेता अब लोकतंत्र को मुट्ठी में करने की जुगत भिड़ा रहे। पर जब तक नेता अपने सुधरने का मापदंड तैयार नहीं करते। तब तक जबरन वोट की कोश्शिश कहां तक जायज। पर यह मुद्दा व्यापक बहस का। सो बात चुनावी समर की । चुनाव अभियान के आखिरी दौर में जुबानी जंग भी उफान पर। गुरुवार को राहुल ने पनवेल में चुनावी सभा की । तो नरेगा का राग खूब अलापा। भारत को दो हिस्सों में बांटा। पहला- बैकवर्ड इंडिया, दूसरा- शाइनिंग इंडिया। पहले का प्रहरी कांग्रेस को बताया। तो दूसरे को विपक्ष का साथी। राहुल बोले- हम संसद में गरीबों के लिए नरेगा लाए। तो विपक्ष ने पैसा जाया करने का आरोप लगाया। विपक्ष की यही आदत हो चुकी, गरीबों को पैसा देना इन्हें नहीं सुहाता। उन ने एक और पते की बात कही। बोले- सत्तर साल पहले देश में सभी गरीब थे। आज आधा देश तरककी कर रहा। तो क्या राहुल का मतलब यह, देश की बाकी गरीबी दूर करने के लिए कांग्रेस को और सत्तर साल चाहिए। पर राहुल बाबा किस विकास की बात कर रहे। इसका नमूना तो गुरुवार को देश की राजधानी दिल्ली में मिल गया। कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी पर लंबे अरसे से सवाल उठ रहे। पर सरकारी अमला सोया पड़ा था। अब कॉमनवेल्थ गेम्स फैडरेशन के अध्यक्ष माइक फेनेल ने मेजबानी छीनने की चेतावनी दी। तो समूचा तंत्र नींद से जागा। पर गुरुवार को कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर जो हुआ। लोकतंत्र के हित में तो कतई नहीं। तैयारियों से रू-ब-रू कराने के लिए 71 देशों के डेलीगेट्स का दौरा शुरू हुआ। तो सुबह के आठ बजे से शाम के सात बजे तक सभी अहम रोड मानो सील हो गए। पुलिस ने दो दिन पहले ही इश्तहार दे एडवाइजरी जारी कर दी। वाकई पुलिस-प्रशासन और अपनी सरकार ने निकम्मापन छिपाने को बढ़िया तरीका ईजाद किया। ट्रेफिक की बदहाली विदेशी मेहमान न देख सके । सो दिल्ली वालों को बाड़ में बंद करने की कोशिश। पर अभी तो शुरुआत हुई। खेल शुरू होने में सालभर बाकी। ऐसे कई ड्रामे होंगे, जब निकम्मी व्यवस्था के संचालक धौंस दिखा दिल्ली वालों को बाड़ में बंद करेंगे। तभी तो तैयारी का मौका-मुआइना विदेशी मेहमानों को कराया। पर मीडिया को भी पास नहीं फटकने दिया। अभी ऐसा हाल, तो 2010 में क्या होगा। क्यों न सरकार अभी से उम्दा बाड़ तैयार करे। जब तक दिल्ली में गेम्स हों, सभी दिल्ली वालों को बाड़ में ठूंस दें। यही होता है, जब किसी सरकारी अस्पताल में मंत्री का दौरा हो। तो मरीजों के बिस्तर पर झक सफेद चादर बिछ जाती। जैसे ही मंत्री गए, प्रशासन भेड़चाल शुरू कर देता। अब 70 साल में देश की राजधानी का यह विकास। तो राहुल बाबा ही बताएं। बाकी 70 साल में कैसा होगा विकास ? या फिर हर बार यही होगा, अपनी बदहाली छिपाने को आम आदमी को बाड़ में बंद कर दो। सो गुरुवार का वाकया देख होम मिनिस्टर पी. चिदंबरम की वह चेतावनी याद आ गई। याद है ना, उन ने यही कहा था- दिल्ली वालो खुद से सुधर जाओ, वरना हम सुधार देंगे। सो लोक तंत्र में दिखावे की खातिर अपनी ही जनता पर चाबुक बरसाने की तैयारी। पर रंगा सियार कब तक शेर बना रहेगा। तैयारी की पोल तो एक प्रतिनिधि ने खोल ही दी। जब कहा- कुछ काम तो हुआ है। पर अभी बहुत बाकी। --------- 08।10।2009

नदी जोड़ो परियोजना ठप, कटघरे में इंदिरा या अटल?

