Thursday, December 30, 2010

बीजेपी: 2010 में सुकून से शुरू, संघर्ष पर खत्म

 तो अब साल 2010 भी विदा होने जा रहा। समय तो सतत चलते रहने का नाम। सो साल 2011 के आगमन में महज कुछ घंटों का इंतजार। पर बीते साल का लेखा-जोखा भी जरूरी। सो आज बात बीजेपी के सफरनामे की। साल 2009 की चुनावी हार ने बीजेपी को ऐसा दर्द दिया, उबरने में काफी वक्त लग गया। अंदरूनी उठापटक इस कदर, पार्टी की मिट्टी पलीद होने लगी। तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कैंसर बता कीमोथेरेैपी की सलाह दी। फिर कहा था- राख से भी उठ खड़ी होगी बीजेपी। सो जब 2009 के आखिर में 19 दिसंबर को संघ ने बीजेपी का किला बचाने को नागपुर से नितिन गडकरी को भेजा। तो सचमुच बीजेपी के साल 2010 की शुरुआत सुकून भरी रही। पार्टी की कमान गडकरी ने, तो संसद की कमान दिल्ली में बैठे धुरंधर सुषमा-जेतली ने संभाली। सो फरवरी के इंदौर अधिवेशन में जब टेंट में नेता ठहराए गए। तो तालमेल से भरी बीजेपी नए जोश में दिखी। पर शुरुआत में बीजेपी का चेहरा बदला, तो साल का अंत होते-होते चाल और चरित्र ही बदल गया। गडकरी ने महानगरों की समस्या के लिए बाहरी लोगों को जिम्मेदार ठहराया। तो सबसे पहले एनडीए की सहयोगी जेडीयू ने पुतला फूंक गडकरी को सलामी दी। इंदौर मीटिंग के बाद गडकरी को अपनी नई टीम बनाने में मत्थापच्ची करनी पड़ी। गडकरी ने अध्यक्षी संभालते ही एलान किया था- काम को पुरस्कार, नकारों को नमस्कार। पर जब मार्च में टीम गडकरी का एलान हुआ। तो नाम बड़े, दर्शन छोटे की कहावत चरितार्थ हो गई। नाम वाले कुर्सी ले गए, काम वाले कमर पकड़ कर बैठ गए। सो सीपी ठाकुर, शत्रुघ्न सिन्हा, अमित ठाकर, शाहनवाज हुसैन, बीसी खंडूरी, प्रकाश जावडेकर  जैसे नेताओं ने मोर्चा खोल दिया। ठाकुर ने चेतावनी दी- इस टीम से गडकरी का दस फीसदी वोट बढ़ाने का सपना पूरा नहीं हो सकता। फिर 27 अप्रैल को महंगाई पर कटौती प्रस्ताव ने तो बीजेपी की ही पतंग काट डाली। झारखंड में शिबू सोरेन के साथ बनी बीजेपी की सरकार लडख़ड़ा गई। पर महीने भर झारखंड के झमेले में बीजेपी का चरित्र उजागर हो गया। कभी समर्थन वापसी, तो कभी सीएम पद का लालच। आखिर में बीजेपी ने झारखंड की सरकार गंवाई, जूते और प्याज भी खाए। पर एक बार अनैतिक काम कर चुकी बीजेपी ने दूसरी बार शर्म नहीं की। साल बीतने से पहले शिबू संग झारखंड में फिर सरकार बना ही ली। सो झारखंड बीजेपी के चाल, चरित्र की नजीर बना। तो कटौती प्रस्ताव की हार ने बीजेपी के चेहरे का रंग भी बता दिया। जब मई में चंडीगढ़ की रैली में गडकरी ने लालू-मुलायम को सोनिया का तलवा चाटने वाला कुत्ता कह दिया। बवाल मचा, तो माफी मांग ली। पर गडकरी के सिर्फ इसी बोल ने नहीं, उन ने दिग्विजय को औरंगजेब की औलाद, तो अफजल की