Wednesday, March 2, 2011

तो कांग्रेसी सीएम पर भारी पड़े भाई मोदी

हर-हर महादेव से देश गूंज उठा। दूध की कीमतों में महंगाई का तडक़ा जोरों से लग चुका। सो अबके जल-दूध मिक्स, यानी भगवान शिव का जलदूधाभिषेक हुआ। आखिर महंगाई से मजबूर भक्तों ने अब भगवान के साथ भी मिलावट का खेल शुरू कर दिया। सो अब भगवान का दिल भक्तों के लिए क्या सोच रहा होगा, यह तो वही जानें। पर अपनी सरकार जनता के साथ महंगाई का कैसा कॉमनवेल्थ कर रही। अब कोई लुकाव-छुपाव वाली बात नहीं। आम बजट में प्रणव दा ने भी महंगाई पर खूब चिंता जताई। भाषण दिया- इस साल हमारी मुख्य चिंता कीमतों में लगातार बढ़ोतरी पर रही। शुरुआती छह महीने महंगाई दर उच्च रही। तो दूसरी छमाही में कम भी हुई। प्याज, दूध कुक्कुट और कुछ सब्जियों की कीमतें भी बढ़ीं। यानी प्रणव दा ने महंगाई की समस्या का बखान तो किया। पर उपाय के नाम से ठेंगा थमा गए। बोले- रिजर्व बैंक की ओर से किए गए उपायों से आने वाले महीनों में महंगाई में और कमी की उम्मीद करता हूं। पर बजट पेश करने के दूसरे दिन ही प्रणव दा का सुर बदल गया। मंगलवार को फिक्की के एक प्रोग्राम में बजट से उलट चिंता जताई। बोले- अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और जिंसों में तेजी से महंगाई बढ़ेगी। वैश्विक कीमतों का देश पर भी असर पड़ेगा। यानी वही बात हुई, जिसका अंदेशा था। प्रणव दा के बजट ने तो पहले दिन ही साफ कर दिया- गांव-गरीब के लिए चिंता, उद्योग जगत के लिए भरपूर प्यार। विशेषज्ञों ने तो उसी दिन इशारा कर दिया था- लीबिया संकट का असर पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पडऩे वाला। सो जैसे ही कीमतें बढ़ीं, सरकार के सारे दावे धराशायी हो जाएंगे। पर कीमत बढऩे से पहले ही प्रणव दा आम आदमी को तलाक दे देंगे, ऐसी उम्मीद नहीं थी। अब बेचारा आम आदमी क्या करेगा? सो भगवान शंकर से यही अरज- जलदूधाभिषेक को मिलावट की भक्ति न मानें। आम भक्त तो मनमोहन सरकार की मर्जी का मारा। सरकार को खुद ही समझ नहीं, महंगाई को कैसे रोके। पी. चिदंबरम बेबाकी से कबूल चुके- महंगाई रोकना सरकार के बूते में नहीं। खीझ में प्रणव दा भी कह चुके- हमारे पास अलादीन का चिराग नहीं। पर संयोग कहें या कुछ और, महाशिवरात्रि के दिन गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने मनमोहन-प्रणव को चिराग थमाया। सीएम ने पीएम को समझाया, कैसे महंगाई पर काबू पाया जा सकता। बुधवार को मोदी ने उपभोक्ता मामलों पर वर्किंग ग्रुप की रपट पीएम को सौंप दी। पर रपट का मोदी-सार बताने से पहले वर्किंग ग्रुप का इतिहास बता दें। महंगाई ने जब-जब तांडव मचाया, अपना मीडिया भोंपू और कागज-कलम लेकर पीछे पड़ा। तब-तब मनमोहन सरकार ने मीटिंग-मीटिंग खेली। इसी मीटिंग-मीटिंग के खेल से वर्किंग ग्रुप का आइडिया निकला था। सरकार और कांग्रेस ने हमेशा कोशिश की, महंगाई का ठीकरा राज्यों के सिर फोड़ा जाए। सो कुछ चीफ मिनिस्टरों को ग्रुप में बांटकर अलग-अलग मामलों में रपट देने को कहा गया। नरेंद्र मोदी के जिम्मे उपभोक्ता मामला आया। साथ में महाराष्ट्र, आंध्र और तमिलनाडु के सीएम भी मेंबर बनाए गए। यानी यूपीए शासित राज्यों की टीम में अकेले भाजपाई मोदी। वर्किंग ग्रुप का गठन आठ अप्रैल 2010 को हुआ। पीएम मनमोहन ने मोदी को इस ग्रुप का मुखिया बनाया। मोदी कमेटी ने जनवरी में अपनी रपट फाइनल कर ली थी। जिसे बुधवार को सरकार के हवाले कर दिया। अब जरा रपट का मोदी-सार देखिए। मोदी ने आम जरूरत की चीजों के वायदा कारोबार पर फौरन बैन लगाने की सिफारिश की। भारत सरकार को कीमत स्थिरता फंड बनाने का सुझाव दिया। जिससे अनाजों की खरीद और वितरण के लिए राज्यों को सहायता मिल सके। केंद्र और राज्य स्तर पर मंत्री स्तरीय को-ऑर्डीनेशन मैकेनिज्म की सलाह दी। ताकि समन्वय के साथ पॉलिसी तैयार की जा सके। कृषि क्षेत्र में पिछड़े इलाकों के लिए ढांचागत विकास और उत्पादन में अव्वल क्षेत्र को बाजार से जोडऩे के लिए दस साल की दीर्घकालिक योजना बनाने की भी सलाह दी। अनिवार्य वस्तु अधिनियम के तहत अपराध को गैर जमानती बनाने और विशेष कोर्ट से मुकदमा चलाने पर जोर दिया। कालाबाजारी करने वालों पर शिकंजा कसने के लिए हिरासत में रखने की छह महीने की अवधि को बढ़ाकर एक साल करने का सुझाव दिया। मोदी कमेटी ने 20 सिफारिशें और 64 बिंदु एक्शन के लिए सुझाए। यानी कुल मिलाकर मोदी ने चतुराई से गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी। महंगाई के लिए राज्यों पर आरोप लगाने वाली कांग्रेस को मोदी कमेटी ने ऐसा जवाब दिया है, शायद कांग्रेस का मुंह खुला रह जाएगा। मोदी रपट ने साफ कर दिया- कांग्रेसी राज्य सरकारें भी महंगाई पर केंद्र सरकार की राज्य थ्योरी से सहमत नहीं। मोदी ने न सिर्फ महंगाई पर काबू पाने का उपाय बताया, अलबत्ता कांग्रेस-यूपीए के सीएम पर भी भारी पड़े। सो अब इंतजार इस बात का, जिस मनमोहन सरकार ने महंगाई से निपटने को बजट में तो कुछ नहीं किया। वह मोदी कमेटी रपट पर क्या कहेगी? अभी तो संसद में आम बजट पर बहस बाकी। सो विपक्ष के तीर को और धार मिल गई। कांग्रेस अगर मोदी कमेटी रपट को माने, तो भी विपक्ष बम-बम, न माने, तो भी। -------------
02/03/2011