इंडिया गेट से --------- नदी जोड़ो परियोजना ठप, कटघरे में इंदिरा या अटल? --------------- • संतोष •ुमार ----------- कहीं चुनावी तू-तू, मैं-मैं। तो कहीं बाढ़ से तबाही। महाराष्ट्र, हरियाणा में सियासी पारा उफान पर। तो कर्नाटक , आंध्र में नदियों •ा हाल भी वही। सो सोनिया-राजनाथ जैसे दिग्गजों •े चुनावी दौरे धुल रहे। सोनिया •ो महाराष्ट्र •े बजाए आंध्र •े बाढ़ग्रस्त क्षेत्र •ा जायजा लेने पहुंचना पड़ा। आंध्र, •र्नाट•, महाराष्ट्र में बाढ़ ने ऐसा •हर बरपा रखा। अब त• •रीब ढाई सौ जानें जा चु•ीं। लाखों लोग बेघर हो चु•े। अभी भी बारिश रु•ने •ा नाम नहीं। •ृष्णा नदी •ा उफान सौ साल •ा भी रि•ार्ड तोड़ चु•ा। ऐसा लग रहा, मानो •ृष्णा नदी समुद्र बन चु•ी। अब बारिशों से नदियां •ैसा तांडव मचा रहीं। आप खुद देख लीजिए। हरियाणा थोड़ा सा ज्यादा पानी छोड़ दे। तो दिल्ली में बाढ़ •ा खतरा बढ़ जाता। राज्यों में •ई ऐसे उदाहरण। पर छह साल बाद मनमोहन सर•ार •ो नदी जोड़ो परियोजना में खोट नजर आ रहा। सो अब परियोजना •ो ठंडे बस्ते में डालने •ा एलान हो गया। यानी सोमवार •ो ए• तरफ तबाही •ा मंजर। तो दूसरी तरफ प्रोजैक्ट बंद •रने •ा एलान हुआ। मनमोहन •ी रहनुमाई में गंगा नदी घाटी प्राधि•रण •ी मीटिंग हुई। तो मीटिंग •े बाद वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने यह एलान ç•या। बोले- क्वप्रोजैक्ट •े जादुई आं•ड़ों में न जा•र हमें वास्तवि•ता •ो देखना होगा। अगर नदियों •ो जोड़ दिया गया, तो उस•े बहुत घात•, मानवीय, पारिस्थिति•ीय, आर्थि•-सामाजि• प्रभाव होंगे। यह ए• विनाश•ारी योजना साबित होगी।ं यों जयराम आज•ल पर्यावरण मामले में •ाफी एक्टिव। रोजाना दो प्रेस •ांफ्रेंस न •र लें, तो बदहजमी हो जाती। अब सोमवार •ो नदी जोड़ो परियोजना •े बंटाधार •ा एलान ç•या। तो मंगलवार •ो फिर होटल हयात में सुबह दस बजे प्रेस •ांफ्रेंस। अब जयराम जो भी बांचें। पर क्या मनमोहन सर•ार •ी यही सादगी? तीन राज्य बाढ़ से तबाह हो रहे। तो दूसरी तरफ मंत्री जयराम ही सोनिया-मनमोहन •े सादगी मंत्र •ा बाजा बजा रहे। फाइव स्टार होटल में प्रेस •ांफ्रेंस और आंध्र-•र्नाट• में बाढ़ से तबाही। यह •ैसा सामंजस्य है सर•ार •ा? पर बात नदी जोड़ो परियोजना •ी। तो जयराम रमेश ने प्रोजैक्ट •ो महज •ागजों पर शानदार दिखने वाला बताया। बोले- क्वयह •हना आसान है ç• नदी जोड़ने से बाढ़-सूखे •ी नौबत नहीं आएगी। पर असल में यह विनाश•ारी है।