चार महीने बाद ही कहावत दुबारा लिखनी पड़ेगी, ऐसा सोचा नहीं था। मशहूर कहावत है- भानुमती ने खसम किया, बुरा किया। करके छोड़ा, उससे बुरा किया। छोडक़र फिर पकड़ा, ये तो कमाल ही किया। झारखंड में सत्ता की खातिर बीजेपी-शिबू फिर साथ हो गए। तो इस कहावत को भी मात दे दी। पर जब कोई शर्म-हया बेच खाए, तो क्या थूकना-चाटना और क्या जूते-प्याज खाने वाली कहावत। यों राजनीति में कोई भजन करने नहीं आया। सबका लक्ष्य सत्ता हासिल करना ही होता। पर जब कोई खम ठोककर खुद को राजनीति की दुकानदारी से अलग सामाजिक ठेकेदारी की बात करे। अलग चाल, चरित्र, चेहरे का खम ठोके। तो ऐसे सवाल उठना लाजिमी। सो बीजेपी के लिए चाल, चरित्र, चेहरा ही डायन हो गईं। अगर बीजेपी खम ठोककर कांग्रेस की तरह राजनीति करे, तो इतनी टीका-टिप्पणी शायद ही हो। पर बीजेपी कंबल ओढक़र घी पीना चाहती। जैसा अबके झारखंड में हो रहा, हू-ब-हू यही कहानी कर्नाटक में हो चुकी। कर्नाटक की पिछली विधानसभा में तीनों बड़े दलों ने बारी-बारी सत्ता का जायका लिया। कांग्रेस-जेडीएस का गठजोड़ बीस महीने बाद टूटा। तो एचडी देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी ने बीजेपी को सत्ता का टुकड़ा फेंका। तो बीजेपी बड़ा दल होने के बावजूद छोटेपन की भूमिका को राजी हो गई। पर बीस महीने बाद कुमारस्वामी ने दो अक्टूबर 2007 को कुर्सी नहीं छोड़ी। तो दोनों ने एक-दूसरे की लानत-मलानत करते हुए तलाक ले ली। सो राष्ट्रपति राज लग गया। पर करीब बीस दिन बाद ही देवगौड़ा ने फिर बीजेपी को समर्थन का भरोसा दिया। तो 28 अक्टूबर 2007 को बीजेपी के एक बड़े नेता ने दबी जुबान में कहा था- हवन तीन बजे न सही, छह बजे ही। जेडीएस ने हमारी बात मान ली, सो हम भी तो कोई सन्यासी नहीं, आखिर राजनीति इसलिए तो कर रहे। यही बात बीजेपी कभी खुलकर नहीं कहती। पर कर्नाटक में सात दिन बाद ही देवगौड़ा ने फिर गच्चा दे दिया। तो बेचारी बीजेपी मुंह में खून लगे शेर की तरह देवगौड़ा पर फिर दहाडऩे लगी। सो झारखंड में क्या होगा, यह तो बाद की बात। पर पिछले चार महीने में बीजेपी ने झारखंड की खातिर अपने सिद्धांत की बलि चढ़ा दी। झारखंड में जब बीजेपी ने शिबू संग पिछले साल दिसंबर में सरकार बनाई। तो कई बड़े नेताओं ने विरोध किया था। पर सरकार बन गई। तो 27 अप्रैल को लोकसभा में कटौती प्रस्ताव के वक्त शिबू ने मनमोहन सरकार के पक्ष में वोट कर अपनी पतंग कटवा ली। बीजेपी ने इमरजेंसी मीटिंग कर समर्थन वापसी का एलान कर दिया। पर शिबू सोरेन एंड सन्स ने बीजेपी को सीएम की कुर्सी का ऑफर दिया। तो सिद्धांत और नैतिकता की दुहाई देकर समर्थन वापसी का एलान करने वाली बीजेपी महज 24 घंटे में ही पलटी मार गई। फिर महीने भर बीजेपी-झामुमो