Wednesday, December 29, 2010

भविष्य की इमारत के लिए कांग्रेस ने की डेंट की पुताई

तो बाप बड़ा न भैया और न रुपैया। सबसे बड़ी वोट की नैया, जिसे पार लगाने को कांग्रेस ने संजय गांधी को श्मशान से लाकर मारने में भी हिचक नहीं दिखाई। वैसे भी वोट की खातिर गड़े मुर्दे उखाडऩा राजनीति की फितरत। सो इमरजेंसी की कालिमा का दंश झेल रही कांग्रेस ने अपनी 125वीं वर्षगांठ के समापन पर एक किताब जारी की। जिसका शीर्षक दिया- द कांग्रेस एंड द मेकिंग ऑफ द इंडियन नेशन। यानी जस नाम, तस व्याख्या। कांग्रेस ने यह किताब इतिहास बतलाने को नहीं, इतिहास में लगे दाग धोने के लिए लिखी। सो कांग्रेस ने रणनीतिक तौर पर संजय गांधी को इमरजेंसी का खलनायक करार दे दिया। इमरजेंसी के सच को कांग्रेस ने पहली बार कबूला। पर मीठा-मीठा गप और कड़वा-कड़वा थू। वैसे भी नेहरू-गांधी खानदान पर कांग्रेस भला दाग कैसे देख सकती। संजय गांधी की बीवी मेनका और बेटा वरुण अब बीजेपी के कमल खिला रहे। सो स्वर्गीय संजय का बोझ भला स्वर्गीय राजीव का परिवार क्यों उठाता। कांग्रेस ने किताब में माना, इमरजेंसी के वक्त पीएम इंदिरा गांधी के हाथ असीमित ताकत आ गई थी। संजय गांधी तभी अहमियत वाले नेता बनकर उभरे। कांग्रेस ने इंदिरा के आपातकाल को शुरुआत में सराहनीय बताया। कांग्रेस की मानें, तो जनता के एक बड़े वर्ग ने इमरजेंसी का स्वागत किया था। पर संजय गांधी की ओर से जबरन नसबंदी और झुग्गी-झोंपड़ी हटाने के कार्यक्रम ने नाराजगी पैदा कर दी। यानी इमरजेंसी के सारे दाग कांग्रेस ने स्वर्गीय संजय गांधी को पार्सल कर दिए। किताब में जेपी के आंदोलन को संविधानेतर और अलोकतांत्रिक करार दिया। जेपी को ईमानदार और निस्वार्थी तो बताया। पर सिद्धांतों का ढीला व्यक्ति करार दिया। किताब में संजय गांधी के लिए जितनी कड़वाहट, उससे कई गुना अधिक मिठास सोनिया-राहुल के लिए। विधानसभा चुनाव में बेहतर काम के लिए राहुल की पीठ ठोकी गई। राहुल-सोनिया की तुलना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से। किताब में कहा गया- जैसे महात्मा गांधी ने सत्ता का त्याग किया, वैसे ही सोनिया-राहुल ने सत्ता का त्याग कर मिसाल पेश की। यानी कांग्रेस ने सच का सामना तो किया, पर अपनी सहूलियत के मुताबिक। जो मुद्दे कांग्रेस को जड़ से हिला देते, उनको किताब में सिर्फ छुआ गया। पर जो मुद्दे सीधे वोट बैंक से जुड़े, कांग्रेस ने रिश्तों की बलि चढ़ाकर मैसेज दे दिया। अयोध्या फैसले, गुजरात दंगे के कई मामलों में मोदी को क्लीन चिट, बिहार चुनाव में पटखनी के बाद से कांग्रेस ने मुस्लिम वोट को वापस लाने की मुहिम छेड़ रखी। गाहे-ब-गाहे दिग्विजय सिंह के बयान और बुराड़ी के अधिवेशन मंच से सोनिया की मौजूदगी में उनकी गर्जना सबूत दे चुके। पर यह भी एक एतिहासिक तथ्य, इमरजेंसी के समय जबरन नसबंदी का विरोध तो सबने किया। पर सबसे तीखा विरोध अल्पसंख्यक समुदाय में हुआ। सो कांग्रेस ने इमरजेंसी की बदनामी का ठीकरा संजय के सिर फोड़ दिया। कांग्रेस की कारीगरी देखिए, लिखा तो 125 साल का इतिहास। पर तुष्टिकरण का तडक़ा लगाके। कांग्रेस की दलील- संजय की वजह से बदनामी हुई। पर कोई पूछे, कांग्रेस को यह तथ्य ढूंढने में 35 साल क्यों लग गए? क्या राहुल गांधी की पारी का इंतजार हो रहा था? कांग्रेस की इस किताब का मकसद राहुल के रूप में एक नई कांग्रेस को सत्ता में पहुंचाना। पर सिर्फ लिख देने से इतिहास नहीं बदलता, न लोगों के दिलों पर पड़ी छाप मिटती। अगर इमरजेंसी की कालिमा के लिए सिर्फ संजय जिम्मेदार। तो इंदिरा के पास असीमित शक्ति होने की दलील कैसे दे रही कांग्रेस? इमरजेंसी थोपते ही इंदिरा ने तमाम विपक्षी नेताओं को जेल में कैसे ठूंसा। मीडिया, नौकरशाह, पुलिस और यहां तक कि न्यायपालिका का भी गला घोंटा गया। अगर कांग्रेस ने किताब में तथ्य लिखे। तो कांग्रेसी किताब से इतर यह भी तथ्य, बिना किसी आरोप के एक लाख लोग हिरासत में रखे गए। नौकरशाह आंख मूंदकर इंदिरा-संजय का आदेश मानने को मजबूर किए गए। यहां तक एलान कर दिया गया- विरोध करने वालों पर गोली चली, तो आश्रितों को बोलने का कोई हक नहीं। मानवाधिकार का गला घोंटने के लिए इंदिरा ने कोर्ट का भी मुंह बंद करने की कोशिश की। सो बुधवार को शरद यादव ने सही कहा- इमरजेंसी का ठीकरा किसी एक व्यक्ति पर नहीं थोपा जा सकता। खुद पीएम इंदिरा ने हर फैसला लिया। सचमुच इंदिरा का वरदहस्त न होता, तो संजय मनमानी नहीं कर सकते थे। जैसे सोनिया-राहुल के पास कोई सरकारी पद नहीं। तब संजय गांधी के पास भी नहीं था। इमरजेंसी के वक्त बाकायदा मीडिया और बालीवुड पर दबाव बनाया गया कि वह संजय को भावी पीएम पेश करे। यह खुलासा खुद फिल्म अभिनेता देवानंद अपनी किताब- रोमांसिंग विद लाइफ में कर चुके। मीडिया की हालत तो तब कैसी थी, यह आडवाणी की बतौर सूचना-प्रसारण मंत्री इमरजेंसी के बाद की गई टिप्पणी से देख लो। आडवाणी ने कहा- सरकार ने आपको झुकने के लिए कहा। पर आप तो रेंगने लगे। अब कांग्रेस का कबूलनामा कितना रंग लाएगा, यह बाद की बात। पर अतीत की नींव पर भविष्य का निर्माण करने के लिए कांग्रेस ने नींव पर पड़े डेंट की पुताई शुरू कर दी। ताकि भविष्य की इमारत साफ-सुथरी दिखे।
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29/12/2010