ं अब सवाल, मनमोहन सर•ार •ो यह बात समझने में छह साल क्यों लग गए? प्रोजैक्ट तो शुरू से ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। अब उसे औपचारि• तौर से खारिज ç•या। तो म•सद सिर्फ यही, राहुल बाबा •े •हे •े आगे •ोई नई ल•ीर नहीं खींच स•ते। हाल ही में राहुल बाबा चैन्नई गए। तो नदी जोड़ो परियोजना •े बारे में हू-ब-हू वही शब्द, जो सोमवार •ो जयराम ने •हे। राहुल ने प्रोजैक्ट •ो विनाश•ारी बताया था। सो सर•ार जो छह साल में न •र स•ी। राहुल वाणी •े बाद महज छह हतों में •र दिखाया। राहुल ने प्र•ृति •े साथ खिलवाड़ न •रने •ी दलील दी थी। यों दलील सोलह आने सही। पर साथ चलने में क्या हर्ज। नरोरा डैम हो या सरदार सरोवर बांध। •ुछ न •ुछ खिलवाड़ तो हुआ ही। फिर भी सामंजस्य बिठा•र मानव •ल्याण •ी •ोशिश में क्या हर्ज। अगर सिद्धांत बना•र बैठ जाएं, तो क्या होगा। तब तो वही होगा, जो बिहार में •ोसी ने ç•या। अब आंध्र में •ृष्णा नदी •र रही। नदी जोड़ो परियोजना वाजपेयी •ा ड्रीम थी। सो मनमोहन सर•ार ने ठंडे बस्ते में डाला। वाजपेयी ने 201भ् त• देश •ी सभी नदियों •ो जोड़ने •ा लक्ष्य रखा था। सुरेश प्रभु •ी रहनुमाई में टास्• फोर्स बन चु•ी थी। पांच लाख साठ हजार •रोड़ •ी महत्वा•ांक्षी परियोजना पर तब भी सवाल उठे थे। पर दुनिया में तारीफ भी हुई थी। अब राहुल •ो खुश •रने •े लिए मिनटों में महत्वा•ांक्षी प्रोजैक्ट धराशायी हो गया। पर सनद रहे सो बता दें। प्रोजैक्ट भले वाजपेयी •ा ड्रीम था। पर ह•ी•त में पहल इंदिरा गांधी •े राज में हुई। यह दावा अपना नहीं, अलबत्ता 14 सितंबर 2004 •ो तब•े जल संसाधन मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने ç•या था। बंगाल-असम •ा डैलीगेशन दासमुंशी से मिला। तो बाहर आ•र मुंशी ने जो •हा था, आप खुद देख लें- क्वनदी जोड़ो परियोजना बंद •रने •ा सर•ार •ा •ोई इरादा नहीं। योजना चालू है, व्यावहार्यता रिपोर्ट पर •ाम जारी है। मूल रूप से यह प्रोजैक्ट 1982 में ही आगे बढ़ा। जब तत्•ालीन पीएम इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय जल वि•ास प्राधि•रण गठित ç•या।ं अब दासमुंशी •ोई भाजपाई नहीं, खाटी •ांग्रेसी। यों सही मायने में नदी जोड़ो •ा •ांसैप्ट 1881 में ऑर्थर •ॉटन ने दिया था। पर ब्रिटिश राज ने 66 साल राज ç•या, फिर भी योजना धूल फां•ती रही। फिर 1972 में पहल शुरू हुई। तो •े।एल। राव •ो व्यावहार्यता रपट •ा •ाम सौंपा गया। जिन ने इस•ी पैरवी •ी। गंगा-•ावेरी और ब्रह्मपुत्र-गंगा •ो जोड़ने •ी विस्तृत रपट भी आई। पर प्रोजैक्ट में तेजी तब आई, जब दिसंबर 1999 में वाजपेयी सर•ार ने पहल •ी। अब राहुल बाबा हों या मनमोहन सर•ार। नदी जोड़ो परियोजना •ो विनाश•ारी बता रहे। तो ç•स•ी समझ पर सवाल उठा रहे। इंदिरा •ी या वाजपेयी •ी? अगर अध्ययन •े बाद नदी जोड़ दी जाएं। तो पानी •ो इधर से उधर •रना आसान होगा। पर राजनीति हर योजना में हावी। अब तो राहुल बाबा प्रोजैक्ट •ो विनाश•ारी बता चु•े। तो सर•ार में ç•स विद्वान •ी मजाल, जो प्रोजैक्ट •ा समर्थन •रे। --------- 05।10।2009