फांसी में देरी के लिए कांग्रेस नेताओं का दामाद कह दिया। सिख विरोधी दंगे को गुजरात दंगे से जोड़ फिर सफाई दी। अयोध्या में मंदिर के बाजू में मस्जिद पर स्पष्टीकरण देना पड़ा था। पर बीजेपी की बड़ी फजीहत पटना कार्यकारिणी में हुई। जब नरेंद्र मोदी ने बिहार में हीरो बनने की कोशिश की। तो नीतिश कुमार ने खरी-खरी सुना भोज का न्योता वापस ले लिया। कोसी बाढ़ राहत में गुजरात से आए पांच करोड़ भी लौटा दिए। फिर कर्नाटक में येदुरप्पा सरकार ने भ्रष्टाचार की वजह से तीन संकट झेले। भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में कर्नाटक ने बीजेपी की धार भौंथरी कर दी। येदुरप्पा ने ऐसी धौंस दिखाई, आला नेतृत्व चाहकर भी हटाने की हिम्मत न कर सका। पर जून में जसवंत सिंह की वापसी पार्टी के लिए अच्छी पहल रही। फिर भी जसवंत की बर्खास्तगी के वक्त दी गई दलीलों का बीजेपी जवाब नहीं दे पाई। सो जसवंत की वापसी करा बीजेपी ने विचाराधारा का चोगा उतार फेंका। फिर राजस्थान से राम जेठमलानी को राज्यसभा भेज विचारधारा का क्रिया-कर्म कर डाला। यों साल 2010 में बतौर विपक्ष बीजेपी की भूमिका असरदार रही। संसद का कोई भी सत्र ऐसा नहीं बीता, जब सुषमा-जेतली की जुगलबंदी ने सरकार को कटघरे में खड़ा न किया हो। भले अनैतिक, पर इसी साल खोया झारखंड वापस लिया। अयोध्या जमीन विवाद पर एतिहासिक फैसला बीजेपी में नई ऊर्जा भर गया। बिहार की जीत बीजेपी के लिए बड़ी सौगात बनी। भले नीतिश लहर ने कमाल दिखाया। पर बीजेपी का स्ट्राइक रेट नीतिश से उम्दा रहा। फिर भी सौगात बीजेपी में शांति नहीं, संघर्ष लेकर आई। मोदी मैजिक पर सुषमा के बयान से बवाल मचा। सुषमा बनाम मोदी जंग सतह पर आ गई। सीबीआई दुरुपयोग और अमित शाह की गिरफ्तारी के मुद्दे पर संसद में चुप्पी ने दरार और बढ़ा दी। सुषमा और अरुण जेतली ने नई भूमिका में लॉबी बनानी शुरू की। तो वर्चस्व की लड़ाई साफ दिखने लगी। इसी साल बेटे के टिकट के लिए सीपी ठाकुर का प्रदेश अध्यक्ष से इस्तीफा। यशवंत सिन्हा का पंजाब के प्रभारी से इस्तीफा। गडकरी के बेटे की शाही शादी में कुबेर के खजाने जैसा लुटाना। उस पर आडवाणी की नाराजगी। अब आखिर में साल जाते-जाते मुरली मनोहर जोशी का पीएसी के रूप में जोश। सो गुरुवार को बीजेपी ने मान-मनोव्वल कर जोशी से बयान जारी करवा दिया। पर जोशी के स्पष्टीकरण से बीजेपी के चाल, चरित्र, चेहरे का भी स्पष्टीकरण हो गया। खुद गडकरी ने एक इंटरव्यू में मान लिया- कर्नाटक में येदुरप्पा ने जो किया। वह भले अनैतिक, पर असंवैधानिक नहीं। अब आप साल भर में बीजेपी कहां से कहां पहुंची, खुद देख लो। साल 2010 की शुरुआत बीजेपी ने सुकून से की, पर फिर संघर्ष का दौर चल रहा। आने वाला साल भी उत्तराखंड में मुसीबत लेकर आ रहा।
---------
30/12/2010