के बीच गुरिल्ला युद्ध चला। तो बीजेपी का चेहरा और बेनकाब हो गया। शिबू सोरेन के चेहरे को तो अब नकाब की जरूरत ही नहीं। पर पिछली बार मीडिया में हुई फजीहत से बीजेपी अबके संभली हुई। झारखंड में जब तक झामुमो के संग गोटी फिट नहीं हो गई, खबरें लीक नहीं होने दीं। मंगलवार को अर्जुन मुंडा विधायक दल के नेता चुन लिए गए। फिर गवर्नर के सामने सरकार बनाने का दावा पेश हो गया। अब कोई पूछे, क्या जनहित में बीजेपी-शिबू ने हाथ मिलाया? अगर जनहित का ख्याल होता, तो सरकार गिरती ही क्यों। बीजेपी ने भले कटौती प्रस्ताव पर शिबू सोरेन के धोखे को आधार बनाया था। पर सीएम की कुर्सी देखते ही शिबू पर भरोसा हो गया। यानी झारखंड में जनता का नहीं, किस्सा सिर्फ कुर्सी का। बीजेपी के आका संघ परिवारी पिछली बार भी सरकार गंवाने के मूड में नहीं थे। पर सौदेबाजी में बाजी हाथ से छूट गई। सो अबके मौका मिला, तो बीजेपी तैयार हो गई। यों आडवाणी अभी भी खिलाफ। पर संघ को खुश करने और झारखंड पर अपने पूर्व के फैसले को जायज ठहराने के लिए नितिन गडकरी हाथ-पैर मार रहे। संघ को भी झारखंड में चल रही अपनी मुहिम की फिक्र। वैसे भी अयोध्या पर 17 सितंबर को आने वाले फैसले के बाद की पृष्ठभूमि तैयार हो रही। झारखंड में धर्मांतरण मुहिम रोकने का संघ अभियान तेजी से चल रहा। तो दूसरी तरफ विधायक बैठे-बैठे थक गए। पर अगले चुनाव की तैयारी के लिए बिना सरकार चंदा उगाही संभव नहीं। सो सबने आपस में तय कर लिया, आओ सरकार बनाएं। कुछ तुम कमाओ, कुछ हम। यानी स्वार्थ की खातिर बीजेपी-शिबू साथ आ रहे, जनहित कतई नहीं। अब गवर्नर एमओएच फारुख ने भी अपनी रपट केंद्र सरकार को भेज दी। बीजेपी की ओर से सीएम पद के उम्मीदवार अर्जुन मुंडा के पक्ष में 44 एमएलए के समर्थन को माना। सो केबिनेट आज-कल में शायद राष्ट्रपति राज उठा ले। कांग्रेस भी यही रणनीति अपना रही। या यों कहें, कांग्रेस भी चाह रही, गुरुजी संग बीजेपी की सरकार बन जाए। ताकि बीजेपी पूरी तरह सत्तालोलुप साबित हो जाए। सो झारखंड की हलचल पर कांग्रेस कोर ग्रुप की अहम बैठक में पीएम, सोनिया, चिदंबरम, एंटनी ने मंथन किया। इधर झारखंड कांग्रेस के प्रभारी केशव राव ने दो-टूक कह दिया- हमारे पास नंबर नहीं, सो सरकार नहीं बनाएंगे। पर बीजेपी-शिबू की सरकार स्थायी नहीं होगी। अब कांग्रेस भले बीजेपी को बेनकाब करने की रणनीति बनाए। पर बीजेपी को क्या फर्क पड़ता। अब तो उसने भी अपना चेहरा ‘झारखंडी’ बना लिया। जैसे झारखंड अपने गठन से अब तक स्थिर नहीं। वैसे ही बीजेपी का ‘चेहरा’ भी हो गया।
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07/09/2010
Tuesday, September 7, 2010
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