साउथ •ी बाढ़ •े बहाने ही संजीवनी ढूंढ रही बीजेपी

इंडिया गेट से --------- साउथ •ी बाढ़ •े बहाने ही संजीवनी ढूंढ रही बीजेपी --------------- • संतोष •ुमार ----------- जाति न पूछो साधु •ी। अब •ोई •ांग्रेसी दलित •े घर नहीं जाएगा। राहुल बाबा ने •ुछ यही •हा। बुधवार •ो तिरुअनंतपुरम में थे। तो विपक्ष •े हमले से क्षुब्ध दिखे। सो उन ने •हा- क्वमैं जाति व्यवस्था में भरोसा नहीं •रता। सो इन्सान •े घर जाता हूं। ç•सी दलित •े घर नहीं। मैंने अपने •ार्यालय •ो सबसे गरीब गांव •े गरीब व्यक्ति •े घर जाने •ी व्यवस्था •रने •ो •हा था। आप उसे दलित •े रूप में देखते हैं, मैं गरीब व्यक्ति •े रूप में।ं यानी चाय •ी दु•ान चलाने वाला व्यक्ति हो। या यूनिवçर्सटी में पढ़ने वाला छात्र। राहुल मिलने में भेदभाव नहीं •रते, न जाति पूछते। पर गरीबी •ा राग भी •बसे अलाप रहे हम। •भी गरीबी हटाओ •ा जुमला। तो •भी एटमी ता•त होने •ा गौरव। पर आजादी •े छह दश• बाद भी गरीबी क्यों नहीं मिटी? गरीबी •ी माला जप ç•तनों ने सालोंसाल राज ç•या। पर गरीबी खत्म न हुई। अलबत्ता गरीबों और अमीरों •े बीच लंबी खाई बढ़ चु•ी। तभी तो पूर्व डिप्टी पीएम देवीलाल ने आगाह ç•या था। जब •हा- क्वअर्थव्यवस्था •ा यही हाल रहा, अमीरी-गरीबी •ी खाई इसी तरह बढ़ी। तो वह दिन दूर नहीं, जब लोग गांव से ट्रेक्टर पर आएंगे और दिल्ली जैसे महानगर •ो लूट ले जाएंगे।ं देश •े 84 •रोड़ लोग आज भी महज 20 रुपए दिहाड़ी पर जीवन बिताने •ो मजबूर। आखिर ऐसी असमानता •ा जिमेदार •ौन? तभी तो देश में नक्सलवाद-उग्रवाद •ी समस्या चुनौती बन चु•ी। नक्सलियों •ा हौसला इस •दर बढ़ चु•ा। इंस्पेक्टर फ्रांसिस इंदवार •ा अपहरण •र हत्या •र दी। इंदवार •ा सिर धड़ से अलग •र सड़• पर फें• दिया। अब अधि•ारियों •े रिश्तेदारों •ो गिरतार •रने •ी धम•ी। पर व्यवस्था •ा ढर्रा नहीं बदल रहा। पुराने होम मिनिस्टर शिवराज पाटिल तो नक्सलियों •ो अपने परिवार •ा बिगड़ा हुआ भाई मानते थे। सो समझाइश •े फामूüले पर जोर देते रहे। पर अब पी। चिदंबरम समझौते •े मूड में नहीं। सो उन ने साफ •र दिया। नक्सलियों •ो बुलेट छोड़ लो•तंत्र •ी प्रç•्रया में शामिल होना होगा। वरना जवाबी •ार्रवाई जारी रहेगी। पर नक्सलियों •ो घुड़•ी •ब त• देंगे। क्यों नहीं सफाए •े लिए साझा ऑपरेशन शुरू हो। पर अपनी सर•ारें अब दीघü•ालि• नीतियां •म बनातीं। इत-दुत बनती भी, तो राजनीति पहले हावी होती। अब नदी जोड़ो परियोजना •ो ही लीजिए। वाजपेयी राज में पहल तेज हुई। तो यूपीए ने ठंडा पानी डाल दिया। पर आंध्र, •र्नाट• में आई भीषण बाढ़ •े बहाने सियासत शुरू हो गई। राहुल बाबा ने नदी जोड़ो परियोजना •ो विनाश•ारी •हा। तो अपने जयराम रमेश ने फौरन मुहर लगा दी। सो बुधवार •ो