Wednesday, August 4, 2010

महंगाई पर ये लो अपना ‘गीता सार’

बुरा मत मानना, अब आप महंगाई में जीने की आदत डाल ही लें। संसद की भावना को आवेग मान सरकार ने यही नुस्खा बताया। बुधवार को प्रणव मुखर्जी ने लोकसभा में जवाब दिया। तो चेहरे पर नकारेपन की खीझ बार-बार छलकी। फिर भी महंगाई कम करने का भरोसा नहीं दिलाया। अलबत्ता महंगाई को न्यायसंगत ठहराते रहे। सचमुच प्रणव दा का जवाब गीता सार का कांग्रेसी रूपांतरण भर। पहली बार महंगाई पर संसद की भावना के तहत बहस हुई। पर प्रणव दा का जवाब वही। हे आम आदमी, क्यों व्यर्थ चिंता करते हो। महंगाई से व्यर्थ क्यों डरते हो। महंगाई भला तुम्हें कैसे मार सकती। वह तो न पैदा होती, न मरती, अलबत्ता गैर कांग्रेसी राज में कछुआ चाल, तो कांग्रेस राज में खरगोश की भांति दौड़ती। सो जो हुआ, वह अच्छा हुआ। महंगाई बढ़ रही, वह भी अच्छा हो रहा। महंगाई और बढ़ेगी, वह भी अच्छा ही होगा। तुम एनडीए राज की कम कीमतें याद कर पश्चाताप न करो। ना ही भविष्य में आने वाली सरकार की चुनौतियों की चिंता करो। अलबत्ता वर्तमान में हमारी महंगाई के साथ चलो। प्रणव दा ने भरे सदन में कबूला, वाजपेयी राज के छह साल कीमतें काबू में रहीं। पर दलील दी, वाजपेयी राज में विकास दर, निवेश दर और निर्यात दर नहीं बढ़ीं। यानी विकास दर का झंडा लहरा आम आदमी की कमर पर डंडा चला रही सरकार। प्रणव दा ने ताल ठोककर कहा- यूपीए राज में विकास दर बढ़ी, सो मुद्रास्फीति बढ़ी। इतना ही नहीं, आम लोगों की क्रयशक्ति बढ़ी। यानी गीता सार के तीसरे चरण में प्रणव दा ने खूब कहा। हे आम आदमी, तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो। तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया। तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया। अरे भाई, तुम्हारी आमदनी बढ़ी। तो थोड़ी महंगाई भी झेल लो। आखिर इतना पैसा लेकर कहां जाओगे। न तुम कुछ लेकर आए। जो लिया, यहीं से लिया। सो देना भी यहीं पड़ेगा। जो लिया, इसी भगवान (हमारी सरकार) से लिया। सो हमको ही देना होगा। तुम तो खाली हाथ आए, खाली हाथ चले जाओगे। वैसे भी जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझकर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखों का कारण है। यानी प्रणव दा का प्रवचन यही, हे आम आदमी, सिर्फ अपनी मत सोचो, आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचो। परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु यानी महंगाई समझते हो, वही तो जीवन है। आज तुम महंगाई झेलोगे, कल महंगाई तुम्हारे बच्चों को झेलेगी। तो तुम्हारे बच्चे तुम्हें पीढिय़ों तक याद रखेंगे। अब बताओ, पल-दो पल की परेशानी के लिए तुम पीढिय़ों की याद दांव पर लगाओगे? पर विकास दर की प्रणवी थीसिस को मुलायम ने आईना दिखाया। मुलायम सिंह बोले- यह कैसा विकास। अगर देश में 125 से 130 अरब-खरबपति परिवार बाहर कर दो, तो देश की विकास दर क्या होगी? सचमुच सवाल मौजूं। देश में जितनी तेजी से करोड़पति अरबपति हुए। अरबपति खरबपति हुए, उतनी ही तेजी से आम आदमी की कंगाली भी बढ़ी। सुषमा स्वराज ने भी पीएम से पूछा- अर्थशास्त्री महोदय, यह आपका कैसा अर्थशास्त्र। एक तरफ आप विकास दर के साथ महंगाई को जायज ठहरा रहे। तो दूसरी तरफ अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ रही। पर प्रणव दा यहां भी चालबाजी कर गए। गुड्स एंड सर्विस टेक्स यानी जीएसटी पर राज्यों की ओर से हरी झंडी नहीं मिल पा रही। सो प्रणव दा का दांव देखिए। बोले- जीएसटी लागू हो जाए, तो महंगाई के इलाज में रामबाण होगी। पेट्रोलियम पर टेक्स हो या बाकी और टेक्स, सब समान हो जाएगा। सो प्रणव दा ने आम आदमी को फिर समझाया। हे आम आदमी, वैसे भी एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो। दूसरे ही क्षण में दरिद्र बन जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया यानी बीजेपी-कांग्रेस, लेफ्ट-सपा, एनडीए-यूपीए मन से मिटा दो। सिर्फ कांग्रेस को वोट दो। फिर देश का सारा खजाना तुम्हारा है और तुम सिर्फ कांग्रेस के हो। न यह शरीर तुम्हारा है न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, पृथ्वी, आकाश से बना है। सो हमने चारों जगह महंगाई बढ़ा दी। ताकि जीने और मरने में तुम्हें कोई फर्क समझ में न आए। आखिर तुम्हें इसी में मिल जाना है। परंतु आत्मा यानी कांग्रेस पार्टी स्थिर है। फिर तुम क्या चीज हो। तुम अपने आपको कांग्रेस को अर्पित करो, यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है, वह भय, चिंता, शोक से सर्वदा मुक्ता होकर खरबपति बन जाता है। सो हे आम आदमी, जो कुछ भी तू करता है, उसे कांग्रेस को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन मुक्ति का आनंद अनुभव करेगा। यानी महंगाई पर संसद की भावना महज कागजी रह गई। कांग्रेस ने पानी पी-पीकर एनडीए राज के आंकड़े गिनाए। पर शरद यादव ने पूछ लिया- आप सिर्फ इतना बताओ, आपके तमाम प्रयासों के बावजूद महंगाई कम क्यों नहीं हो रही? पर जवाब वही, गांव, गरीब का दर्द समझती है सरकार। लेकिन सुनहरे भविष्य के लिए कठोर कदम लाजिमी। प्रणव दा ने दस किलोमीटर पैदल चलने का बचपन याद किया। दाम बांधो नीति को नकारा। कहा- ऐसा करने से मार्केट में सामान ही नहीं मिलता। पर प्रणव दा, कालाबाजारियों पर कार्रवाई कौन करेगा। कुल मिलाकर प्रणव दा ने यही कहा। देश में महंगाई है, पर आम आदमी परेशान नहीं, क्योंकि उसकी आमद बढ़ चुकी है। यानी आने वाले वक्त में महंगाई नहीं बढ़ी, तो कम भी नहीं ही होगी। सो महंगाई का गीता सार सुनने के बाद अब आप सब खड़े होकर बोलो, ‘महंगाई मैया के सैंया कांग्रेस की जय हो।’
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04/08/2010