बाढ़ग्रस्त इला•ों •ा जायजा ले•र दिल्ली पहुंचे वें•ैया नायडू ने हुं•ार भरी। वा•ई आंध्र-•र्नाट• में बाढ़ ने सारे रि•ार्ड तोड़ दिए। पर अब त• पीएम •ा दौरा नहीं हुआ। यों पीएम शु•्रवार •ो जायजा लेने जा रहे। पर राजनीति• स्•ोर बनाने •ो बीजेपी ने पहले ही मुद्दा बना दिया। सवाल उठाया, देश •ा मुखिया अब त• बाढ़ग्रस्त इला•े में क्यों नहीं गया। पीçड़त लोगों में निराशा। यानी अब पीएम दौरा •रने जाएंगे। तो बीजेपी यही •हेगी, विपक्ष •े दबाव में पीएम हालचाल लेने पहुंचे। पर बाढ़ •े बहाने बीजेपी •ो थोड़ी राहत मिल गई। वसुंधरा मामले में वें•ैया ही मध्यस्थ। सो बुधवार •ो सवाल हुए। तो वें•ैया •ा जवाब •ाबिल-ए-गौर रहा। लब्बोलुवाब यही- क्वबीजेपी •े पास सिर्फ वसुंधरा प्र•रण ही मुद्दा नहीं। अभी बाढ़ राहत और चुनाव हमारी प्राथमि•ता। सभी नेताओं •े •ार्य•्रम तय। सो मौ•ा मिलेगा, तो उस पर भी सोचेंगे।ं यानी अब वसुंधरा इस्तीफा देने •ो तैयार बैठीं। तो आला•मान ही उलझ चु•ा। सो पहले वसुंधरा वक्त मांग रही थीं। अब आला•मान मांग रहा। हड़बड़ी में राजनाथ ने वसुंधरा से इस्तीफा मांग लिया। पर उत्तराधि•ारी तय नहीं। सो अब ç•रç•री हो रही। अगर दीवाली त• वि•ल्प •ी तलाश न हुई। तो समझो, मामला रफादफा हो गया। पर बात बीजेपी •ी अंदरूनी खींचतान •ी नहीं। अलबत्ता बाढ़ •े बहाने नई सियासत •ी। लोग परेशान, पर बीजेपी ने राहत पै•ेज •ी मांग •े साथ-साथ नदी जोड़ो परियोजना •ा पुछल्ला भी लगा दिया। यानी भीषण बाढ़ •ी आड़ में नए सिरे से बहस छेड़ने •ी रणनीति। वन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने भी ऐसे वक्त शिगूफा छेड़ा। बीजेपी •ो मौ•ा मिल गया। सो वें•ैया नायडू बोले- क्वराहत •ार्य निपटाने •े बाद पीएम फौरन सभी सीएम •ी मीटिंग बुलाएं। नदी जोड़ो परियोजना तत्•ाल शुरू •रें।ं यानी वें•ैया •े मुताबि• बड़ी परियोजनाओं पर छोटे-मोटे विरोध आम बात। पर सिर्फ विरोध से वि•ास •ो रो•ना सही नहीं। नदी जोड़ने से सूखे और बाढ़ से निजात मिलेगी। सो स्थायी समाधान होना चाहिए। पर विरोध सिर्फ राहुल या जयराम •ा नहीं। अलबत्ता बीजेपी •े परिवार से जुड़े विहिप •े अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशो• सिंघल तो नदी जोड़ो परियोजना •ो मनचलों •ा आइडिया बता चु•े। पर विरोध इधर हो या उधर। साउथ इंडिया •े सहारे बीजेपी •ेंद्र में सर•ार तो नहीं बना पाई। याद है ना, बीजेपी ने •ैसे साउथ •ी राजनीति से ही आडवाणी •ो पीएम बनाने •ा •ागजी खा•ा बना लिया था। पर तब पानी फिर गया। सो अब•े साउथ में आई बाढ़ •े बहाने ही संजीवनी ढूंढ रही बीजेपी। यानी संसद •े सत्र में नदी जोड़ो परियोजना बहस •ा अहम मुद्दा होगी। --------- 07।10।2009

एक थे दलित , आज भी हैं, क्या कल भी रहेंगे?

इंडिया गेट से --------- एक थे दलित , आज भी हैं, क्या कल भी रहेंगे? --------------- • संतोष कुमार ----------- हरियाणा में चल हट जा। तो महाराष्ट्र में आ गले लग जा। अबके चुनाव में कांग्रेस यही नुस्खा आजमा रही। हरियाणा में वंशवाद का बीज पनपने नहीं दिया। पर महाराष्ट्र में वंशवाद की बेल तैयार कर दी। सो हरियाणा में नतीजों के प्रति आश्वस्त। महाराष्ट्र में धड़कनें बढ़ चुकीं । सो कांग्रेस ने हरियाणा में बागियों का बाजा बजाने की ठान ली। पर महाराष्ट्र में बहुमत का टोटा न हो। सो बागियों पर कार्रवाई नहीं होगी। पर बीजेपी-शिवसेना को उम्मीद इन्हीं बागियों से। सो बीजेपी घोषणा पत्र से ही ताल ठोक रही। मंगलवार को प्रकाश जावडेकर ने कांग्रेस पर पायरेसी का आरोप लगाया। तो चार-छह चोरियां भी गिना दीं। मसलन, बीजेपी •े मैनीफैस्टो में ç•सानों •ो चार फीसदी पर •र्ज •ा वादा। तो •ांग्रेस ने तीन फीसदी •ा वादा ç•या। बीजेपी लाड़ली लक्ष्मी में ए• लाख देगी। तो •ांग्रेस ने सवा लाख •ा एलान ç•या। खेतिहर मजदूरों •ो बीजेपी भ्00 रुपए पेंशन। तो •ांग्रेस ने 600 रुपए •र दिया। बीजेपी-शिवसेना मराठी प्रेम दिखाने •ो हता मनाएगी। तो •ांग्रेस ने पखवाड़ा मनाने •ा एलान •र दिया। पर अब वोटरों •ो गुमराह •रना आसान नहीं। मैनीफैस्टो सिर्फ चुनावी चोंचलेबाजी बन•र रह गए। सो •ौन सा मुद्दा चला, यह जनता ही बताएगी। गुजरात, दिल्ली, राजस्थान और हालिया लो•सभा चुनाव में सारे अनुमान धराशायी हो गए थे। तभी तो हारने और जीतने वाले ने ए• सुर में माना, अपना लो•तंत्र अब मैच्योर हो चु•ा। तभी तो यूपी में सर्वजन •ा राग अलापने वाली मायावती •ा मोह अब भंग हो रहा। लो•सभा चुनाव में •हां माया पीएम बनने •ा मंसूबा पाले बैठी थीं। यूपी से 60 सीटें जीतने •ा लक्ष्य था। पर आसमान से गिरे, खजूर पर अट•े जैसी हालत हो गई। पहला-दूसरा भी नहीं, तीसरे नंबर पर धड़ाम से गिरीं माया। •ांग्रेस चौथे नंबर से दूसरे नंबर पर पहुंच गई। यानी जनता ने गुरूर तोड़ा। तो मायावती बौखला उठीं। अगली बार •ुर्सी रहे, न रहे। सो जनता •े पैसे से बुतपरस्ती तेज •र दी। अंबेड•र, छत्रपति शाहूजी महाराज जैसे महापुरुषों •ो दलित आदर्श में समेटने •ी •ोशिश। यूपी में जगह-जगह अंबेड•र, •ांशीराम •ी मूर्तियां तो लगवाईं। लगे हाथ अपनी मूर्ति भी खड़ी •र दी। यों भारतीय संस्•ृति-परंपरा में जिंदा व्यक्ति •े बुत नहीं बनते। पर मायावती ने खुद •ो जिंदा देवी घोषित •र दिया। अगर मायावती सिर्फ अंबेड•र-•ांशीराम त• सीमित रहतीं। तो शायद इतना बवाल न होता। पर अपनी मूर्ति लगवा विरोधियों •ो मौ•ा दे दिया। अब यूपी जैसे पिछड़े राज्य में महज बुतपरस्ती पर 2600 •रोड़ खर्च हों। तो आम आदमी सवाल उठाएगा ही। सो मामला सुप्रीम •ोर्ट पहुंच चु•ा। पर दलित अçस्मता •े नाम पर माया •ोर्ट से भी ट•राव •े मूड में। सुप्रीम •ोर्ट ने 11 सितंबर •ो •ड़ी फट•ार लगाई थी। सभी निर्माण पर रो• लगाने •ा आदेश दिया। पर माया ने राजनीति• पैंतरेबाजी दिखाई। सो मंगलवार •ो अवमानना •ा मामला बन गया। सोमवार •ो •ोर्ट ने राजनीति• विरोधी जैसा बर्ताव न •रने •ी हिदायत दी थी। तो मंगल •ो साफ आदेश दे दिया। •ोर्ट ने पहली नजर में पिछले आदेश •ा खुल्लमखुल्ला उल्लंघन माना। मामला •ेंद्र •े सुपुर्द •रने •ी चेतावनी दी। यूपी •े चीफ सै•्रेट्री •ो भी चार नवंबर •ो तलब •र लिया। यानी माया ने ट•राव मोल लिया। तो सुप्रीम •ोर्ट निर्माण स्थल पर •ेंद्रीय बल तैनात •रने या संवैधानि• सं•ट बता अनुच्छेद 3भ्6 •ी सिफारिश •र स•ती है। अगर ऐसा हुआ, तो माया अपने वोट बैं• •ो दुरुस्त •रने में पीछे नहीं हटेंगी। पर दलित अçस्मता •े नाम पर यह •ैसा खेल। क्या बुत बनने से दलितों •ा पुनरुत्थान हो जाएगा? माना, इतिहास में •ुछ महापुरुषों •े साथ न्याय नहीं हुआ। तो क्या मौजूदा सियासतदां या आने वाली पीढ़ी बदले •ी भावना से •ाम •रेगी? पर अब मायावती •ा मिशन राजनीति में बदल चु•ा। •ांग्रेस यूपी में जिंदा हो उठी। सो माया •ो दलित वोट बैं• भी खिस•ने •ा डर। तभी तो उन ने •ोर्ट से भी रार ठान रखी। पर माया हों या •ांग्रेस, दलित प्रेम •ी राजनीति आप खुद देख लो। राहुल बाबा दलितों •े घर रह•र खूब सुर्खियां बटोर रहे। सो यूपी •ांग्रेस ने गांधी जयंती पर थो• में यह •वायद •ी। सभी सांसद, विधाय•, पदाधि•ारी दलितों •े घर रहने गए। तो साथ में बिस्तर, खानसामा, हलवाई, एसी, •ूलर, फोटो ग्राफर आदि ले गए। •ुछ •े दारू-मुगेü उड़ाने •ी भी खबरें आईं। सो आला•मान खफा। अब सोनिया-राहुल खुद रिपोर्ट जुटा रहे। ताç• •ांग्रेस •ा दलित प्रेम नौटं•ी न बने। सो अब •ांग्रेस गाइड लाइन बनाने •ी सोच रही। हर महीने •े पहले बुधवार •ो •ांग्रेस पदाधि•ारी गांवों में दलित चौपाल लगाएंगे। तो सांसदों •ा माहवारी विजिट भी अनिवार्य होगा। योजना सिर्फ यूपी में नहीं, अलबत्ता समूचे देश में लागू •रने •ा विचार। ताç• सभी •ांग्रेसी, मंत्री, विधाय•, सांसद आदि गांवों में रहें। जहां सिर्फ दलित नहीं, पिछड़ों •ा भी याल हो। पर सबसे जरूरी गाइड लाइन होगी। ताç• नेता टेंट, बिस्तर, खानसामा आदि न ले जा स•ें। पर क्या आजादी •े 62 साल बाद सही मायने में दलित उत्थान हो रहा? इतिहास पढ़, वर्तमान देख, भविष्य यही लग रहा। ए• थे दलित, जो आज भी हैं। और मौजूदा नेताओं •ी चली, तो •ल भी रहेंगे। -------- 06।10।2009